UP 69000 Teacher Recruitment: परीक्षा संस्था ने कोर्ट में एक साल बाद जीती प्रश्नों के गलत उत्तर की जंग
UP 69000 Teacher Recruitment शिक्षक भर्ती विवाद होने से अब तक पूरी नहीं हो सकी है। कुल पदों में से करीब 64 हजार से अधिक चयनितों को दो चरण की काउंसिलिंग में नियुक्ति दी जा चुकी है। अब रिक्त पदों के लिए तीसरे चरण की काउंसिलिंग कराने की तैयारी है।
प्रयागराज [राज्य ब्यूरो]। उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक स्कूलों में नियुक्ति पाने वालों का संकट टल गया है। सिर्फ चयनित ही नहीं परीक्षा संस्था भी इस दौरान कटघरे में रही। वजह, लिखित परीक्षा में पूछे गए 150 सवालों में से 142 पर आपत्तियां हुई थीं। कोर्ट में यह विवाद एक साल चला और आखिरकार हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने अपने फैसले में तल्ख टिप्पणियां करके याचिकाकर्ताओं को भी असहज कर दिया वहीं, परीक्षा संस्था को भी आगे की परीक्षाओं में प्रश्नमाला तैयार करने में अधिक सतर्क रहना होगा।
उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों की 69000 शिक्षक भर्ती उत्तीर्ण प्रतिशत और लिखित परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के जवाब को लेकर विवाद होने से अब तक पूरी नहीं हो सकी है। कुल पदों में से करीब 64 हजार से अधिक चयनितों को दो चरण की काउंसिलिंग में नियुक्ति दी जा चुकी है। अब रिक्त पदों के लिए तीसरे चरण की काउंसिलिंग कराने की तैयारी है।
इधर, लगभग हर परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों पर आपत्ति करने की मानों बाढ़ आ गई है। हर परीक्षा संस्थान को प्रश्नों का जवाब देने में जूझना पड़ रहा है। विषय विशेषज्ञों की ओर से प्रश्नों के चयन पर भी सवाल उठ रहे हैं। शिक्षक भर्ती परीक्षा की उत्तरकुंजी आठ मई 2020 को जारी की गई थी। करीब 20 हजार से अधिक अभ्यर्थियों ने आपत्तियां की थीं। कोर्ट ने एक साल बाद याचिकाएं खारिज कर दी अन्यथा नियुक्ति पा चुके चयनित भी अधर में लटक जाते।
आंसर की को चुनौती देना बना फैशन : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि प्रतियोगी परीक्षा की आंसर-की जारी होते ही चुनौती देना फैशन बन गया है। बिना किसी ठोस आधार के मनगढ़ंत आरोप लगाते हुए याचिकाएं दाखिल की जाती हैं, जो भर्ती प्रक्रिया को विलंबित करता है। याची प्रश्नों के उत्तर गलत साबित करने में नाकाम रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि न्यायालय विषय विशेषज्ञ नहीं हो सकता और न ही उसे प्रश्नों के उत्तर की सत्यता की जांच करने का प्राधिकार है। विशेषज्ञ की राय ही अंतिम मानी जाएगी। न्यायालय तय नहीं कर सकता कि विशेषज्ञों की राय सही है या गलत। यह चुनौती देने वालों की ड्यूटी है कि यदि किसी प्रश्न का जवाब गलत है तो उसे गलत साबित करें।