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World Radio Day: 'आपातकाल' से 'मन की बात' तक अडिग है रेडियो, आकाशवाणी इलाहाबाद केंद्र में गूंजी थी विस्मिल्ला खान की पहली शहनाई

World Radio Day आकाशवाणी केंद्र इलाहाबाद ने कई कालजयी कलाकारों को विश्व हस्ताक्षर के लिए पहला मंच प्रदान किया है। भारत रत्न विस्मिल्ला खान की पहली शहनाई इसी केंद्र में गूंजी थी। एक फरवरी 1949 में केंद्र के स्थापना दिवस अवसर पर उन्होंने यादगार सुरमई प्रस्तुति दी।

By Rajneesh MishraEdited By: Published: Sat, 13 Feb 2021 07:00 AM (IST)Updated: Sat, 13 Feb 2021 11:55 AM (IST)
World Radio Day: 'आपातकाल' से 'मन की बात' तक अडिग है रेडियो, आकाशवाणी इलाहाबाद केंद्र में गूंजी थी विस्मिल्ला खान की पहली शहनाई
World Radio Day रेडियो आज भी पुरोधा की भूमिका में खड़ा दिखता है।

प्रयागराज, [अमित सिंह]। फाइव-जी के दौर में भले ही सूचना और मनोरंजन के कई साधन दौड़ रहे हों, लेकिन रेडियो ने आज भी अपने अस्तित्व को बचा कर रखा है। न केवल बचा कर, बल्कि छात्रों की पढ़ाई से लेकर मनोरंजन तक सकारात्मक सक्रियता दर्ज कर रहा है। चाहे आकाशवाणी का 'समाचार संध्या' हो या पीएम के 'मन की बात या फिर 'आपातकाल'। रेडियो आज भी पुरोधा की भूमिका में खड़ा दिखता है। आज विश्‍व रेडियो दिवस पर कई दशक पीछे मुड़कर देखें तो रेडियो के कई कार्यक्रम हमारी यादों में आज भी रचे बसे हैैं। 

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 इसी कड़ी में शहर में बसे आकाशवाणी केंद्र इलाहाबाद ने कई कालजयी कलाकारों को विश्व हस्ताक्षर के लिए पहला मंच प्रदान किया है। भारत रत्न विस्मिल्ला खान की पहली शहनाई इसी केंद्र में गूंजी थी। एक फरवरी 1949 में केंद्र के स्थापना दिवस अवसर पर उन्होंने यादगार सुरमई प्रस्तुति दी। इसके बाद विश्व पटल पर उनके हस्ताक्षर गाढ़े होते गए। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत, हरिवंशराय बच्चन और हरि प्रसाद चौरसिया सहित न जाने कितने रचनाकारों और कलाकारों की प्रगति में रेडियो की अविस्मरणीय भूमिका रही है। 

जब बिन बुलाए इलाहाबाद केंद्र पहुंचे 'निराला' और मांगे एक हजार

आकाशवाणी केंद्र के वर्तमान निदेशक लोकेश शुक्ल बताते हैैं कि उन्होंने आकाशवाणी पर कई लेखक, कलाकार और प्रभारियों के संस्मरण पढ़े, लेकिन सबसे यादगार उन्हें निराला जी का केंद्र में अचानक पहुंचना लगा। 1938 में लखनऊ आकाशवाणी में हुए सजीव काव्य पाठ के दौरान उद्घोषक ने उनके नाम का गलत नाम उच्चारण कर दिया। इससे वो बहुत नाराज हुए और आकाशवाणी जाना छोड़ दिया। आजादी के दो दशक बाद अचानक वह इलाहाबाद केंद्र बिना सूचना के पहुंच गए। तत्कालीन सहायक केंद्र निदेशक गिरजा कुमार से थोड़ी देर बातचीत के बाद उन्होंने स्टूडियो देखने की इच्छा जाहिर की। स्टाफ आर्टिस्ट युक्तिभद्र दीक्षित को निदेशक ने केंद्र दिखाने को कहा। केंद्र देखने बाद निराला जी ने कहा था-हम काव्यपाठ करेंगे।

...हम 'एक हजार रुपया' लेते हैैं

गिरजा कुमार ने आनन-फानन उनके सामने ब्लैक कान्ट्रैक्ट फार्म रख हस्ताक्षर करने का आग्रह किया। हस्ताक्षर करने से पहले उन्होंने पूछा, इसमें पैसा कहां लिखा है? निदेशक ने कहा कि वह सब बाद में हो जाएगा। तब उन्होंने कहा कि हम 'एक हजार रुपया' लेते हैैं। ये उस समय इतनी बड़ी रकम थी कि निदेशक तो क्या महानिदेशालय के वश में नहीं था। परेशान निदेशक को कुछ सूझ नहीं रहा था, तब उन्होंने स्टाफ आर्टिस्ट युक्तिभद्र से कुछ उपाय करने को कहा। ऐसे में युक्तिभद्र, निराला जी के पास पहुंचे और तंबाकू मलते हुए हाथ आगे बढ़ा दिया। एक चुटकी ले होठों में दबाते हुए उन्होंने कहा कि 'तमाखू (तंबाकू) तुयि बड़ी बढिय़ा बनावति हयिÓ। इस दौरान युक्तिभद्र ने बातों ही बातों में पंत जी के गंभीर स्वास्थ्य की चर्चा कर दी। इस पर निराला ने तत्काल उन्हें देखने की इच्छा जाहिर कर दी। इस तरह उनका ध्यान कविता पाठ से हट गया। वह आकाशवाणी के स्टाफ गाड़ी से पंत जी के घर चले गए।  

इतिहास की बात

1918 में ली द फोरेस्ट ने न्यूयॉर्क के हाईब्रिज इलाके में दुनिया का पहला रेडियो स्टेशन शुरू किया था लेकिन पुलिस ने इसे अवैध करार देकर बंद कर दिया था। भारत में वर्ष 1936 में सरकारी 'इम्पीरियल रेडियो ऑफ इंडिया' की शुरुआत हुई जो आज़ादी के बाद ऑल इंडिया रेडियो या आकाशवाणी बन गया। आज आकाशवाणी के 231 केंद्र तथा 373 ट्रांसमीटर हैं। रेडियो के विस्तार में भारतीय वैज्ञानिक डॉ. जगदीश चंद्र बसु का योगदान भी अहम रहा है।


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