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Death anniversary of Former PM VP Singh : कभी देश की सियासी गतिविधियों का केंद्र रही राजा मांडा की कोठी, अब रहता है सन्नाटा

Death anniversary of Former PM VP Singh राजा मांडा की कोठी डेढ़ दशक पहले तक लोगों के आकर्षण का केंद्र बिंदु थी। राजा से मिलने के लिए लोगों की भीड़ लगा करती थी। घंटों तक इंतजार करना पड़ता था लेकिन इन दिनों वही कोठी वीरान सी पड़ी है।

By Rajneesh MishraEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2020 01:59 PM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 01:59 PM (IST)
Death anniversary of Former PM VP Singh : कभी देश की सियासी गतिविधियों का केंद्र रही राजा मांडा की कोठी, अब रहता है सन्नाटा
राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र रही उनकी कोठी पर सन्नाटा पसरा है।

प्रयागराज, जेएनएन। मंडल कमीशन के झंडाबरदार पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी थे। वह जितना राजनीति से जुड़े से उतना ही वे सामाजिक कार्यों से भी सरोकार रखते थे। राजा मांडा के नाम से ख्यात वीपी सिंह ने भूदान यज्ञ में हजारों बीघा भूमि दान देकर इसको साबित भी किया था। मांडा में एक किलोमीटर लंबी सड़क श्रमदान से बनाकर मिसाल कायम की। 27 नवंबर को उनकी पुण्य तिथि भी है किंतु कभी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र रही उनकी कोठी पर सन्नाटा पसरा है। यहां होने वाली परंपरागत रामलीला भी अब नहीं होती है जिससे क्षेत्रीय जनों में मायूसी है। ऐसे में लोगों को राजा मांडा की कमी गहरे अखरती है।

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कोठी से तय होती थी देश व प्रदेश की सियासत

राजा मांडा की कोठी डेढ़ दशक पहले तक लोगों के आकर्षण का केंद्र बिंदु थी। राजा से मिलने के लिए लोगों की भीड़ लगा करती थी। घंटों तक इंतजार करना पड़ता था लेकिन इन दिनों वही कोठी वीरान सी पड़ी है, सन्नाटा पसरा रहता है। कभी इसी कोठी से देश और प्रदेश की सियासत बनती और बिगड़ती थी। लेकिन आज वैसा कुछ भी नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के 27 नवंबर 2008 में निधन के बाद जैसे सबकुछ उन्हीं के साथ चला गया हो।

शिक्षक से देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे

वीपी सिंह का शिक्षा क्षेत्र से भी गहरा नाता रहा। उन्होंने मांडा में ही गोपाल विद्यालय इंटर कॉलेज की स्थापना की और उसमें कई वर्षों तक पठन-पाठन का कार्य भी किया। उनकी एक योग्य शिक्षक के रूप में पहचान थी। वह हर कार्य पूरे मनोयोग से करते, राजनीति के क्षेत्र में पर्दापण किया तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व देश के वित्त एवं रक्षा मंत्री के के साथ प्रधानमंत्री की कुर्सी को भी सुशोभित किया।

बगैर किसी संगठन के कांग्रेस से छीनी सत्ता                          

आरक्षण पीडि़त आंदोलन कैंप के अध्यक्ष ओम प्रकाश दुबे पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को परिपक्व और कुशल राजनेता बताते हुए कहते हैं कि राजा मांडा ने बगैर किसी संगठन के कांग्रेस से सत्ता छीन लिया था। वीपी सिंह ने कांग्रेस की राजनीति को मंडल कमीशन की एक फाइल पर हस्ताक्षर कर उन्ही की भाषा में उत्तर दिया था।

राजा से जो एकबार मिलता उन्हीं का होकर रह जाता 

मांडा राज परिवार से जुड़े श्यामा प्रसाद सिंह बताते हैं कि राजा मांडा के नाम से पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाले वीपी सिंह सहृदय, सरल, ईमानदार, बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। ऐसा व्यक्तित्व अब देखने को नहीं मिलेगा। उनका कहना है कि जो उनसे मिलता था उन्हीं का रहकर हो जाता था। उनके निधन के बाद मांडा में अंधेरा छा गया।

अब नहीं होती रामलीला, दशहरा भी नहीं मनाया जाता

स्थानीय निवासी श्याम बिहारी मिश्र बताते हैं कि प्राचीन काल से चली आ रही मांडा की परंपरागत रामलीला 11 साल से नहीं हो रही है। यहां तक की दशहरा का पर्व भी नहीं मनाया जाता। सारी परंपराएं धीरे-धीरे खत्म कर दी गईं। वीपी सिंह के समय दशहरे के दिन कोठी पर मिलने वालों की भीड़ लगा करती थी। कचहरी में राजा का दरबार लगता था। निरंजनी व निर्वाणी अखाड़े के महंत दशहरे के दिन राजा को दशहरे की शुभकामनाएं देने आते थे। राजा भी परंपरा के अनुसार दोनों अखाड़ों और ढेरा तिर महाराज के यहां आशीर्वाद लेने जाते थे। अब लोगों को दशहरे के दिन निराश होना पड़ता है। इसको लेकर मांडा क्षेत्र के लोग कई बार दशहरे के दिन कोठी पर अपने गुस्से का इजहार भी कर चुके हैं। अब दशहरे के दिन कोठी के मेन गेट पर ताला बंद रहता है। कोठी के चारों ओर कटीले तार से बैरिकेटिंग कर दी गई है।            

डेढ़ सौ साल पुरानी है मांडा रियासत की रामलीला

स्थानीय निवासी ओम प्रकाश दुबे ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि राम जानकी ट्रस्ट के माध्यम से मांडा रियासत करीब डेढ़ सौ साल से रामलीला कराती थी लेकिन उनके उत्तराधिकारी ने एक दशक से उसे बंद कर दिया जबकि राम जानकी ट्रस्ट को सरकार द्वारा आॢथक सहायता भी दी जाती है। श्यामा प्रसाद सिंह भी मांडा रियासत की पारंपरिक रामलीला बंद किए जाने से आहत हैं। कहा कि बहुत गलत निर्णय था। इससे धाॢमक और हमारी संस्कृति को चोट पहुंची है।


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