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Sewage Treatment Plant of Prayagraj : एसटीपी के जीर्णोद्धार से बेहतर होगी पानी की गुणवत्ता, प्रदूषण भी होगा कम

Sewage Treatment Plant of Prayagraj कुंभ मेला 2013 के पहले शहर में एकमात्र सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नैनी में था। उसकी भी क्षमता केवल 60 एमएलडी की थी। हालांकि उस कुंभ के पहले शहर में पांच और नए एसटीपी का निर्माण किया गया।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 08:24 AM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 08:24 AM (IST)
Sewage Treatment Plant of Prayagraj : एसटीपी के जीर्णोद्धार से बेहतर होगी पानी की गुणवत्ता, प्रदूषण भी होगा कम
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के जीणोद्धार होने से शोधित पानी की गुणवत्ता में और सुधार होगा।

प्रयागराज, जेएनएन। शहर में छह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट यानी एसटीपी हैं। इन सभी एसपीटी का जीर्णोद्धार कराया गया है। जीणोद्धार होने से एसटीपी के शोधित पानी की गुणवत्ता में और सुधार होगा। इससे गंगा के पानी में भी प्रदूषण कम होने की उम्मीद है। ऐसा कहना है गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अफसरों का।

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कुंभ मेला 2013 के पहले शहर में एक ही एसटीपी नैनी में था

कुंभ मेला 2013 के पहले शहर में एकमात्र सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नैनी में था। उसकी भी क्षमता केवल 60 एमएलडी की थी। हालांकि उस कुंभ के पहले शहर में पांच और नए एसटीपी का निर्माण किया गया। इसमें मेंहदौरी में 60 एमएलडी क्षमता, नुमायाडाही में 50 एमएलडी क्षमता, अल्लापुर में बक्शी बांध पर 43 एमएलडी, पोंगहट में 10 एमएलडी और कोडरा में 50 एमएलडी क्षमता के बनाए गए एसटीपी शामिल हैं। नैनी एसटीपी की छमता भी 20 एमएलडी बढ़ाकर 80 एमएलडी की गई थी।

एसटीपी की निगरानी की जिम्मेदारी अडानी समूह कर रही

शुरू में इन सभी एसटीपी का रखरखाव गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई ही करती थी। करीब साल-डेढ़ साल पहले इन एसटीपी की निगरानी की जिम्मेदारी अडानी समूह को सौंप दिया गया। करीब सात साल बाद इन एसटीपी का जीर्णोद्धार कराया गया। एसटीपी की मशीनों के मेंटेनेंस के साथ ही अन्य व्यवस्थाएं भी ठीक कराई गई हैं। इकाई के अफसरों का कहना है कि इससे शोषित पानी की गुणवत्ता में और सुधार होगा।

नालों के पानी का भी जैविक विधि से शोधन शुरू

शहर के करीब 40 नाले अब भी गंगा और जमुना में सीधे गिरते हैं। इन नालों के पानी के जैविक शोधन के लिए नगर निगम की ओर से तीन एजेंसियां चयनित कर दी गई हैं। इन एजेंसियों द्वारा नालों के पानी की जैविक विधि से शोधन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इससे जो गंदा पानी सीधे नदियों में गिरता था, अब शोधित होने के बाद पानी जाएगा।


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