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इलाहाबाद हाई कोर्ट का निर्देश : निर्दोष लोगों पर न लागू हो गोवध संरक्षण कानून

Allahabad High Court इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि मांस बरामद होने पर फोरेंसिक लैब में जांच कराए बगैर उसे गोमांस बताकर निर्दोष व्यक्तियों को जेल भेजा जाता है। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश में गोवध अधिनियम को सही भावना के साथ लागू करने की जरूरत है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Mon, 26 Oct 2020 08:47 PM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 08:50 PM (IST)
इलाहाबाद हाई कोर्ट का निर्देश : निर्दोष लोगों पर न लागू हो गोवध संरक्षण कानून
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मनरेगा की दो लाख से अधिक की राशि हजम करने वाले ग्राम प्रधान को राहत दी

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश में गोवध संरक्षण कानून के दुरुपयोग व बेसहारा जानवरों की देखभाल की स्थिति पर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि सूबे में गोवध संरक्षण कानून का उपयोग निर्दोष लोगों के खिलाफ हो रहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने गोवध कानून के तहत जेल में बंद रामू उर्फ रहीमुद्दीन के जमानत प्रार्थना पत्र पर दिया है।

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि मांस बरामद होने पर फोरेंसिक लैब में जांच कराए बगैर उसे गोमांस बताकर निर्दोष व्यक्तियों को जेल भेजा जाता है। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश में गोवध अधिनियम को सही भावना के साथ लागू करने की जरूरत है। कोर्ट ने याची की जमानत मंजूर करते हुए उसे निर्धारित प्रक्रिया पूरी करके रिहा करने का आदेश दिया है। रामू के जमानत प्रार्थना पत्र में कहा गया था कि प्राथमिकी में याची के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं है। न ही वह घटनास्थल से पकड़ा गया है। पुलिस ने बरामद मांस की वास्तविकता जानने का कोई प्रयास नहीं किया कि वह गाय का मांस ही है या किसी अन्य जानवर का।

कोर्ट ने कहा कि ज्यादातर मामलों में जब मांस पकड़ा जाता है तो उसे गोमांस बता दिया जाता है। आरोपी को उस अपराध में जेल जाना पड़ता है। इसी प्रकार जब कोई गोवंश बरामद होता है तो कोई रिकवरी मेमो तैयार नहीं किया जाता है। किसी को नहीं पता होता है कि बरामदगी के बाद उसे कहां ले जाया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि गो-सरंक्षण गृह और गोशाला वृद्ध और दूध न देने वाले पशुओं को नहीं लेते हैं। पुलिस और स्थानीय लोगों द्वारा पकड़े जाने के डर से वे इन पशुओं को किसी दूसरे राज्य में ले नहीं जाते। ऐसे में दूध न देने वाले जानवरों को घूमने के लिए छुट्टा छोड़ दिया जाता है। ऐसे पशु किसानों की फसल बर्बाद कर रहे हैं। यही नहीं, ये बेसहारा जानवर सड़क और खेत दोनों जगह समाज को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। इन्हेंं गो सरंक्षण गृह या अपने मालिकों के घर रखने के लिए कोई रास्ता निकालने की आवश्यकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य में छोड़े गए मवेशियों और आवारा गायों को लेकर टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि किसी को नहीं पता होता गाय पकड़े जाने के बाद कहां जाती हैं। दूध न देने वाली गायों का परित्याग समाज को बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है।

सुनवाई का मौका न देने पर ग्राम प्रधान की बर्खास्तगी रद

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मनरेगा की दो लाख से अधिक की राशि हजम करने वाले ग्राम प्रधान को राहत दी है। प्रधान की बर्खास्तगी से पहले सुनवाई का मौका देने की कानूनी बाध्यता का उल्लंघन करने पर जिलाधिकारी एटा के प्रधान की बर्खास्तगी के आदेश को कोर्ट ने रद कर दिया है।

कोर्ट ने सुनवाई का मौका देते हुए याची के विरुद्ध जिलाधिकारी को नए सिरे से कार्रवाई की छूट भी दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने ग्राम प्रधान लोहचा नाहरपुर पुष्पा देवी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची के अधिवक्ता अरविंद कुमार सिंह का कहना था कि जिलाधिकारी ने पंचायतराज अधिनियम के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया है। याची के खिलाफ लगाए गए अधिकांश आरोपों को निराधार पाया गया है। केवल उसे मनरेगा योजना के दो लाख दो हजार 553 रुपये की अनियमितता का दोषी करार दिया है। याची को पद से हटाने से पहले कारण बताओ नोटिस जारी नहीं की गई जो कि कानून के तहत अनिवार्य है। वहीं, सरकारी अधिवक्ता का कहना था कि याची को कारण बताओ नोटिस जारी की गई है और उसकी तरफ से दिए गए स्पष्टीकरण को संतोषजनक नहीं पाया है। जांच रिपोर्ट के आधार पर बर्खास्त किया गया है।  


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