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Historical Tree of Prayagraj : प्रयागराज में आस्था के दरख्त को पहचान की है दरकार

Historical Tree of Prayagraj Jagran Special प्रयागराज के झूंसी में शेख तकी की मजार के पास मौजूद ऐतिहासिक वृक्ष की पड़ताल समय की मांग बन चुका है। ऐतिहासिक वृक्ष की आयु को लेकर अलग-अलग दावे किए हैं। अनुमान लगाया जा रहा है। हालांकि अब कार्बन डेंटिंग की जरूरत है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 09:11 AM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 09:11 AM (IST)
Historical Tree of Prayagraj : प्रयागराज में आस्था के दरख्त को पहचान की है दरकार
झूंसी में शेख तकी की मजार के पास मौजूद ऐतिहासिक वृक्ष की पड़ताल समय की मांग बन चुका है।

प्रयागराज, [सुरेश पांडेय]।  Jagran Special सदियों से धर्म-अध्यात्म की धरती रही है संगमनगरी। प्रकृति ने इसे बहुत कुछ दिया है। यहां यदि पुण्यदायी पवित्र त्रिवेणी है तो यमुना किनारे बनवाए गए अकबर के ऐतिहासिक किले में मौजूद अक्षयवट भी। कह सकते हैैं कि आस्थावानों को आस्था और विश्वास से लबरेज करने वाले ढेरों स्थल हैैं। ऐसा ही एक स्थल है पुरानी झूंसी में हवेलिया स्थित शेख तकी शाह की मजार के निकट मौजूद वृक्ष। इसकी उम्र को लेकर अलग-अलग अनुमान और दावे हैं।

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स्थानीय लोग इसकी उम्र 660 हिजरी यानी आठ सौ वर्ष से ज्यादा बताते हैैं। कुछ तो दावा करते हैैं कि यह परिजात का पेड़ है। ऐसा मानने वालों में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में वनस्पति विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. डीके चौहान तक हैैं। प्रामाणिक तौर पर कुछ भी बात साबित नहीं हो सकी है। कार्बन डेटिंग जैसी प्रक्रिया ही स्थिति स्पष्ट कर सकती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि प्राचीन वृक्षों के संरक्षण संबंधी प्रदेश सरकार की मौजूदा कवायद में यह काम यहां निकट भविष्य में हो जाएगा।

पांच हजार साल पुराना पेड़ होने का दावा

'टका सेर भाजी, टका सेर खाजा' वाली कहावत प्रयागराज के प्राचीन प्रतिष्ठानपुर, जिसे अब झूंसी के नाम से जाना जाता है से ही निकली है। शेख तकी शाह की मजार इसी क्षेत्र में है। गंगा तट के करीब। यहां लगे जिस वृक्ष को लेकर सदियों से कौतुहल रहा है उसे विलायती इमली भी कहा जाता है। इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास विभाग से जुड़े प्रोफेसर डीपी दुबे के मतानुसार यह वृक्ष अफ्रीका के अडंसोनिया डिजिटा प्रजाति का है। इसका एक अन्य अंग्रेजी नाम बोआब, इथोपियन (खट्टा-लौकी) है। वह बताते हैैं कि 19 वीं शताब्दी की शुरुआत में फाफामऊ में उस स्थान पर ऐसे ही तीन अन्य पेड़ थे जहां गुडिय़ा का मेला लगता था। उनका वजूद मिट चुका है।

प्रो. डीपी दुबे इस पेड़ की आयु साढ़े पांच हजार साल से ज्यादा मानते हैैं

शेख तकी की मजार के पश्चिम और समुद्रकूप टीले के दक्षिण में जो पेड़ गंगा तट पर था, वही अब बचा है। प्रो. डीपी दुबे इस पेड़ की आयु साढ़े पांच हजार साल से ज्यादा मानते हैैं। कहते हैैं कि यह कलियुग से पहले का पेड़ है। उन्होंने यह भी बताया कि वर्ष 1824-48 तक इलाहाबाद के तत्कालीन कलेक्टर व किले के कमांडेट की पत्नी फैनी पार्कों ने इसकी परिधि मापी थी। यह तब 37 फीट थी। अब भी करीब उतनी ही है। ऐसे पेड़ 65 से लेकर 78 फीट तक की परिधि में होते हैैं। प्रो. दुबे कहते हैैं कि लोग इस ऐतिहासिक व दुर्लभ पेड़ की छाल ले जा रहे हैैं, यह चिंता की बात है।  इसके संरक्षण के लिए शासन को इंतजाम करना चाहिए।

तने की मोटाई डालती है अचरज में

 हवेलिया स्थित शेखतकी शाह की मजार के निकट मौजूद इस वृक्ष के तने की मोटाई 17.3 मीटर है। इस वृक्ष का फूल काफी बड़ा होता है और फल लंबा तथा हरे रंग का।  तने की मोटाई लोगों को अचरज में डालती है। पेड़ का रखरखाव न होने से इसकी दशा बिगड़ती जा रही है। तने खोखले हो गए हैं। वैसे कुछ स्थानीय लोगों ने इसके संरक्षण की पहल अपने स्तर पर की है। तनों पर मिट्टी डलवाकर इसे ढंक दिया है, लेकिन यह कवायद कितनी सार्थक रहेगी, कह पाना मुश्किल है।

जुड़ी हैैं ढेरों किवदंतियां

इस वृक्ष से ढेरों किवदंतियां जुड़ी हैैं। इनमें एक यह भी है कि 15 वीं शताब्दी में कराची से आए बाबा शेख तकी शाह यहां रहते थे। एक बार वह दातून कर रहे थे। गंगा उफनाने लगीं। उनके शिष्यों ने उनसे आग्रह किया कि वह सुरक्षित स्थान पर चले लेकिन शेख तकी ने हटने से इन्कार कर दिया। अपने शिष्यों को आश्वस्त करते हुए कहा कि गंगा उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगी। उन्होंने दातून जमीन में खोंस दी। बाद में वही दातून, वृक्ष के रूप में आ गया। प्रयागराज की पौराणिकता, ऐतिहासिकता पर तमाम पुस्तकें लिख चुके वरिष्ठ पत्रकार व ज्योर्तिविद डा. रामनरेश त्रिपाठी का कहना है कि गुरुनानक व कबीर भी इस स्थल पर शेख तकी शाह से मिलने आए थे।

इससे लोगों की आस्था जुड़ी है : व्रतशील शर्मा

लेखक व्रतशील शर्मा कहते हैैं कि इससे लोगों की आस्था जुड़ी है। उनकी बात में दम लगता है। यहां दूरदराज से लोग यहां आते हैैं। तने में धागा बांधकर मन्नतें मांगते हैं और कामना पूरी होने पर पेड़ के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। छाल को पानी में भिगोकर पीने से पेट का दर्द, सीने की जलन कम होने की मान्यता है। यूरिन इंफ्क्ेशन में भी छाल को लाभकारी माना जाता है। वृक्ष की पत्तियां कसैले स्वाद की लबाबदार होती हैैं।

बाबा के श्राप से उल्टा हो गया किला

शेख तकी शाह जहां रहते हैैं वहीं नजदीक ही राजा हरिबोंग का किला था। एक जनश्रुति यह भी है कि किसी बात से नाराज होकर बाबा ने राजा को श्राप दे दिया, इससे किला उलट गया। यह बात उस समय की है जब इस पेड़ के बारे में कोई नहीं जानता था। धीरे-धीरे लोगों को इस पेड़ के बारे में जानकारी हुई तो यहां आकर पूजा-पाठ करने लगे। इस स्थल को लेकर सनातन मतावलंबियों की आस्था माघ मेले व कुंभ के दौरान खास तौर पर दिखती है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस वृक्ष के पास आकर माथा टेकते हैैं।


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