चौराहों पर जमा लिए ठीहे, गांवों में भी मिल रहा काम
कोरोना के चलते महानगरों से लौटे अधिकांश प्रवासी कामगार अपने काम में लग गए हैं। उन्हें गांवों में ही काम मिल गया है।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज : कोरोना के चलते महानगरों से लौटे अधिकांश प्रवासी कामगार अपने गांव आ गए हैं। उन्होंने खेती किसानी में परिवार का हाथ बंटाने के साथ जीविकोपार्जन के लिए काम भी तलाश लिया है। किसी ने चौराहे पर दुकान खोल ली है तो कोई टेंपो चलाने लगा है। मनरेगा तथा अन्य योजनाओं के तहत गांवों में चल रहे विकास कार्यो में भी लगे हैँ जिससे चार पैसे उनकी जेब में आ रहे हैं। इधर बारिश के चलते कुछ काम धीमा जरूर पड़ा है लेकिन अभी तो वे शहरों की ओर रुख नहीं करना चाहते हैं।
कोरांव के ढेरहन गांव के उपेंद्र कुशवाहा गुजरात में कपडे़ की कंपनी में काम करते थे, अब खेती कर रहे हैं, कोई दिक्कत नहीं है। सुनील कुमार भी सूरत में रहते थे अब गांव में खेती कर रहे हैं। कोलसरा के रामअभिलाष वर्मा मुंबई में वाचमैन थे, धोबहट के रमाशंकर पांडेय गार्ड थे लेकिन अब गांव में खेती कर रहे हैं। चमनगंज-कोरांव के सगे भाई विनीत और विष्णु केसरी मुंबई में अपना टेंपो चलाते थे, लाकडाउन में टेंपो लेकर घर चले आए जिससे वे अपनी जीविका चला रहे हैं। इसी तरह थरवई क्षेत्र के सहजीपुर गांव के 14 लोग विभिन्न महानगरों से लौटे हैं। अधिकांश अपनी खेती से जुड़ गए हैं। कुछ मनरेगा के तहत गांव में हो रहे विकास कार्यो में भी हाथ बंटा रहे हैं। सरकारी योजनाओं मुफ्त गल्ला के साथ नकद अनुदान भी मिला है। हालात सामान्य होने पर ही परदेश जाने की सोचेंगे। बहादुरपुर ब्लाक के बरईपुर निवासी जयचंद्र शर्मा वलसाड गुजरात में टेक्सटाइल कंपनी में कार्यरत थे अब नाई का अपना पुश्तैनी काम कर रहे हैं। यहीं के धीरज कुमार भी मुंबई से लौटे हैं अब पिता के साथ खेती में हाथ बंटा रहे हैं। टोडरपुर के अवनीश कुमार मुंबई में गार्ड थे। वे अब मुंबई कभी नहीं जाएंगे। बरईपुर के राकेश नारायण मुंबई में एक पेट्रोल पंप पर कार्यरत थे। घर पर खेती कर रहे हैं, कोई अच्छा रोजगार मिल गया तो वापस नहीं लौटेंगे।