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Ayodhya Ram Mandir : श्रीराम मंदिर आंदोलन का वाहक रहा शंकराचार्य आश्रम

Ayodhya Ram Mandir अलोपीबाग स्थित शंकराचार्य आश्रम में प्रवास करते हुए उन्होंने आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Thu, 30 Jul 2020 11:02 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jul 2020 04:46 PM (IST)
Ayodhya Ram Mandir : श्रीराम मंदिर आंदोलन का वाहक रहा शंकराचार्य आश्रम
Ayodhya Ram Mandir : श्रीराम मंदिर आंदोलन का वाहक रहा शंकराचार्य आश्रम

प्रयागराज, [शरद द्विवेदी]।  श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या पर दिव्य व भव्य मंदिर निर्माण का स्वप्न जल्द साकार होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों पांच अगस्त को भूमिपूजन के बाद संकल्पना आकार लेने लगेगी। यह संभव हुआ है लाखों संत-महात्माओं व श्रद्धालुओं के त्याग और समर्पण से। श्रीराम मंदिर आंदोलन को जनांदोलन में बदलने में जिन लोगों ने महती भूमिका निभाई थी उसमें ज्योतिष पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी शांतानंद सरस्वती प्रमुख थे। अलोपीबाग स्थित शंकराचार्य आश्रम में प्रवास करते हुए उन्होंने आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी।

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स्वामी शातांनंद ने देश के हर संप्रदाय के संतों को जोडऩे की पहल की

श्रीराम मंदिर आंदोलन को प्रभावी बनाने के लिए विश्व हिंदू परिषद के नई दिल्ली स्थित कार्यालय पर 1985 में निर्णायक बैठक हुई थी। इसकी अध्यक्षता शंकराचार्य स्वामी शांतानंद सरस्वती ने की। महंत अवेद्यनाथ, परमहंस रामचंद्र दास, महंत नृत्यगोपाल दास, जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, अशोक सिंहल, आचार्य गिरिराज किशोर आदि इसमें शामिल हुए थे। इस दौरान श्रीराम जन्मभूमि न्यास बनाने का निर्णय हुआ। अशोक सिंहल ने स्वामी शांतानंद से आग्रह किया कि वह धर्मगुरुओं का मार्गदर्शन करें। फिर स्वामी शातांनंद ने देश के हर संप्रदाय के संतों को जोडऩे की पहल की। इसमें उनके शिष्य और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने अहम भूमिका निभाई। स्वामी शांतानंद के 1990 में ब्रह्मलीन होने के बाद स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती इस काम में लगे रहे। शंकराचार्य आश्रम में उनकी अध्यक्षता में विहिप की कई अहम बैठकें हुई। 

संतों ने बनाया जनांदोलन : वासुदेवानंद

स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती कहते हैं कि जब आंदोलन शुरू हुआ तो मीडिया का स्वरूप वृहद नहीं था। हर कोने में अपनी बात पहुंचाना और लोगों को जोडऩा बहुत कठिन था। विहिप ने आंदोलन की कमान संतों को सौंप दी थी। संवाद, भजन, प्रवचन के जरिए हमने अपनी बात जन-जन तक पहुंचाई।

संतों व श्रद्धालुओं की प्रेरणा स्थली

आंदोलन जब चरम पर था तब शंकराचार्य आश्रम, संतों व श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा स्थली रहा। स्वामी शांतानंद व स्वामी वासुदेवानंद का मार्गदर्शन-आशीर्वाद लेने देशभर के संत व श्रद्धालु आते थे। वर्ष 1990 व 1992 में कारसेवा के दौरान भी आश्रम संतों व श्रद्धालुओं की आश्रयस्थली बना। संतों व श्रद्धालुओं को यहीं भोजन व विश्राम कराया जाता था। कारसेवक आश्रम के गेट पर मत्था टेककर आगे बढ़ते थे।


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