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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- गैर शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति DIOS के पूर्व अनुमोदन के बाद करना वैध

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि जिला विद्यालय निरीक्षक के पूर्व अनुमोदन के बाद ही गैर शैक्षणिक पदों पर विद्यालय के प्रबंधन समिति अथवा प्रधानाचार्य द्वारा नियुक्ति करना वैधानिक है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Fri, 24 Apr 2020 08:55 PM (IST)Updated: Fri, 24 Apr 2020 09:03 PM (IST)
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- गैर शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति DIOS के पूर्व अनुमोदन के बाद करना वैध
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- गैर शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति DIOS के पूर्व अनुमोदन के बाद करना वैध

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि शिक्षण संस्थानों में गैर शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) के पूर्व अनुमोदन के बाद ही की जा सकती है। ऐसा करना यूपी इंटरमीडिएट एजूकेशन एक्ट 1921 और इसके तहत बने रेगुलेशन के अंतर्गत बाध्यकारी है। हाई कोर्ट ने कहा कि जिला विद्यालय निरीक्षक के पूर्व अनुमोदन के बाद ही गैर शैक्षणिक पदों पर विद्यालय के प्रबंधन समिति अथवा प्रधानाचार्य द्वारा नियुक्ति करना वैधानिक है।

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न्यायमूर्ति विश्वनाथ सोमद्दर व न्यायमूर्ति डॉ. वाईके श्रीवास्तव की खंडपीठ ने याची (अपीलार्थी) ध्रुव कुमार पांडेय की एकल जज के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अपील को खारिज करते हुए यह निर्णय दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि शिक्षा अधिकारियों का यह दायित्व है कि वह सुनिश्चित करें कि कोई भी नियुक्ति यूपी इंटरमीडिएट एक्ट 1921 और इसके तहत बने विनियमों के अनुकूल हो।

दायर याचिका में जिला विद्यालय निरीक्षक बस्ती के 15 जुलाई, 2015 के आदेश को चुनौती दी गई थी। जनता इंटर कालेज नगर बाजार बस्ती में चतुर्थ श्रेणी के पद पर हुई नियुक्ति को अनुमोदन देने से इनकार कर दिया था। नियुक्ति से पूर्व शिक्षा विभाग से अनुमति नहीं ली गई थी तथा पत्रजातों पर प्रधानाचार्य के हस्ताक्षर नहीं थे। कहा गया था कि पांच वर्ष पूर्व की गई चयन की प्रक्रिया का अनुमोदन नहीं किया जा सकता। एकल जज ने याचिका खारिज कर दी थी।

विशेष अपील को खारिज करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता विनियम 101 के तहत निर्देशात्मक (मैंडेटरी) है। यह नियुक्ति पूर्व शर्त है। ऐसे में इस नियुक्ति से पूर्व पूर्वानुमोदन न लेने से नियुक्ति गलत है। इलाहाबाद हाई कोर्ट कहा कि रिकार्ड में ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जिससे यह कहा जा सके कि पद रिक्त होने की सूचना शिक्षा अधिकारी को दी गई थी।


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