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तिनका-तिनका जोड़कर बनाया घर, गंगा और यमुना के बाढ़ ने किया बेघर Prayagraj News

लाखों का मकान बनवाने वाले गंगा और यमुना नदियों के बाढ़ की वजह से राहत शिविरों में शरण लेने पर विवश हैं। गंगानगर बेली नेवादा बघाड़ा में घर बनवाने वाले अपने को छला महसूस कर रहे।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Thu, 19 Sep 2019 07:57 AM (IST)Updated: Thu, 19 Sep 2019 07:57 AM (IST)
तिनका-तिनका जोड़कर बनाया घर, गंगा और यमुना के बाढ़ ने किया बेघर Prayagraj News
तिनका-तिनका जोड़कर बनाया घर, गंगा और यमुना के बाढ़ ने किया बेघर Prayagraj News

प्रयागराज, [ज्ञानेंद्र सिंह]। पुलिस में दारोगा रहे शिवशंकर शुक्ला ने सेवानिवृत्त होने के बाद राजापुर के गंगानगर में प्लाट खरीदा। खुद दिनभर बैठकर सपनों का आशियाना बनवाए। लगभग एक करोड़ रुपये खर्च तीन मंजिला मकान बनवाने वाले शुक्ला परिवार के साथ तीन दिनों से रिश्तेदार के घर शरण लेकर रह रहे हैैं। वजह उनके घर में बाढ़ का पानी घुस गया है। भूतल तो पूरी तरह से डूब गया है। सोफा, बेड, फर्नीचर, एसी, कूलर, फ्रिज, किचेन का सामान भी पानी में डूब गया। बकौल शिवशंकर, इन सामानों को पहली या दूसरी मंजिल पर ले जाने का बाढ़ के पानी ने मौका तक नहीं दिया। रात में अचानक पानी बढ़ा और दूसरे दिन सुबह उन्हें ताला लगाकर मकान छोडऩा पड़ा। घर से कुछ कपड़े, नकदी, मकान की रजिस्ट्री के कागजात, पासबुक आदि ही वे साथ ले जा सके।

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बाढ़ के पानी में मकान डूबने से लोग कर चुके हैं पलायन

मोहल्ले के नीरज यादव, आजाद तिवारी, मो.कलीम, महेंद्र प्रताप सिंह, कंचन पटेल, राजेंद्र पटेल, विभूति नारायण मिश्र, शीतला मिश्र आदि भी मकान डूब जाने के कारण पलायन कर चुके हैैं। इसी तरह द्रौपदी घाट, पत्रकार कॉलोनी कछार, अशोक नगर कछार, नेवादा, मऊ सरैया, राजापुर, गंगानगर, बेली कछार, म्योराबाद, मेंहदौरी कछार, सलोरी, बघाड़ा, शिवकुटी, करैलाबाग, करेली, गड्ढा कालोनी, जेके आशियाना व गौसनगर आदि इलाकों में पिछले 15 से 20 वर्षों में देखते ही देखते हजारों मकान बन गए। सदर तहसील प्रशासन के अनुमान के मुताबिक गंगा व यमुना किनारे बने ऐसे मकानों की संख्या लगभग 70 हजार पहुंच गई है। काफी तादाद में अब भी मकानों का निर्माण हो रहा है, जिनका कार्य बाढ़ से अब रुक गया है।

खास-खास

- 02 दशक में तटीय इलाकों में बना दिए गए 60 हजार से ज्यादा घर

- 07 लाख के करीब लोग इन क्षेत्रों में रहते हैैं अपने व किराए के मकान में

- 15 हजार से ज्यादा मकान इन इलाकों के बाढ़ के पानी से जलमग्न

- 08 हजार मकान तो हाई फ्लड एरिया में देखते ही देखते बना दिए गए

बाढ़ के पानी में अपना आशियाना डूबता देख लोग परेशान

रिटायर्ड पुलिसकर्मी शिवशंकर कहते हैैं कि झूंसी में भी उन्हें प्लाट मिल रहा था मगर शहर से दूर होने के कारण वह वहां नहीं बसे। गंगानगर में इसलिए भी उनका ज्यादा रहा कि गंगा स्नान कर पाने का उन्हें पुण्य लाभ मिलेगा। दूसरे, प्लाट भी उन्हें सस्ता मिल गया था। कमोवेश, सस्ते में प्लाट मिलने के चलते ही सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक रवीश त्रिपाठी, व्यापारी ननकेश बाबू गुप्ता, सिंचाई कर्मी अमरेश सिंह आदि ने भी मकान बनवा लिया। इन लोगों ने मकान निर्माण में कोई कंजूसी भी नहीं की। आलीशॉन घरों में मार्बल, टाईल्स, स्टील की रेलिंग, बेहतरीन कांच की खिड़कियां और साखू के दरवाजे भी लगवाए। यही नहीं दीवारों पर महंगे से महंगा पेंट भी कराया।

राहत शिविर में लेना पड़ रहा शरण

ऋषिकुल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में बनाए गए राहत शिविर में चार दिनों से परिवार के साथ पहुंची नेवादा की सुमन सोनकर ने बताया कि बड़े ही अरमान से मकान बनवाया था। अब बाढ़ के कारण पूरी गृहस्थी छोड़़कर यहां बसेरा हो गया। कहती हैैं कि वह तथा उनके पति अपने शौक को नजरअंदाज कर मकान निर्माण में पैसा लगाया और आज उसी घर से उन्हें बेघर होना पड़ा। बेली कछार में मकान बनवाने वाले रमेश मौर्या, ङ्क्षहछलाल प्रजापति, राकेश चंद्र, मानवेंद्र मिश्र, कौशल किशोर शर्मा, रंगनाथ यादव और बघाड़ा में गंगा किनारे प्लाट खरीदकर घर बनवाने वाले कप्तान सिंह, अरुण वर्मा, नंदकिशोर, छत्रपति वाजपेयी, रविनंदन सिंह, विजय बहादुर, राबेंद्र कुशवाहा आदि ने कहा कि यहां बसकर उन्हें अब पछतावा हो रहा है। भले ही कुछ दिनों के लिए यह संकट है मगर वर्षों तक का कष्टदायक है। एक तो मकान और उसमें रखे सामान की चिंता और बाढ़ के दौरान जान का भी खतरा रहता है।

जागरण विचार

गंगा और यमुना किनारे बाढ़ क्षेत्र में निर्माण कराना गैरकानूनी है। मकान निर्माण कराने वालों को इसका पता भी था। यही नहीं निर्माण के दौरान न तो विकास प्राधिकरण ने रोका और न ही प्रशासन ने किसी प्रकार की कार्रवाई की। अहम यह कि निचले इलाकों में हजारों मकान निर्माणाधीन हैैं। कई मकान तो हाई फ्लड एरिया में बना दिए गए हैैं। सरकारी विभागों ने इन क्षेत्रों में सड़क, नाली, बिजली और पानी की व्यवस्था भी कर दी। अब बाढ़ आने पर मकान बनाने वाले तो बेघर हुए ही, प्रशासन भी हलकान है। बाढग़्रस्त क्षेत्रों में मकान बनवाने में जिंदगी भर की कमाई लगाकर फंसे लोगों की हालत देख कम से कम उन लोगों को सोचना चाहिए, जो अब भी इन क्षेत्रों में सपनों का घरौंदा बनाने की इच्छा पाले हैैं।


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