घर सा माहौल और मां जैसा दुलार, चहकते हैं दिव्यांग बच्चे Prayagraj News
सुनने देखने में लाचार मानसिक मंदित बच्चों को बचपन डे केयर सेंटर में पूरे समर्पण से देखभाल और प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन सब की निश्शुल्क व्यवस्था है।
प्रयागराज, [अंकुर त्रिपाठी] सुनने में असमर्थ करेली की चार वर्षीय अक्सा अनीस हो या बघाड़ा का पांच साल का अंशुमान, बचपन डे केयर सेंटर में सुबह नौ बजे शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए आते हैं तो फिर घर नहीं जाना चाहते। हम उम्र विशेष बच्चों के बीच शिक्षकों के दुलार-प्यार, देखभाल और बेहतर खानपान का जादू ही कहा जा सकता है कि घर लौटने का वक्त होता है तो वे मायूस हो जाते हैं। शिक्षकों को भी बच्चों से इस कदर लगाव है कि उनके घर जाने का समय होता है तो उन्हें कुछ बिछड़ता से महसूस होता है।
प्रदेश के 18 मंडल मुख्यालय में बचपन डे केयर सेंटर संचालित हैं
साज-सज्जा और संसाधन में किसी भी निजी स्कूल को मात देने वाले बचपन डे केयर सेंटर का संचालन प्रदेश सरकार के दिव्यांग जन सशक्तिकरण विभाग की ओर से किया जाता है। फिलहाल प्रदेश के 18 मंडल मुख्यालय में बचपन डे केयर सेंटर संचालित हैं। सात और सेंटर जल्द खुलेंगे। यहां स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल मार्ग स्थित बचपन डे केयर सेंटर को देखकर कह सकते हैं कि अन्य सरकारी योजनाओं और भवन की अपेक्षा यह कहीं ज्यादा बेहतर और सफल है।
बच्चों को यूनिफार्म, पुस्तकें, स्कूल बैग, भोजन निश्शुल्क मिलता है
केंद्र समन्वयक चंद्रभान द्विवेदी सात शिक्षकों संग पूरे मन के साथ 60 बच्चों की शिक्षा और देखरेख में जुटे रहते हैं। बच्चों को यूनिफार्म, पुस्तकें, स्कूल बैग, भोजन निश्शुल्क मिलता है। घर से लाने और पहुंचाने के लिए भी चार गाडिय़ां हैं। केंद्र में तीन से सात उम्र के श्रवण बाधित, दृष्टि बाधित और मानसिक मंदिता प्रभावित बच्चों की अलग कक्षाएं हैं। सात शिक्षिकाओं के साथ ही स्पीच थेरेपिस्ट, फिजियो थेरेपिस्ट और संगीत शिक्षिका भी हैं। सभी कक्ष खासे खूबसूरती से सजाए गए हैं ताकि बच्चों का मन लगा रहे। शिक्षिकाओं ने खुद बच्चों को लुभाने वाले चित्र बनाकर दीवारों पर लगाया है। देखने में लाचार बच्चों को ब्रेल लिपि से पढऩे का प्रशिक्षण दिया जाता है।
एक बजे तक सिर्फ बच्चों का ख्याल
यहां की शिक्षिका प्रीति ने बताया कि सुबह सेंटर आने के बाद दोपहर एक बजे तक इन बच्चों के अलावा और कुछ ख्याल नहीं रहता। लंच के वक्त बच्चों को कक्ष से बाहर हॉल में स्टूल-बेंच पर बैठाकर पौष्टिक खाना खिलाया जाता है। शिक्षक बच्चों को खाने में मदद करते हैं।