दोस्त का मिला संग, जीती पदकों की जंगः तीन नेशनल प्रतियोगिताओं में जीते स्वर्ण पदक aligarh news
मदद करने वाला दोस्त भी कोई धनवान नहीं बंटाई पर खेती करने वाला किसान है। वही उसे प्रतियोगिताओं में साथ लेकर जाता है। पिछले नौ सालों से लगातार गाढ़ी हो रही इस दोस्ती की मिसाल दी जात
गौरव दुबे, अलीगढ़। दोस्ती वह मिसाल होती है, जिसकी सरहद नहीं होती। एक दिव्यांग दोस्त को जरूरत पढ़ी तो 'कदम बढ़ गए। फिर दौड़ ऐसी लगाई कि राष्ट्रीय प्रतियोगिता के तीन पदक झोली में डालने के बाद भी पांव ठहरे नहीं हैं। मदद करने वाला दोस्त भी कोई धनवान नहीं, बंटाई पर खेती करने वाला किसान है। वही उसे प्रतियोगिताओं में साथ लेकर जाता है। पिछले नौ सालों से लगातार गाढ़ी हो रही इस दोस्ती की मिसाल दी जाती हैं।
बेमिसाल दोस्ती
यह दोस्त गौंडा रोड बड़ा गांव के रहने वाले हैं। दोनों पैर से दिव्यांग आर्म रेसलर संतोष राय की 2010 में जिले के ही नगला मसानी निवासी एक पैर से दिव्यांग संजीव यादव से आगरा में मुलाकात हुई। वे दिव्यांग क्रिकेटर हैं। दोनों प्रतियोगिता में शामिल होने गए थे। कुछ देर की बातचीत में ही दोस्ती का रंग गहरा होने लगा। संतोष को किसी प्रतियोगिता में जाने व कागजी कार्रवाई के लिए संजीव अपनी बाइक के साथ हमेशा तैयार रहते। वे अपने भाई से गाड़ी मांगते और 10 किलोमीटर दूर संतोष के घर जाकर उन्हें साथ लेकर चल पड़ते। उसे खेल में आगे बढ़ाने के लिए संजीव ने बटाई पर खेती की और 50 हजार रुपये की मदद की। सभी प्रतियोगिताओं में संतोष अपने दोस्त संजीव के साथ ही गए। वे बताते हैं कि तीन नेशनल आर्म रेसलिंग चैंपियनशिप में भी संजीव के सहारे शामिल हो सके। 2017 में हंगरी में इंटरनेशनल चैंपियनशिप में नाम आया। अब दिसंबर में टर्की की इंटरनेशनल चैंपियनशिप में भी नाम आ गया है।
दुकान कराकर दिया रोजगार
संतोष की एक बात संजीव को ऐसी चुभी कि रोजगार की समस्या का ही निदान कर डाला। एक दिन शादी की बातचीत पर संतोष ने कहा था संजीव तुम्हारी शादी हो गई, इसी में खुश हूं। तंग हाल में कभी शादी न करने का मन बना चुका हूं। इसी बात ने संजीव को झकझोर दिया। बटाई पर खेती कर संजीव ने 20 हजार रुपये जोड़े और गांव में ही संतोष को मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान खुलवा दी।
संजीव का संघर्ष कम नहीं
नगला मसानी खैर निवासी संजीव यादव बताते हैं कि छह साल पहले उनकी मां ओमवती देवी और एक साल पहले उनके पिता लक्ष्मीनारायण यादव का देहांत हो गया। घर पर डेयरी का काम था जो खत्म हो गया। अब वे बटाई पर खेती कर पत्नी व दो बच्चों को पालते हैं। एक दर्जन नेशनल दिव्यांग क्रिकेट टूर्नामेंट खेल चुके हैं। यूपी एथलेटिक्स संघ के संयुक्त सचिव शमशाद निसार आजमी ने बताया कि दोनों खिलाड़ी मेरे संपर्क में रहे हैं। संजीव ने संतोष की बहुत मदद की है। दुकान भी कराई। ऐसी दोस्ती हर किसी के लिए मिसाल है।
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