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सरकार चाहे प्रदेश की हो या शहर की, हर जगह इनका वर्चस्व Aligarh news

शहर की सरकार के मुखिया भी सलाहकारों से घिरे रहते हैं। दिन की शुरुआत कैसे करनी है कहां जाना ठीक रहेगा और कहां नहीं। खासकर पब्लिसिटी ज्यादा कहां मिलेगी इस पर फोकस रहता है।

By Parul RawatEdited By: Published: Wed, 29 Jul 2020 08:00 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jul 2020 08:00 PM (IST)
सरकार चाहे प्रदेश की हो या शहर की, हर जगह इनका वर्चस्व Aligarh news
सरकार चाहे प्रदेश की हो या शहर की, हर जगह इनका वर्चस्व Aligarh news

अलीगढ़ [जेएनएन]। सलाहकार रखने की परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है। तब राजा, महाराजाओं के हुआ करते थे, आज इन्हीं की सलाह पर सरकारें चल रही हैं। सरकार चाहे प्रदेश की हो या शहर की, हर जगह इनका वर्चस्व है। शहर की सरकार के 'मुखिया' भी सलाहकारों से घिरे रहते हैं। दिन की शुरुआत कैसे करनी है, कहां जाना ठीक रहेगा और कहां नहीं। खासकर पब्लिसिटी ज्यादा कहां मिलेगी, इस पर फोकस रहता है। इसके लिए चाहे साइकिल चलानी पड़े, पौधे लगाने पड़ें, या फिर कैमरे से सामने लोगों को झूठे दिलासे ही क्यों न देने पड़ें। प्रचार-प्रसार की गारंटी सलाहकारों की होती है, करते भी हैं। कुछ में तो अच्छा-खासा खर्चा भी मिल जाता है। फिर क्या, 'मुखिया' चर्चा से खुश और सलाहकार खर्चा से। हालांकि, कुछ मामलों में सलाह उल्टी भी पड़ गई। खर्चा तो खूब कराया, लेकिन चर्चा कहीं नहीं हुई, बल्कि सवाल और खड़े हो गए।

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तो विधानसभा में उठाओ मुद्दा

'शर्मा जी' इन दिनों बड़ी दुविधा में हैं। खाद की कालाबाजारी पर आपत्ति जताई तो चर्चा में आ गए, शिकायत की तो लोगों की नजरों में आ गए और जबसे कार्रवाई पर अड़े हैं, तभी से सभी पीछे पड़े हैं। कालाबाजारी करने वाले तो आंखें दिखा ही रहे हैं, 'खलिहान' वालों ने भी अब आंखें सुर्ख कर ली हैं। शिकायत पर जांच में तो कुछ हुआ नहीं, 'शर्मा जी' को घेरने की तैयारी पूरी है। संगी-साथियों को भी लपेटा जा रहा है। खाद से भी इस सीजन इन्हें महरूम कर दिया गया। गुहार लगाने ये सभी 'सि‍ंह साहब' के दरबार में गए थे, लेकिन 'दहाड़' सुनकर सहम गए। 'सि‍ंह साहब' बोले, 'दफ्तर क्यों, विधानसभा में उठाओ मुद्दा, वहीं होगी सुनवाई। अपना सा मुंह लेकर सभी लौट गए। अब सोच रहे हैं, 'शिकायत से क्या मिला, जैसा था चलने देते। काम-धंधा तो छूटा ही, अब नसीहतें भी झेलनी पड़ रही हैं।

ऊंची पहुंच तो मौज ही मौज

सरकारी नौकरी में आरामतलबी तभी मुमकिन है, जब पहुंच ऊंची हो। अगर राजनेताओं से गलबहियां हैं, तो फिर कहने ही क्या। फिर तो हर काम आसान ही है। सफाई वाले महकमे में तैनात एक साहब कुछ ऐसी ही नौकरी कर रहे हैं। सालों का उन्हें तजुर्बा है और होशियार भी बहुत हैं। सरकार बदलते ही खुद को बदलने में जरा भी देर नहीं करते। हर पार्टी का झंडा अपनी जेब में लिए घूमते हैं। जरूरत के हिसाब से इनका इस्तेमाल करने में इन्हें महारत हासिल है। ऐसा नहीं कभी इन पर संकट नहीं आया हो, कुछ मामलों में तो बुरी तरह घिर गए। शुक्र है तिलकधारी का, अपनों का लिहाज कर लिया। वरना, उस संकट से उबरना मुश्किल था। महकमे वाले भी उन्हें अब तवज्जो देने लगे हैं। आखिर, उनके भी बहुत से काम होते हैं जिनमें सिफारिशें ही काम आती हैं। दुधारू गाय को कोई कैसे छोड़े और क्यों?

 विभाग एक, काम अनेक

सामान्य तौर पर कर विभाग का काम कर वसूली होता है। कितना कर कहां से आया, कितना किस पर बकाया है, सारा हिसाब-किताब यहीं रखा जाता है, लेकिन सफाई वाले महकमे का कर विभाग तो मल्टीपरपज है। कर वसूली के साथ बाकी तमाम काम भी देख रहा है। हाल ही में इस विभाग को एक नया काम और मिला है। वो है, जन्म-मृत्यु के हिसाब का। किसने कहां जन्म लिया, कौन कहां मर गया, इसका प्रमाण पत्र अब यही विभाग देगा। काम भी चार जोन में बांट दिया है। कर अधीक्षक जोनल अधिकारी बना दिए गए हैं, जो कर वसूली के साथ अतिक्रमण, सड़क, सफाई के अलावा जन्म-मृत्यु का प्रमाण पत्र भी देने लगे हैं। फील्ड पर निकलते हैं तो अक्सर लोग इन्हें प्रमाण पत्र के लिए टोक देते हैं। तब स्थिति ऐसी होती है कि कुछ कह भी नहीं सकते। बस, आश्वासन देकर लोगों को टाल दिया जाता है।


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