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जब व्यवस्था में हो छेद, तो कैसा धूमपान निषेध, अलीगढ़ में सार्वजनिक स्थलों पर भी कानून की धज्जियां

सार्वजनिक स्थलों पर धूमपान के खिलाफ भले ही सख्त कानून बन गया हो मगर वह लागू नहीं हो पा रहा। वजह जब व्यवस्था में ही छेद हो तो कानून का पालन कौन कराए?

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Wed, 13 Mar 2019 10:32 AM (IST)Updated: Wed, 13 Mar 2019 10:32 AM (IST)
जब व्यवस्था में हो छेद, तो कैसा धूमपान निषेध, अलीगढ़ में सार्वजनिक स्थलों पर भी कानून की धज्जियां
जब व्यवस्था में हो छेद, तो कैसा धूमपान निषेध, अलीगढ़ में सार्वजनिक स्थलों पर भी कानून की धज्जियां

अलीगढ़ (विनोद भारती)।  सार्वजनिक स्थलों पर धूमपान के खिलाफ भले ही सख्त कानून बन गया हो, मगर वह लागू नहीं हो पा रहा। वजह, जब व्यवस्था में ही छेद हो तो कानून का पालन कौन कराए? जबकि, युवाओं में यह लत तेजी से बढ़ रही है और उनकी जीवन पर खतरा मंडरा रहा है। आइए, आज धूमपान निषेध दिवस के अवसर पर तंबाकू नियंत्रण अधिनियम का सच जानें...

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सिगरेट के धुएं में खतरनाक रसायन

पन्नालाल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर की कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. संगीता सिन्हा के अनुसार सिगरेट या बीड़ी के धुएं में निकोटीन, कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन साइनाइड, आर्सेनिक, अमोनिया, सीसा, बेंजीन, ब्यूटेन, कैडमियम, हेक्सामाइन व टोल्यूनि आदि हानिकारक रसायन पाए जाते हैं। इससे सीओपीडी (सांस नली का सिकुडऩा) व हृदय संबंधी बीमारी ही नहीं, फैंफड़े, मुंह, ध्वनि, खाने की नली, पेट, लिवर आदि के कैंसर का खतरा भी है। युवाओं में इनकी बढ़ती लत, चिंता की बात है। छोटे बच्चों, बुजुर्गों व गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद खतरनाक है।

उदासीन तंत्र

अधिनियम के अन्तर्गत धूमपान व गुटखा आदि का इस्तेमाल रोकने के लिए 21 सरकारी विभागों में नोडल अधिकारी नियुक्त किए जाने थे, जो परिसर का भ्रमण कर दोषी का चालान काटते और उससे 200 रुपये तक का जुर्माना वसूलते, मगर यहां जुर्माना वसूलना तो दूर तमाम विभागों में चेतावनी तक चस्पा नहीं हुई।

नशा मुक्ति केंद्र

दीनदयाल अस्पताल में नशा मुक्ति केंद्र की स्थापना होनी थी। यहां बीड़ी, सिगरेट, खैनी, गुटखा, शराब, अफीम, गाजे की लत के शिकार लोगों का दवाओं व मनोवैज्ञानिक पद्धति से इलाज होना था। इसके लिए डिस्ट्रिक्ट कंसल्टेंट, सोशल वर्कर व मानसिक रोग विशेषज्ञ या काउंसलर की नियुक्ति होनी थी, जो आज नहीं हो पाई।

सचल दल भी नहीं बने: नगर मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में आबादी के अनुसार सचल दलों का गठन होना था। इसमें आयकर, वाणिज्यकर, राजस्व कर, स्वास्थ्य विभाग, परिवहन, श्रम विभाग, पुलिस, एफडीए के अधिकारी शामिल किए जाने थे। सचल दस्ते को सार्वजनिक स्थलों का औचक निरीक्षण कर धूमपान व गुटखा चबाने वाले लोगों का चालान काटने के निर्देश दिए गए। अफसोस, इस दिशा में भी कोई पहल नहीं हुई। यही नहीं, निर्देशानुसार धूमपान जोन तक नहीं बने।

मात्र 4000 रुपये का जुर्माना:

दो साल पूर्व राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण अधिनियम के तहत केवल स्वास्थ्य विभाग ने ही थोड़ी पहल की। महिला अस्पताल, दीनदयाल व नोडल अधिकारी (जिला तंबाकू नियंत्रण प्रकोष्ठ) ने ही बतौर जुर्माना करीब 4000 रुपये की धनराशि वसूली। जिला तंबाकू नियंत्रण प्रकोष्ठ के नोडल अधिकारी डॉ. एसपी सिंह ने बताया कि सीएमओ कार्यालय को तंबाकू मुक्त कर दिया है। ज्यादातर विभागों से कार्रवाई की शून्य रिपोर्ट प्राप्त हो रही है। वजह, स्टाफ की कमी बताई जाती है। इस संबंध में जल्द रणनीति बनाई जाएगी।


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