जिंदगी जब ठहरी और सहमी थी तब 'उम्मीद' ने थामा था दामन, जानिए पूरा मामला Aligarh news
जिंदगी जब ठहरी और सहमी थी कोरोना का कहर बरस रहा था। हर सांस जिंदगी व मौत के बीच में जूझ रही थी। तमाम लोग भूख से तड़प रहे थे प्रवासी मजदूर दाने-दाने को मोहताज थे। ऐसे समय में उम्मीद सामाजिक संस्था आगे आई।
राजनारायण सिंह, अलीगढ़ । जिंदगी जब ठहरी और सहमी थी, कोरोना का कहर बरस रहा था। हर सांस जिंदगी व मौत के बीच में जूझ रही थी। तमाम लोग भूख से तड़प रहे थे, प्रवासी मजदूर दाने-दाने को मोहताज थे। ऐसे समय में उम्मीद सामाजिक संस्था आगे आई। संस्था के पदाधिकारियों ने दो माह तक ऐसे लोगों तक भोजन पहुंचाया। संस्था के सदस्य हाईवे से लेकर शहर की गलियों तक में घूमे। कहीं भी कोई भूखा मिला, उसे खाना दिया। हालचाल पूछा, जिससे उम्मीद बंधी रहे। टीम ने प्रतिदिन करीब 500 पैकेट भोजन के बांटे। इसके बाद भी लगातार खाद्य सामग्री बांट रहे हैं।
संस्था की पूरी टीम को सलाम...
कोरोना की पहली लहर से पूरा देश पस्त हो चुका था। अलीगढ़ में भी लोगों का हाल-बेहाल हो गया था। शहर के बाहर हाईवे से प्रवासी मजदूरों का सैलाब उमड़ रहा था। दिल्ली से तमाम प्रवासी मजदूर पैदल ही आ रहे थे। कई दिनों से भूखे होने से बदहवास थे। पुरुषों के सिर पर गठरी तो महिलाओं की गोद में बच्चे थे। उम्मीद सामाजिक संस्था के अध्यक्ष राजेश कुमार अग्रवाल (संगम) ने यह हाल देखा तो आंखें भर आईं। उस समय लाकडाउन था, इसलिए फोन पर टीम के पदाधिकारियों से बात की और भोजन के पैकेट बांटने का निर्णय लिया। टीम में 175 सदस्य हैं। सभी ने सहयोग किया। करीब तीन लाख रुपये एकत्र हुए और 25 मार्च से जिला अस्पताल के सामान दानपुर कंपाउंड में भोजन के पैकेट बनाने की तैयारियां शुरू हो गईं।
सुबह से जुटती थी टीम
राजेश बताते हैं कि उस समय कोरोना चरम पर था। सड़कें सन्नाटे के आगोश में थीं। इसलिए सभी सदस्यों को नहीं बुलाया जाता था। नौ बजे तक 500 भोजन के पैकेट तैयार हो जाते थे। उन्हें लोडर में रखकर हाईवे की ओर टीम निकलती थी। कहीं भी कोई भूखा मिलता, उसे भोजन का पैकेट, पानी की बोतल देती थी। साथ में बिस्किट, नमकीन भी रखा गया था, जिसे छोटे बच्चों को दिया जा सके। शहर में बस अड्डों, रेलवे स्टेशन, मंदिर आदि पर भी टीम पहुंचती थीं। दोपहर तीन बजे तक भोजन बांटा जाता था।
आर्थिक मदद भी की
राजेश बताते हैं कि बिहार का एक मजदूर परिवार खेरेश्वरधाम के निकट हाईवे पर मिला। भोजन के पैकेट देख बच्चे को गोद में लिए दौड़ पड़ा। उस समय हमारे पास पांच पैकेट ही थे। पैकेट पाते ही मजदूर, उसकी पत्नी और तीन बच्चे भोजन करने लगे। मुझे महसूस हुआ कि यह भोजन उनके लिए पर्याप्त नहीं है। फिर उन्हें लोडर में बिठाकर जिला अस्पताल तक लाए। यहां खाना खिलवाया। पैसे दिए और खाने-पीने का सामान देकर उन्हें हाईवे पर जहां से बस मिलती थी, वहां तक छुड़वाया।
लगातार कर रहे हैं मदद
राजेश अग्रवाल की टीम आज भी लोगों की मदद कर रहे हैं। इस समय आटा, चावल, तेल, मसाला आदि भेजा जा रहा है। कुछ परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब होने पर गैस सिलेंडर भिजवाया गया।