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हमने देखी गणतंत्र की पहली सुबहः सड़कों पर उत्साह था, किसी ने प्रभात फेरी निकाली तो कहीं ने बांटे बताशे

सैकड़ों साल की गुलामी के बाद देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया, मगर भारतीय जनमानस का संविधान 26 जनवरी 1950 को ही मिला।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Sat, 26 Jan 2019 01:16 AM (IST)Updated: Sat, 26 Jan 2019 10:07 AM (IST)
हमने देखी  गणतंत्र की पहली सुबहः सड़कों पर  उत्साह था, किसी ने प्रभात फेरी निकाली तो कहीं ने बांटे बताशे
हमने देखी गणतंत्र की पहली सुबहः सड़कों पर उत्साह था, किसी ने प्रभात फेरी निकाली तो कहीं ने बांटे बताशे

अलीगढ़ (जेएनएन)।  सैकड़ों साल की गुलामी के बाद देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया, मगर भारतीय जनमानस का संविधान 26 जनवरी 1950 को ही मिला। नई पीढ़ी भले ही गणतंत्र दिवस की महत्ता को न समझती हो, मगर उस जमाने के लोगों में गणतंत्र दिवस की पहली खुशनुमा सुबह आज भी जीवंत है। हर साल यह दिन उस सुबह की ओर बहा ले जाता है। जिस शान के साथ आज तिरंगा लहराया जाएगा, तब भी तिरंगा स्वाभिमान के साथ लहराया गया था। चारों तरफ जश्न का माहौल था। गुड़, लड्डू, बताशे बांटे गए। स्कूलों से प्रभात फेरियां निकाली गईं। युुवाओं की टोलियां नारेबाजी कर रही थीं। 'दैनिक जागरणÓ ने गणतंत्र दिवस की उस पहली सुबह का दीदार करने वाले लोगों से खास बातचीत की। उन्होंने क्या कहा? आप भी जानिए...

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स्वयंसेवकों को देख गदगद था

सुरेंद्र नगर निवासी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संत रविदास नगर के संघचालक सुरेश चंद्र अग्रवाल पुरानी यादों में खो जाते हैं। वो कहते हैं कि 1950 में वह आठवीं कक्षा में थे। स्कूल में खुशियां मनाई जा रही थी। 1963 में 26 जनवरी को मैं परेड देखने दिल्ली गया। वहां पर आरएसएस के स्वयंसेवकों द्वारा पथ संचलन देखकर मैं गदगद हो गया। क्योंकि, मैं बाल्यकाल से ही संघ से जुड़ा हुआ था।

 

कलक्ट्रेट पर पहुंच गया

पठानान मुहल्ला निवासी अब्दुल मलिक भले ही 102 वर्ष के हो गए हों, मगर उनके अंदर आज भी उसी प्रकार को जोश है। वो कहते हैं कि 15 अगस्त 1947 में ही उनके वालिद ने उन्हें आजादी के रंग उन्होंने देख लिए थे। इसलिए 26 जनवरी 1950 को वह परिपक्व हो गए थे कि इस हमारा संविधान लागू होगा और लाल किले पर तिरंगा फहराया जाएगा। मुझे रातभर नींद नहीं आई। 26 जनवरी वाले दिन मैं कलक्ट्रेट पर पहुंच गया। हर कोई एक-दूसरे को गले लगाकर बधाई दे रहा था। बस ऐसा लग रहा था कि मानों पूरे जहान की खुशी मिल गई।

 

स्कूल में फहराया तिरंगा

अवंतिका फेस वन निवासी देव नारायण भारद्वाज असिस्टेंट डायरेक्टर एग्रीकल्चर के पद से सेवानिवृत हैं। उम्र के 81 वसंत देख चुके हैं, मगर 26 जनवरी 1950 की यादें आज भी उनके जेहन में तरोताजा हैं। वह कहते हैं कि उस समय वह पांचवी क्लास में थे। आजादी के बारे में उन्हें बहुत याद नहीं था, मगर 26 जनवरी की स्कूल में तैयारी की गई थी। वह अपने दोस्तों के साथ स्कूल पहुंचे। झंडा फहराया गया। हमारे टीचर ने बताया कि आज हमारा संविधान लागू हुआ है।  स्कूल से लौटते हुए पूरे रास्ते भर जो भी मिलता मैं जोर-जोर से बताता कि आज हमें पूरी आजादी मिल गई है।

 

सड़कों पर थी उमंग

मोती मिल कंपाउंड निवासी समाजसेवी राजाराम मित्र बताते हैं कि 26 जनवरी 1950 को उनकी उम्र आठ वर्ष थी। उस दिन सड़कों पर उमंग और उत्साह लोगों में था। उस समय पक्की सराय में रहता था। एक व्यक्ति नारे लगाते हुए जा रहा था। मैंने अपने पिताजी ज्वाला प्रसाद से पूछा कि ये क्यों नारे लगा रहे हैं? उन्होंने मुझे बताया कि आज गणतंत्र की स्थापना हुई है। मैं अपने एक साथी के साथ महावीर गंज, बड़ा बाजार, फूल चौक बाजार निकल गया। हर तरफ खुशियां मनाई जा रही थी।

 

समारोह देखने अलीगढ़ आए

1933 को जन्मे विक्रमगंज (पिसावा) के श्योपाल सिंह ने बताया कि प्रथम गणतंत्र दिवस पर चहुंओर उल्लास छाया था। चाचा कृपाल सिंह ने मुझे विलायती लोगों के जुल्म-ओ-सितम के बारे में बताया कि किस कदर उनके डर से घर में छिपना पड़ता था। अब देश को आजादी मिल गई है। देश में हमारे खुद के कानून होंगे। यह सुनकर मैं भी उनके साथ गणतंत्र दिवस समारोह देखने चल दिया। अलीगढ़ में पर्व जैसा माहौल था। मैंने शाम को साथियों को आकर सारी बातें बताईं।

 

बच्चों ने मचाया धमाल

रूपनगर (पिसावा) के पूर्व प्रधान जयपाल सिंह की उम्र 84 साल हो चुकी है। कुरेदने पर बताते हैं कि पिसावा किले की ओर से गांव में गणतंत्र दिवस की मुनादी कराई गई। गांव के बड़े-बुजुर्ग कार्यक्रम में शामिल होने गए तो बच्चे भी उत्सुकतावश पैदल ही खाने-पीने का सामान लेकर चल दिए। हमें बीच रास्ते से ही लौटा दिया गया। गांव में लौटे तो महिला- पुरुष चौपाल पर इकट्ठे होकर गणतंत्र दिवस के बारे में बातें कर रहे थे। इस दौरान खूब नाच-कूद हुआ। बच्चों की टोली ने कागज का झंडा लेकर पूरे गांव में चक्कर लगाए। खूब धमाल मचाया। आज भी वो दिन याद है।

वो दिन शायद अब कभी न आएगा

नगला मल्लाह निवासी 78 वर्षीय मोहम्मद अलाउद्दीन बताते हैं कि उस समय हमारा परिवार गांव नगला बरला में रहता था। मुझे थोड़ा-थोड़ा याद है। कई दिन से खबर मिल रही थी कि 26 जनवरी को हमारा संविधान लागू होगा, जो देश के लिए बड़ी बात है। लोगों को इस दिन का बेसब्री से इंतजार था। 26 जनवरी को लोग सुबह जल्दी जाग गए। उत्साह देखकर लग रहा था कि बहुत खुशी का दिन है। वो दिन अब शायद कभी नहीं आएगी, क्योंकि नेताओं ने सब बर्बाद कर दिया।

 

अब पहले जैसी उत्सुकता नहीं

सुरेंद्र नगर निवासी 84 वर्षीय हरिशंकर शर्मा सिंचाई विभाग के जिलेदार पद से सेवानिवृत्त हैं। बताते हैं कि छर्रा के गांव भुडिय़ा में परिवार के साथ रहते थे। पड़ोस के गांव सिरसा स्थित प्राइमरी स्कूल में पढऩे जाते थे। 26 जनवरी 1950 को भी स्कूल खुला था। पिताजी ने बताया कि स्कूल जरूर जाना है। गांव के अन्य बच्चों के साथ पैदल ही कई किलोमीटर दूर स्कूल गया। गरीबी बहुत थी। स्कूल में ध्वजारोहण होना था। क्रांतिकारियों का एक पुराना झंडा मिला, जिसमें चक्र की बजाय गांधी जी का चरखा बना था। ध्वजारोहण के बाद मास्टर जी ने बताशे बांटे। देशभक्ति के गीत गाए गए। आसपास के गांवों में प्रभात फेरी निकाली गई। वह दिन आज भी मुझे याद है। आज आजादी व गणतंत्र दिवस को लेकर पहले जैसी उत्सुकता व सम्मान नजर नहीं आता।


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