वैद्यों से पहचाना जाता है विजयगढ़ जानिए वजह Aligarh news
विजयगढ़ को वैद्यों की नगरी भी कहा जाता है ये बात तो आप सबने सुनी होगी। लेकिन इसका नाम वैद्यों को नगरी क्यों पड़ा इसका भी रोचक इतिहास है।
अलीगढ़ [कोमल सिंह नरुका] विजयगढ़ को वैद्यों की नगरी भी कहा जाता है, ये बात तो आप सबने सुनी होगी। लेकिन इसका नाम वैद्यों को नगरी क्यों पड़ा इसका भी रोचक इतिहास है। यहां 18वीं सदी से ही वैद्यों की बड़ी संख्या होने के कारण कस्बे को वैद्य नगरी भी कहा जाता है। पुराने दशकों में नगर को आयुर्वेदिक दवाओं के लिए दूर-दूर तक ख्याति प्राप्त थी। इसीलिए लोग इसे वैद्य नगरी के नाम से भी पुकारते हैैं। प्रदेश के ऐसे छोटे से कस्बे में कई कंपनियां आज भी आयुर्वेदिक दवा का निर्माण करती हैं।
यूं हुई शुरुआत
रोगियों के उपचार की शुरुआत 1825 ईस्वी में अलीगढ़ से आकर बसे दौलत राम तिवारी ने की थी। इनके देहांत के बाद भतीजे गोपाल दास तिवारी ने 1860ई में यह काम आगे बढ़ाया। उन्हें नाड़ी विशेषज्ञ के रूप में जाना जाता था। लोगों के अनुसार वह लाइलाज रोगियों की मृत्यु तिथि पहले ही बता देते थे। उन्हें राज वैद्य कहा जाता था। उन्होंने उस जमाने में एक जड़ी-बूटियों की फैक्ट्री भी खोली थी। उन्हीं के समकक्ष वैद्य राधा वल्लभ अग्रवाल थे, जिन्होंने ब्रिटिश काल में कलकत्ता में रहकर 12 वर्ष तक चिकित्सा की। वहां तत्कालीन अंग्रेज वायसराय की चिकित्सा कर विशेष ख्याति प्राप्त की।
1928 ई में आयुर्वेद फॉर्मेसी की स्थापना की
रोगियों का इलाज करने के साथ साथ कस्बा में 1928 ई में एक आयुर्वेद फॉर्मेसी की स्थापना की। उनके देहांत के बाद इनके साले वैद्य बांकेलाल गुप्त ने फैक्ट्री का कार्य भार संभाला। कुछ समय बाद भांजे वैद्य देवी शरण गर्ग को जिम्मेदारी देकर एक अलग दवा निर्माण फैक्ट्री शुरू की। इनके अलावा नगर में वैद्य गुरु दत्त शर्मा, वैद्य कृष्ण गोपाल गुप्त, वासुदेव मिश्र पूर्व के नामी वैद्य थे। आज भी इन्हीं परिवारों में से परंपरागत वैद्य चिकित्सा का कार्य बरकरार है। तिवारी खानदान से वैद्य अखिल तिवारी व प्राणाचार्य से वैद्य स्वदेश गोयल परंपरागत चिकित्सा कर रहे हैैं।
बिना पूछे बताते थे बीमारी
लोगों का कहना है कि उस समय वैद्यों को इतना अनुभव होता था कि लोगों को किस प्रकार की बीमारी है पूछने की आवश्यकता नहीं समझते थे। रोगी की नाड़ी पकड़ कर ही रोग बता देते थे। जंगल से जड़ी बूटी लाकर दवा तैयार करते थे।
पूरे भारत में की जाती है दवा सप्लाई
आज भी आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली अनेक फैक्ट्री क्षेत्र में हैैं। इनसे पूरे भारत में दवा सप्लाई की जाती है। यहां सालाना लगभग 15 करोड़ रुपये की दवा का कारोबार है।
1994 में राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया
गर्ग वनौषधि भंडार के निदेशक, डॉ. गोपाल शरण गर्ग आज भी नगर में काफी संख्या में वैद्य हैैं। एक वैद्य गोपाल शरण गर्ग को 1994 में वन औषधि रिसर्च के लिए राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया था। विजयगढ़ में अनेक फैक्ट्री में दवा निर्माण हो रहा है। अन्य राज्यों में भी दवा की सप्लाई की जाती है। कुछ दवा पेटेंट भी होती हैैं। डॉ. गोपाल शरण गर्ग हमारे पूर्वज वैद्य दौलतराम तिवारी ने अलीगढ़ में आयुर्वेद की चिकित्सा शुरू की थी। उन्होंने जड़ी-बूटियों पर एक पुस्तक भी लिखी थी।