Vijayadashami 2021: अभी भी परंपरा से जुड़े हैं ये मेले, बयां करते हैं पुरानी कहानियांAligarh News
आधुनिकता की आंधी बह रही है। इसमें तकनीकी हावी है। तरह तरह के खेल-खिलौने आ रहे हैं। बैटरी और इलेक्ट्रानिक ऐसे खिलौने हैं जिन्हें देखकर बच्चे मोहित हो जाते हैं वहीं मोबाइल आने के बाद से बच्चे अधिक व्यस्त होते जा रहे हैं।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। मेले खेल-तमाशा भारतीय संस्कृति की पहचान है। इसमें भारतीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती थी। तमाम ऐसे खेलकूद के समान भी मिलते थे, जो परंपरा को जोड़ते थे, भले ही आधुनिक युग की ओर बढ़ते चले जा रहे हों, मगर आज भी मेलों में पुरानी परंपरा देखने को मिलती है।
मोबाइल में खो रही परंपरा
आधुनिकता की आंधी बह रही है। इसमें तकनीकी हावी है। तरह तरह के खेल-खिलौने आ रहे हैं। बैटरी और इलेक्ट्रानिक ऐसे खिलौने हैं, जिन्हें देखकर बच्चे मोहित हो जाते हैं, वहीं मोबाइल आने के बाद से बच्चे अधिक व्यस्त होते जा रहे हैं, मगर इसके बावजूद भी आज भी मेले की अलग शान और पहचान है। मेले में वहीं पुरानी परंपरा और रवायत देखने को मिल जाती है। आज भी मेले में तमाम पुरानी बातें और दृश्य देखने को मिलती है, जिनसे लोग बचपन में खो जाते हैं। समाजसेवी दिगंबर चौधरी बताते हैं कि मेले सिर्फ हमारे यहां मनोरंजन के लिए नहीं हुआ करते थे, उसमें अपनी संस्कृति की झलक भी देखने काे मिलती थी। गीत, खेलकूद आदि होते थे जो राजे-राजवाड़े के समय के होते थे, जिन्हें देखने के बाद मन प्रसन्न हो जाया करता था। मेले में आए तमाशा करने वाले गीतों के माध्यम से वह तमाम बातें कह जाते थे, जो अपने जीवन से जुड़ी हुई होती थीं। दिगंबर चौधरी का कहना है कि उन्हें आज भी याद है जब पुराने समय में मेले को देखने के लिए लोग महीने भर से तैयारी करते थे।
परंपरा को बनाए रखना जरूरी
दशहरा पर्व आते ही बच्चों में उत्सुकता बढ़ जाती थी। मेले की तैयारियों में सभी जुट जाया करते थे। वह दृश्य आंखों से ओझल नहीं होता है। सेवानिवृत्त अधिकारी दयाराम शर्मा ने कह ाकि मुझे पूरी तरह से याद है जब मेले को देखने के लिए हम लोग जाया करते थे, कई बार लोग मेले में खो जाया करते थे। तमाम ऐसी कहानियां मिलती है जब लोग मेले में गुम हुए तो वर्षाें बाद जाकर मिले। कुछ तो लौटकर नहीं आ पाएं। ऐसे किस्से तमाम मिलते थे। दयाराम शर्मा ने बताया कि आज तो मोबाइल को गया है। लोग फोन करके पल-पल की खबर लिया करते हैं। अब तो मेले में खोने की बात बहुत दूर हो गई। हालांकि, यह अच्छी बात है, मगर मेले का रंग फीका होता जा रहा है। पुरानी रंगत अब नहीं दिखती है। छात्र चेतन वाष्र्णेय का कहना है कि मेले में लकड़ी के सामान देखकर मन आनंदित हो जाता है। कागज के राम-रावण के युद्ध करते हुए कार्टून को अभी भी मन को भा जाते हैं, उसे देखकर ऐसा लगता है कि जैसे सच में युद्ध हो रहा है। धागे से खींचते ही कार्टून सक्रिय हो जाते हैं। चेतन ने कहा कि हमें इस परंपरा को बनाए रखने की जरूरत है, क्योंकि मेले हमारे संस्कार से जुड़े हुए हैं, जो हमारी परंपरा को बनाए रखते हैं।