कांग्रेस को आस...अबकी बार खत्म होगा वनवास, प्रियंका गांधी ने बनाई खास रणनीति
यूं तो कांग्रेस के लिए जनपद की धरती 2002 के बाद से ही बंजर है लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब सभी सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी जीतते थे। कांग्रेस में बंटवारे जनसंघ व जनता पार्टी के उदय से कांग्रेस का जनाधार निरंतर घटता रहा।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। यूं तो कांग्रेस के लिए जनपद की धरती 2002 के बाद से ही बंजर है, लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब सभी सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी जीतते थे। कांग्रेस में बंटवारे, जनसंघ व जनता पार्टी के उदय से कांग्रेस का जनाधार निरंतर घटता रहा। भारतीय किसान दल ने खूब नुकसान पहुंचाया। इसका नतीजा यह हुआ कि 1977 के चुनाव में सभी सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी हार गए। 1980 के चुनाव में कोल, बरौली, खैर, अतरौली व सीट जीतकर शानदार वापसी तो की, लेकिन रामलहर ने चारों खाने चित्त कर दिया। वर्ष 1991 के चुनाव में फिर कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। इसके बाद कांग्रेस उबर नहीं पाई और एक-दो सीट तक सिमटकर रह गई। 2002 में दो सीटें जीतें, लेकिन 2007 में जनता ने फिर नकार दिया। तब से कांग्रेस का सियासी वनवास खत्म नहीं हुआ है। अबकी बार कांग्रेसियों को राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की सक्रियता और उनकी प्रतिज्ञाओं से आस जगी है। जीत के लिए पूरी ताकत झोंके हुए हैं। एक-एक सीट की फीडबैक हाईकमान को पहुंचाई जा रही है।जातीय संतुलन भी साधा जा रहा है।
पहले कांग्रेस ही बड़ी पार्टी
आजादी के बाद सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस ही थी। 1951-52 में पहला चुनाव हुआ। तब शहर सीट व बरौली नहीं थी। सभी पांच सीटें कांग्रेस जीती। खैर (कोल नार्थ वेस्ट) से स्वतंत्रता सेनानी मोहनलाल गौतम, कोल सेंट्रल से नफीसुल हसन,अतरौली नार्थ से कुंवर श्रीनिवास शर्मा, अतरौली साउथ (कोल ईस्ट) से राजाराम व इगलास से श्योदान ङ्क्षसह विधायक बने। 1957 के चुनाव में शहर सीट का गठन हुआ। पांचों सीटे फिर कांग्रेस ने जीती। शहर से अनंतराम वर्मा जीते। कोल से मोहनलाल गौतम दोबारा विधायक बने। अतरौली से नेकराम शर्मा, गंगीरी से श्रीनिवास, इगलास से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मलखान सिंह चुनाव जीते।
1962 में पहला बड़ा झटका, मोहनलाल गौतम हारे
इस चुनाव में जनसंघ पहली बार मैदान में थी। इससे कांग्रेस का गणित बिगड़ गया। शहर सीट पर रिपब्लिकन पार्टी के अब्दुल बसीर खान ने अनंतराम वर्मा को हरा दिया। वहीं, सीट बदलकर खैर पहुंचे मोहनलाल गौतम को एसडब्ल्यूए के चेतन्यराज ङ्क्षसह ने भारी मतों से हराया। इगलास सीट पर बागी श्योदान ङ्क्षसह ने कांग्रेस को तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया। कोल सीट पर मोहनलाल गौतम की जगह नत्थीमल मलिया को टिकट देना भी कांग्रेस के लिए गलत निर्णय साबित हुआ। रिपब्लिकन पार्टी के भूप ङ्क्षसह से हार गए। अतरौली में सोशलिस्ट पार्टी के बाबू ङ्क्षसह ने कांग्रेस के श्रीचंद ङ्क्षसघल को हरा दिया। केवल गंगीरी सीट पर श्रीनिवास ही जीत पाए। 1967 के चुनाव में कांग्रेस से गंगीरी, अतरौली, अलीगढ़ व कोल सीट भी चली गई। खैर की बजाय इगलास सीट से लड़े मोहनलाल गौतम व खैर से प्यारेलाल ही जीते। 1969 में कांग्रेस केवल एक सीट शहर (अहमद लूत खां) पर सिमट गई। 1974 में फिर वापसी की। इस चुनाव में कांग्रेस ने फिर वापसी करते हुए तीन सीटें-बरौली, कोल व खैर पर जीत हासिल की।
जनता पार्टी व भाजपा ने किया सूपड़ा साफ
1977 के चुनाव में जनता पार्टी की ऐसी लहर चली, जिसमें कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। सभी सीतों सीटें पर कांग्रेस हारी। अगले चुनाव (1980) में अतरौली, कोल, बरौली, खैर पर फिर कब्जा जमा लिया। 1985 में गंगीरी, शहर व बरौली, 1989 में कोल, इगलास व बरौली सीट पर जीत हासिल हुई। 1991 में रामलहर के चलते कांग्रेस का किला फिर ढह गया। भाजपा ने बढ़त ली। 1993 में कांग्रेस की फिर करारी हार हुई। केवल चौ. विजेंद्र ङ्क्षसह ने इगलास सीट से जीते। 1996 में चौ. विजेंद्र ङ्क्षसह हार गए। बरौली से केवल ठा. दलवीर ङ्क्षसह जीत सके। 2002 चौ. विजेंद्र ङ्क्षसह ने इगलास सीट वापस ली। शहर में विवेक बंसल शानदार जीत हासिल की। हालांकि, इस चुनाव के बाद कांग्रेस का जनपद में सियासी वनवास शुरू हो गया, जो अब तक खत्म नहीं हुआ है।
नहीं साध पाई जातीय संतुलन
जिले में कांग्रेस के जनाधार खोने की कई वजह रहीं। एक तो वह जातीय संतुलन नहीं साध पाई और न क्षत-विक्षत हुए संगठन को समेट सकी। इस बार कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा खुद इसके लिए प्रयासरत हैं। कांग्रेसियों में उत्साह का संचार हुआ है। चुनाव लडऩे के लिए खींचतान हो रही है। कई सीटों पर अच्छी स्थिति के संकेत मिल रहे हैं। हाईकमान भी आशावान है। लगातार जिले से फीडबैक ली जा रही हैं। दावेदारों को बार-बार स्क्रीङ्क्षनग कमेटी के सामने लाया जा रहा है। पूर्व विधायक विवेक बंसल शहर सीट की बजाय इस बार कोल से सियाली ताल ठोंक रहे हैं। कई युवा व वरिष्ठ नेताओं ने अलग-अलग सीटों से दावेदारी की है।