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स्याही के सुर : वो लाश 'बड़े सर' को कैसे बुलाती Aligarh News

यदि कुछ वक्त पहले की बात होती तो जेब में रखा मोबाइल तेजी से खिंच आता। रफ्तार से उंगलियां नंबर डायल करतीं। हैलो...।

By Sandeep SaxenaEdited By: Published: Sat, 15 Feb 2020 12:05 PM (IST)Updated: Sun, 16 Feb 2020 03:52 PM (IST)
स्याही के सुर : वो लाश 'बड़े सर' को कैसे बुलाती Aligarh News
स्याही के सुर : वो लाश 'बड़े सर' को कैसे बुलाती Aligarh News

अवधेश माहेश्वरी अलीगढ़ : यदि कुछ वक्त पहले की बात होती तो जेब में रखा मोबाइल तेजी से खिंच आता। रफ्तार से उंगलियां नंबर डायल करतीं। हैलो...। परंतु अब तो वह एक लाश थी, पुलिस वाले 'बड़े सर' और 'छोटे सर' को कैसे कॉल करती। किस तरह कहती कि आठ घंटे का वक्त हो गया। मेरा दर्द बढ़ रहा है। कुछ वक्त के लिए मेरे अपने अभी और हैैं। उनकी पीड़ा असहनीय है। 'बड़े सर' मेहरबानी करके पुलिसकर्मियों को भेज दीजिए। वह मेरा पोस्टमार्टम करा देंगे। मुझे आखिरी सफर के लिए चार कंधों का सहारा मिल जाएगा। मैैं पंचतत्व में विलीन हो जाऊंगी।

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पुलिस की तस्वीर

एक लाश का काल्पनिक अंतर्मन नहीं पुलिस की तस्वीर है। यह बताती है कि बेधड़क वर्दी वाले लापरवाही के किस पथ पर चल रहे हैं। सत्यमेव जयते के संदेशों से सजे थाने-चौकियों में क्या होता है, यह पुलिस से पाला पडऩे के बाद हर पीडि़त जानता है।

क्या डायल 112 गश्त पर नहीं थी?

सिकंदराराऊ के नगला घुर्रका के नौजवान देवेंद्र की हत्या के बाद अफसरों से सवाल उठने ही चाहिए कि पुलिस घटना के बाद चार घंटे तक कहां सोती रही। क्या रात की चादर इतनी गहरी थी कि उसका पूरा सिस्टम सो गया था? क्या गांव में चौकीदार सिस्टम में नहीं थे? क्या डायल 112 गश्त पर नहीं थी? क्या थानेदार का खुफिया तंत्र फेल हो चुका था। क्या सर्किल ऑफीसर फील्ड में नहीं निकलते। और क्या उनसे बड़े अफसर...?

क्या पुलिस हालात बिगडऩे का इंतजार करती रही?

बात यहां भी नहीं रुकी। कुछ देर बाद लाश सीएचसी पहुंच चुकी थी, वहां भी किसी ने खाकी वर्दी को फोन नहीं किया। चार घंटे बाद पुलिस पहुंची, तो लापरवाही का दूसरा अध्याय खुल गया। लाश कब्जे में लेकर जल्द पोस्टमार्टम की कार्रवाई कराने की जगह पुलिस हालात बिगडऩे का इंतजार करती रही। आखिरकार किसी भी सब्र की सीमा होती है, साढ़े नौ बजे दर्द और पीड़ा में डूबे परिजनों ने जाम लगा दिया। इसके बाद ही पुलिस के अफसर जागे। शुक्र था कि ये जाम हालात बिगडऩे से पहले खुल गया, अन्यथा गुस्सा इतना था कि कोई बड़ी घटना भी हो सकती थी। फिर भी हाथरस जैसे एक छोटे जिले में पुलिस के तंत्र का ऐसा हाल चिंता का बड़ा सवाल है। यही वजह है कि दनादन अपराधों की वारदात हो रही हैैं और पुलिस उन्हें रोकने में फेल पर फेल का रिपोर्ट कार्ड पेश कर रही है।

कहां है सरकारी नियम?

अभी यह लाश का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि एक लूट की खबर आ गई। ऐसे सिस्टम में अपराधियों के लिए स्वर्ग बनना स्वाभाविक है। व्यापारी आए दिन की चोरी-लूट जैसी घटनाओं के चलते कराह रहे हैैं। एक सवाल और कि सरकार नियम बना चुकी है कि हर्ष फायङ्क्षरग करने पर हथियार जब्त कर लाइसेंस रद कर दिए जाएंगे, उसके बाद भी समारोहों में बेधड़क गोलियां क्यों गूंजती हैैं। वैसे पुलिस के हालात पर एक वरिष्ठ अधिकारी यह बताएं कि अभी से थाने-चौकी बेच रहे हैैं, तो निश्चित रूप से इशारों-इशारों में राज की बात हो गई।


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