ये एंबुलेंस 'जीवनदायिनी' हैं या मौत वाहिनी!, कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं Aligarh News
कथित जीवनदायिनी एंबुलेंस ही मौत की वाहिनी बन गई हैं। इनमें न तो जीवन रक्षक मानक पूरे हैं और न ही परिवहन के।
अलीगढ़ (जेएनएन)। हायर सेंटर ले जाते हुए मार्ग में ही व्यक्ति के दम तोडऩे की खबरें आम हैं। कई बार यह सामान्य होता है, मगर ज्यादातर मामलों में कथित 'जीवनदायिनी' एंबुलेंस ही 'मौत की वाहिनी' बन गई हैं। इनमें न तो जीवन रक्षक मानक पूरे हैं और न ही परिवहन के। मेडिकल कॉलेज से लेकर अन्य सरकारी अस्पतालों के आसपास एंबुलेंस लिखी और लाल बत्ती लगी मारुति वैन खड़ी रहती हैं, जिन्हें एंबुलेंस बताकर मरीजों की जिंदगी से खेला जा रहा है। हैरानी की बात ये है कि ऐसी एंबुलेंस की जिम्मेदारी न तो परिवार विभाग ही लेता है और न स्वास्थ्य विभाग।
एंबुलेंस के अभाव में मौत
सुरेंद्र नगर निवासी शीलेंद्र कुमार की मां सुमनवती (65) रामघाट रोड के हॉस्पिटल में भर्ती थीं। गंभीर हालत में 21 सितंबर को हायर सेंटर रेफर किया गया। हॉस्पिटल की एंबुलेंस बाहर गई हुई थी। परिजनों ने निजी एंबुलेंस को बुलाया तो उसमें वेंटिलेटर या अन्य सुविधाएं नहीं थीं। काफी देर बाद भी ऐसी एंबुलेंस नहीं मिल पाई और वे चल बसीं।
रास्ते में दम तोड़ा
26 जून 2019 को गांव करथला निवासी लोकेंद्र (15 वर्ष) गौंडा मार्ग पर हादसे में घायल हो गया। सीएचसी में उपचार के बाद उसे प्राइवेट एंबुलेंस से मथुरा के नयति हॉस्पिटल ले जाया जा रहा था, मगर एंबुलेंस में जीवन रक्षक उपकरण न होने से रास्ते में ही दम तोड़ दिया।
ये होना जरूरी
क्रिटिकल केयर एंबुलेंस सरकारी हो या प्राइवेट। सभी में जरूरी जीवन रक्षा उपकरण, ऑक्सीजन सिलेंडर (रिजर्व अतिरिक्त), फायर एक्सटिंग्युशर, एक्सपर्ट पैरा मेडिकल स्टाफ होना चाहिए, जबकि सामान्य एंबुलेंस में फस्र्ट एड किट, फायर एक्सटिंग्युशर, ऑक्सीजन, स्ट्रेचर व एक्सपर्ट स्टाफ जरूरी है। ये मानक पूरा करने के बाद ही परिवहन विभाग में ऐसे वाहन एंबुलेंस के रूप में पंजीकृत किए जा सकते हैं।
ये है सूरतेहाल
धंधेबाजों ने पुरानी मारुति वैन की सीट में फेरबदल कर व एक ऑक्सीजन सिलेंडर रखकर एंबुलेंस बना रखी हैं। चालक अप्रशिक्षित हैं। फिटनेस सालों से नहीं हुई है। एंबुलेंस ज्यादातर सरकारी अस्पतालों व मेडिकल कॉलेज के आसपास खड़ी हुई या फर्राटा भरते दिखाई देती हैं। शहर व जनपद में कितनी प्राइवेट एंबुलेंस हैं? इसका आंकड़ा स्वास्थ्य विभाग के पास भी नहीं। इनमें आकस्मिक सेवा के मानक पूरे हैं या नहीं, इसकी चिंता भी किसी को नहीं, जबकि ये एंबुलेंस जनपद में ही नहीं, आगरा, नोएडा, गाजियाबाद, दिल्ली व गुरुग्र्राम तक दौड़ रही हैं। नतीजतन, कई मरीज अस्पताल पहुंचने से पूर्व ही दम तोड़ देते हैं।
मारुति वैन नहीं हो सकती एंबुलेंस में पंजीकृत
अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ.पीके शर्मा ने बताया कि निजी एंबुलेंस आरटीओ दफ्तर में पंजीकृत की जाती हैं। मारुति वैन को एंबुलेंस में पंजीकृत नहीं कर सकते। एंबुलेंस की मॉनिटङ्क्षरग व मानक पूरे कराने के लिए कभी कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं।