हाथरस की मिट्टी में घुली सेब की मिठास, बेहतर स्वाद के साथ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएगी Aligarh news
जी हां अब सेब की मिठास आपको हाथरस की मिट्टी से मिलेगी। इसके लिए सैकड़ों किलोमीटर दूर हिमाचल व कश्मीर से आने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। यह सेब स्वाद में बेहतर होने के साथ रोगों से लड़ने के लिए आपके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाएगा।
एआरएस आजाद, हाथरस । जी हां अब सेब की मिठास आपको हाथरस की मिट्टी से मिलेगी। इसके लिए सैकड़ों किलोमीटर दूर हिमाचल व कश्मीर से आने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। यह सेब स्वाद में बेहतर होने के साथ रोगों से लड़ने के लिए आपके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाएगा। देखने में तो यह सामान्य सेब की तरह ही है पर गुणों में अन्य सेब से कई गुना अधिक क्षमता वाला है।
हाथरस के किसानों ने उगाए सेब
सेब का नाम आते ही मुंह में पानी आ जाता है। इसके साथ ही इसकी पैदावार के लिए प्रसिद्ध जम्मू-कश्मीर व हिमाचल का नक्शा हमारी आंखों के सामने दिखने लगता है। कैसे पैदा होता होगा, पेड़ पर कैसा दिखता होगा, तमाम तरह के प्रश्न हमारे दिमाग में उथल-पुथल मचाने लगते हैं। किसान परिवार के युवाओं ने नई सोच के साथ खेती को करना शुरू किया है। ऐसे ही किसान हैं याेगेश चौधरी। उन्होंने सेब की खेती करने दृढ़ निश्चय किया तो उसे कर भी दिखाया। कौन कहता है आसमान छेद नहीं हो सकता, एक पत्थर तो दिल से उछालो यारो, वाली कहावत को चरितार्थ कर दिखाया।
ऐसे की शुरुआत..
थाना हाथरस जंक्शन के जलालपुर, लाड़पुर निवासी योगेश को सेब की फसल के प्रति बहुत लगाव था। उन्होंने इसके लिए हिमाचल प्रदेश के शिमला व अन्य जगह जाकर सेब की खेती का प्रशिक्षण लिया। घर में पिताजी का सहयोग मिलने से उनका हौसला और बढ़ गया। उन्होंने दो-चार नहीं बल्कि 50 पौधों का रोपण कर उनकी देखभाल शुरू कर दी।
पेड़ों पर सेब दिख खिले चेहरे
याेगेश ने करीब एक एकड़ पेतृक जमीन में 50 पौधों को 10 फीट की दूरी पर लगाया। इनमें उन्होंने सेब की छह प्रजातियों में एचआरएमएन-99, ट्रोपिकल ब्यूटी, ट्रोपिकल स्वीट, डोरसेट गोल्डन, अन्ना व गोला के पौधे शामिल किए। एक साल बाद करीब सभी पेड़ों पर 10-15 फल आना शुरू हुए। दूसरी साल से इसमें ठीक तरह से उत्पादन शुरू हो जाता है।
एक वर्ष बाद देता है फल
सेब की खेती वार्षिक होती है। इसे दिसंबर व जनवरी लगाया जाता है। एक वर्ष बाद ही फल देने लगता है। योगेश बताते हैं सही तरह उत्पादन दूसरे वर्ष में शुरू होता है। दूसरे वर्ष में एक पेड़ से करीब 5 से 10 किलोग्राम फल निकलते हैं। वहीं तीसरे वर्ष में 15 से 25 किलोग्राम और चौथे वर्ष में यह संख्या 50 किलोग्राम तक हो जाती है।
पौधे की प्रजाति, रोपे गए पौधों की संख्या
एचआरएमएन-99, 20
ट्रोपिकल ब्यूटी, 6
ट्रोपिकल स्वीट, 6
डोरसेट गोल्डन, 6
अन्ना, 6
गोला, 6
इम्यूनिटी बढ़ाता है मीठा व स्वादिष्ट सेब
सेब के बारे में एक कहावत है। एक सेब का रोज सेवन, डाक्टर से दूर रखता है। योगेश बताते हैं यह सेब की फसल घर पर ही तैयार किए गए आर्गेनिक खाद व कीटनाशकों के प्रयोग से उगाई जा रही है। इसलिए यह केमीकल रहित और औषधि गुणों से भरपूर है। दूर से ही आने वाली इसकी सुगंध लोगों को आकर्षित करती है।
कम लागत में अधिक आय देती है यह फसल
योगेश बताते हैं कि एक पौधे पर करीब 500 रुपये की लागत दो साल में आती है। दो साल बाद यही पेड़ एक 1000 रुपये और तीसरे साल में यही पेड़ 2500 रुपये की आय का साधन बन जाता है। इसमें ड्रिप विधि से सिंचाई की जाती है। साेलर पंप के प्रयोग से डीजल व विद्युत की बचत होती है। सामान्य लागत पर दो गुने से अधिक अाय होने लगती है।
नहीं ढूंढना पड़ता बाजार
सेब की फसल के लिए स्थानीय बाजार में यह फसल खप जाती है। दुकानदारों को जिले में ही फसल मिलेगी तो वह जम्मू-कश्मीर व हिमाचल से सेब आने का इंतजार क्यों करेंगे। योगेश बताते हैं पहली फसल का सेब स्थानीय बाजार में ही बिक गया था। दूसरे वर्ष की फसल मई जून 2022 में आएगी। उत्पादन अधिक होने पर इसे बाहर भेजा जाएगा।
इनका कहना है
जिले में कई प्रगतिशील किसानों ने अपनी सोच से खेती को नए अायाम दिए हैं। उनमें योगेश भी ऐसे ही प्रतिभाशाली किसान हैं। ऐसे किसानों को कृषि विभाग द्वारा जरूरत के हिसाब से अनुदान पर कृषि यंत्र व अन्य कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाया जाता है।
- एचएन सिंह, कृषि उपनिदेशक