झोलियां भरने वाली माटी अब दामन फैला रही, जानिए क्या है मामला Aligarh news
जिस माटी (मिट्टी) ने बिना कुछ मांगे किसानों की झोलियां भर दीं वही माटी अब दामन फैला रही है। किसान हैं कि इसका दर्द नहीं समझ पा रहे। अत्याधिक रसायनों का प्रयोग कर किसानों ने माटी के पोषक तत्वों को नष्ट कर दिया।
लोकेश शर्मा, अलीगढ़ : जिस माटी (मिट्टी) ने बिना कुछ मांगे किसानों की झोलियां भर दीं, वही माटी अब दामन फैला रही है। किसान हैं कि इसका दर्द नहीं समझ पा रहे। अत्याधिक रसायनों का प्रयोग कर किसानों ने माटी के पोषक तत्वों को नष्ट कर दिया। स्थिति ये है कि एक फसल उगाने के लिए भी रसायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का इस्तेमाल करना पड़ता है। पहले ऐसा नहीं था। प्रकृति में उपलब्ध तत्वों से फसलें लहलहाती थीं। अब बिना उपचार के एक फूल भी नहीं खिलता। कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि जीवांश कार्बन और सूक्ष्म जीवों के नष्ट होने से माटी का ये हाल हुआ है। माटी की सेहत सुधारनी है तो किसानों को जैविक खेती की ओर लौटना होगा।
चौकाने वाली रिपोर्ट
अलीगढ़ मंडल की मृदा परीक्षण रिपोर्ट चौंकाने वाली है। भूमि को उपजाऊ बनाने रखने के लिए एक फीसद जीवांश कार्बन की आवश्यकता होती है। वर्तमान में मात्र 0.30 फीसद ही जीवांश कार्बन मौजूद हैं। सूक्ष्म जीवों की संख्या भी लगातार घट रही है। रसायनिक उर्वरक, कीटनाशकों के अत्याधिक प्रयोग और खेतों में पराली जलाने से ये हालत पैदा हुए हैं। किसानों का मानना है कि रसायनिक उर्वरक पैदावार बढ़ाते हैं। उनके ये मिथक कृषि वैज्ञानिकों के शोध ने तोड़ दिए। क्वार्सी फार्म स्थित शोध प्रक्षेत्र में गेहूं पर शोध हुआ था। एक हेक्टेयर में सूक्ष्म जीवों युक्त जंगल की मिट्टी से तैयार खाद डालकर जुताई कराई, फिर बोआई हुई। वहीं, एक हेक्टेयर में जिंक, पोटास जैसे रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर बोआई की। नतीजे हैरत में डालने वाले आए। सूक्ष्म जीवों युक्त खाद से 42 कुंतल से अधिक पैदावार हुई। खर्चा भी 1200 रुपये आया। जबकि, रसायनों से 40 कुंतल ही गेहूं हुआ और खर्चा 4800 रुपये से अधिक आया। हालांकि, जनपद मेें कई किसान ऐसे हैं जो जैविक खेती कर रहे हैं। गोबर व हरी खाद का प्रयोग कर हर तरह की फसल उगा रहे हैं। इनके जैविक उत्पाद अच्छी कीमत में बिकते हैं। धनीपुर मंडी में जैविक उत्पाद बाजार भी खुल चुका है, जिससे इन किसानों को कहीं और जाने की जरूरत नहीं पड़ती।
नष्ट हुए जीवांश कार्बन
उप कृषि निदेशक (शोध) डॉ. वीके सचान बताते हैं कि मिट्टी में मात्र 0.30 फीसद ही जीवांश कार्बन मौजूद हैं। जबकि इनकी दर एक फीसद होनी चाहिए। मृदा परीक्षण रिपोर्ट के मुताबिक अलीगढ़ मंडल में 0.21 (अति न्यूनतम) दर वाली 13 फीसद भूमि है। 0.21 से 0.50 दर वाली 81 फीसद भूमि है। छह फीसद भूमि ही 0.51 जीवांश कार्बन दर वाली बची है। जीवांश कार्बन मिट्टी के कणों को बांधता है। ये कण पानी सोख लेते हैं, इससे भूमि में नमी बनी रहती है। सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती है। जीवांश कार्बन की कमी से ही खड़ी फसलें हवा, बारिश में गिर जाती हैं। गोबर व हरी खाद में ये भरपूर मात्रा में होते हैं।
उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं सूक्ष्म जीव
फसलों की पैदावार बढ़ाने में सूक्ष्म जीवों का भी योगदान है। ये भी रसायनों के अत्याधिक प्रयोग से नष्ट हो रहे हैं। कृषि अनुसंधान केंद्र प्रभारी डॉ. सुधीर सारस्वत बताते हैं कि सूक्ष्म जीव उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं। इसकी कमी को पूरा करने के लिए राइजोबियम, एसीटोबैक्टर, एजेटोबैक्टर, ब्युबेरिया, मैकिराइजा, स्यूडोमोनास, फास्फेट सोलुब्लेजर जैसे जैव उर्वरक खेतों में डालने चाहिए।