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हाथरस में 10 साल पहले लिखी गई थी घोटालों की पटकथा aligarh news

तत्कालीन डीएम प्रांजल यादव ने कार्रवाई की। इसके बाद घोटालों की परतें खुलती चली गईं।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Mon, 02 Sep 2019 12:58 AM (IST)Updated: Mon, 02 Sep 2019 03:58 PM (IST)
हाथरस में 10 साल पहले लिखी  गई थी घोटालों की पटकथा aligarh news
हाथरस में 10 साल पहले लिखी गई थी घोटालों की पटकथा aligarh news

अलीगढ़ (जेएनएन)।  कानपुर की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने फरारी काट रहे पूर्व जिला समाज कल्याण अधिकारी वीरेंद्र पाल सिंह को गिरफ्तार कर हाथरस के उन जख्मों को भी ताजा कर दिया, जो 10 साल पहले शिक्षा माफिया ने दिए थे। निर्धन दलित छात्रों के हक पर डाका डालने की पटकथा माफिया ने 2009-2010 के वित्तीय वर्ष में लिखी थी। तीन सितंबर, 2011 में दैनिक जागरण ने 14.50 लाख के घोटाले का पर्दाफाश कर माफिया को बेनकाब किया था। ये रकम सिटी इंजीनियङ्क्षरग कॉलेज टीकरी कलां के नाम से जारी हुई थी। जांच में ये कॉलेज मौके पर नहीं मिला। तत्कालीन डीएम प्रांजल यादव ने कार्रवाई की। इसके बाद घोटालों की परतें खुलती चली गईं। अलीगढ़ के प्रिया मांटेसरी समेत अन्य स्कूलों की छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति हाथरस की बैंक शाखाओं से निकालने के मामले भी सामने आए थे।

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73 लाख का चर्चित घोटाला

 2012 में 73.02 लाख का घोटाला चर्चित रहा, इसका भी पर्दाफाश दैनिक जागरण ने छह जनवरी-12 के अंक में किया था। शुल्क प्रतिपूर्ति की यह रकम मानिकपुर के एसडी कॉलेज ऑफ एजुकेशन एंड इंस्टीट्यूट के नाम से जारी हुई थी। रकम कई किस्तों में निकाली गई। संस्था संचालक जिले के एक कद्दावर सपा नेता थे।

प्रदेश में सात अरब का महाघोटाला

2012 का यह वो दौर था, जब पूरे प्रदेश में 800 शिक्षण संस्थाओं के जरिए सात अरब का घोटाला हुआ था। इसमें एक दर्जन संस्थाएं हाथरस की थीं, जिन्हें ब्लैकलिस्ट कर दिया गया। तब तत्कालीन डीएम सुभाष एलवाई ने तत्कालीन जिला समाज कल्याण अधिकारी श्रीनिवास द्विवेदी समेत छह कर्मचारियों के विरुद्ध कार्रवाई की थी। सभी को निलंबित कर दिया गया। प्रदेश में यह पहली कार्रवाई थी।

अनुसूचित जाति के छात्र बने मोहरा

इंजीनियङ्क्षरग कॉलेजों में अधिक घोटाले हुए थे। अनुसूचित जाति के बीटेक छात्र को 4400 रुपये छात्रवृत्ति, 72,400 रुपये शुल्क प्रतिपूर्ति, कुल 76,800 रुपये मिलते थे। मैनेजमेंट के छात्र को 4400 रुपये छात्रवृत्ति व 78,800 रुपये शुल्क प्रतिपूर्ति, कुल 1.20 लाख रुपये मिलते थे। सैकड़ों छात्रों के फर्जी दस्तावेज लगाकर करोड़ों की रकम हड़प ली जाती थी।


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