अलीगढ़ के इस किले के ऊपर भाई-बहन का साथ जानेे पर था प्रतिबंध, जानिए क्या है माजरा Aligarh news
अलीगढ़ तो आना -जाना रहता ही होगा। पर्यटन क्षेत्रों के घुमक्कड़ों के लिए तो यह जिला खास ही है। हर ओर किले और ऐतिहासिक मंदिर जो हैं। कहीं कोई रोक टोक नहीं लेकिन दादों क्षेत्र स्थित शंकरगढ़ किले में भाई-बहन का एक साथ ऊपर जाना मना था।
केपी सिंह राजपूत, अलीगढ़ः अलीगढ़ तो आना -जाना रहता ही होगा। पर्यटन क्षेत्रों के घुमक्कड़ों के लिए तो यह जिला खास ही है। हर ओर किले और ऐतिहासिक मंदिर जो हैं। कहीं कोई रोक टोक नहीं, लेकिन दादों क्षेत्र स्थित शंकरगढ़ किले में भाई-बहन का एक साथ ऊपर जाना मना था। हालांकि, अब यह किला खंडहर बन चुका है। पर, भाई-बहनों के प्रतिबंध का किस्सा आज भी काफी रोचक है। दरअसल, यह किला सात मंजिल का था। सीढ़ियां घुमावदार थी। यानी कि ऊपर जाते समय सात फेरे हो जाते थे। इसलिए भाई-बहन का साथ-साथ ऊपर जाना मना था। यह बात करीब सात सौ साल पुरानी है। किला इससे भी पुराना है।
कहीं कहानी न बन जाए अलीगढ़ का शंकरगढ़ किला
कहते हैं इतिहास संभलना चाहिए। पर, यहां ऐसा नहीं है। विरासत की धरोहर माने जाने वाली इमारतें नष्ट हो रही हैं। यह जानकर भी दिल्ली से लेकर लखनऊ तक की सरकारें अनजान बनी हैं। इन्हीं में दादों क्षेत्र स्थित शंकरगढ़ का किला भी है। एक दौर था, जब दिल्ली वालों के लिए भी यह किला दूर नहीं था। यहां के गुंबद पर जलते दीपक को दिल्ली के लाल किले में बैठे लोग दुरबीन से देख लेते थे। अब हालात बदल गए हैं। किला अब हर ओर से ढह चुका है। हाल यही रहा तो शायद ही निकट भविष्य में इसका मलबा भी देखने को न मिले। वक्त की मार से जब किला जमींदोज हो गया तो देखभाल करने वाले भी भुला बैठे। सरकार तो पहले ही भुला बैठी थी। जिला मुख्यालय से 60 किमी. दूर इस किले की कहानी ऐसी ही दुखभरी है।
किले का इतिहास
करीब 700 साल पहले राजा वैद्य ने सांकरा किले का निर्माण कराया था। इस किले पर राजा शंकर सिंह की निगाह पड़ गई और उन्होंने राजा वैद्य को हराकर किले को जीत लिया। राजा शंकर सिंह ने इसे अपने नाम पर शंकरगढ़ किला बना लिया। आल्हाखंड के अनुसार महोबा के राजा आल्हा-ऊदल के भांजे जागन, शंकरगढ़ के राजा की बेटी से प्रेम करते थे। भांजे की शादी की खातिर आल्हा-ऊदल ने चढ़ाई भी की थी, लेकिन बेटी के प्यार को देखकर उन्होंने अंतत: शादी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
ऐसे हुआ नाम
गंगा नदी के किनारे, वीराने में स्थानीय राजा वैद्य का साम्राज्य हुआ करता था। उन्हें ये इलाका कई मायने में ठीक लगा और उन्होंने यहां किले का निर्माण कराया। इसकी भव्यता के चर्चे दूर-दूर तक थे। शुरू में इसे प्राचीन किला नाम से जाना गया। कालांतर में नाम शंकरगढ़ हो गया, जिसे सांकरा किला भी कहते हैं।
जीर्ण-शीर्ण हाल
सांकरा को नाम देने वाली ये प्राचीन धरोहर अब धूल में मिल चुकी है। करीब एक किमी. दायरे में फैले किले का अधिकांश निर्माण जमींदोज हो चुका है। कुछ बचा है तो इक्का-दुक्का जगह बाउंड्रीवाल। न तंत्र का इस ओर ध्यान है, न ही सामाजिक संस्थाओं का ही। सांकरा पूर्व समय में एक व्यापरिक केंद्र भी रहा है। गंगा पार बदायूं, बरेली आदि जनपदों से नावों के माध्यम से अफीम व नील आया करता था। जिसे भरतपुर व जयपुर के व्यापरी ले जाया करते थे। व्यापारियों के ठहरने के लिए समाज सेवियों ने विशालकाय धर्मशालाओं का निर्माण कराया था। जिन पर भी स्थानीय लोगों ने कब्जा कर रखा है। और कुछ की मरम्मत न होने के जीर्णशीर्ण होती जा रही है।
मिली थी गौतम बुद्ध की प्रतिमा
सांकरा गंगाघाट पर्यटन विकास सेवा समिति के अध्यक्ष विनय यादव का कहना है कि सांकरा को पर्यटन स्थल बनाओ मुहिम के तहत हमारी समिति राजाशंकर सिंह के किले को पर्यटन स्थल घोषित कर विकसित किए जाने की लगातार मांग कर रही है। जब तक पर्यटन स्थल घोषित नहींं हो जाता तब तक संघर्ष जारी रहेगा। डॉ. रामवीर सिंह यादव ने बताया कि प्राचीन किला जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। इसका पुनरुद्धार होना चाहिए। शंकरगढ़ के नाम पर इसे पर्यटन स्थल बनाना चाहिए। धनसारी के प्राचार्य सत्यप्रकाश सिंह ने बताया कि यहांं लोगों को चांदी के सिक्के व चम्मच आदि मिलने की बातें सुनी हैं। ये ऐतिहासिक किला है। इसका बड़ा महत्व है। इसे पुराने स्वरूप में लाना चाहिए। कुछ साल पहले यहाँ भगवान गौतम बुद्ध की क्षषतिग्रस्त प्रतिमा भी मिली थी। इससे यह प्रतीत होता है। कि कालांतर में भगवान गौतम बुद्ध यहां आए थे।