नवगीत के प्रमुख उन्नायक थे अलीगढ़ की माटी में जन्मे रमेश रंजक aligarh news
अलीगढ़ की माटी ने साहित्य के अनमोल रत्न पैदा किए हैं। इनमें नवगीत आंदोलन को धार देने वाले कवि रमेश रंजक का नाम भी शामिल है।
विनोद भारती, अलीगढ़। अलीगढ़ की माटी ने साहित्य के अनमोल रत्न पैदा किए हैं। इनमें नवगीत आंदोलन को धार देने वाले कवि रमेश रंजक का नाम भी शामिल है। रमेश रंजक, जिनके गीतों को मंच पर पढ़ते समय पदमश्री अशोक चक्रधर भी सम्मान महसूस करते हैं। नवगीत (नई कविता और गीत का समावेश) को प्रमुख सिद्धांतकार रमेश रंजक व एएमयू के हिंदी विभाग में प्रोफेसर रहे रवींद्र भ्रमर रहे। नवगीत के प्रमुख उन्नायक 'रंजक ने व्यवस्था पर खूब तंज कसे। आमजन में नई चेतना का संचार भी किया। कवि ही नहीं, साहित्यकार भी उनके गीतों के कायल हैं। ऐसे रमेश रंजक आज हमारे बीच नहीं, मगर उनके जन्मदिवस पर याद तो करना ही चाहिए।
खैर के नदरोई गांव में हुआ था जन्म
नवगीतकार रमेश रंजक का जन्म खैर के गांव नदरोई में दो सितंबर 1938 को हुआ था। यहीं पर पढ़ाई लिखाई हुई। वरिष्ठ कवि-गजलकार सुरेश कुमार बताते हैं कि रमेश रंजक ने अपने गीतों से हिंदी कविता में नई आभा उत्पन्न की, जिसकी प्रशंसा नागार्जुन, भवानीप्रसाद मिश्र, धर्मवीर भारती और नामवर सिंह जैसे अनेक रचनाकारों ने की है। वह उन चुनिंदा कवियों में शुमार रहे, जिन्हें लोकप्रियता भी हासिल हुई। उनके गीत बेचैन करते हैं। उनके निधन के दो दशक गुजर जाने के बावजूद उनके रचनाकर्म का समग्र मूल्यांकन किंचित नहीं हो सका है।
यह रही कोशिश
वरिष्ठ साहित्यकार प्रेम कुमार बताते हैं कि रंजक के गीत आदमी को झकझोर देते हैं। ऐसे कि पढऩे के बाद व्यक्ति मौन हो जाए या बेचैन। रंजक ने आम लोगों के लिए गीत लिखे। जीवन में कथनी-करनी का अंतर मिटाने की कोशिश की, लेकिन इस घोर आदर्शवादी रास्ते के साथ-साथ घनघोर पारिवारिक यथार्थ का भी सामना कराते हैं। 1991 में रंजक का निधन हो गया।
प्रसिद्ध नवगीत संग्रह
- किरण के पांव, गीत विहग उतरा, हरापन नहीं टूटेगा, मिïट्टी बोलती है, इतिहास दुबारा लिखो, दरिया का पानी, अतल की लय, बादल घिर गए, वेणी कचनार की।
रंजक के प्रसिद्ध गीत
'ये महंगे दस्ताने, मैंने हाथ नहीं माने।
लाख बार समझौते लेकर आए तहखाने।
'साथ देने से किया इनकार उनको, जो नहीं थे साथ के हकदार।
मैं न मानूंगा कभी भी, धुएं को दीवार।