इस किसान का अनाज खेतों में ही बिक जाता है, मेट्रो सिटी में है खूब डिमांड, जानिए क्या है ऐसा खास Aligarh news
किसान अपना अनाज मंडियों में बेचते हैं कई बार उन्हें वाजिब दाम नहीं मिल पाता है। मंडियों से आगे किसान अपना अनाज बेचने की नहीं सोच पाते हैं। मगर किसान सुरेंद्र सिंह का अनाज मेट्रो सिटी में हाथों-हाथ बिक जाता है। लोग उनके खेत तक अनाज लेने आते हैं।
अलीगढ़, जेएनएन : किसान अपना अनाज मंडियों में बेचते हैं, कई बार उन्हें वाजिब दाम नहीं मिल पाता है। मंडियों से आगे किसान अपना अनाज बेचने की नहीं सोच पाते हैं। मगर, किसान सुरेंद्र सिंह का अनाज मेट्रो सिटी में हाथों-हाथ बिक जाता है। लोग उनके खेत तक अनाज लेने आते हैं। जैविक खेती से सुरेंद्र रसायन मुक्त अनाज पैदा कर रहे हैं, जिससे इनके अनाज की मेट्रो सिटी में खूब डिमांड है। जैविक खेती में प्रदेश में भी कई जगहों पर वह सम्मानित हो चुके हैं।
जैविक खेती का नतीजा
सुरेंद्र सिंह अलीगढ़ जिले के इगलास क्षेत्र के गांव गहलऊ के रहने वाले हैं। वह बताते हैं कि खेती में ही बचपन से मन रम गया। इसलिए वह पिता सुरेंद्र सिंह के साथ खेती करने लगे। वह देखते कि खेतों में अंधाधुंध रासायनिक उर्वरक का प्रयोग किया जाता था। कीटनाशक दवाओं का भी प्रयोग जमकर किया जाता था। वर्ष 2015 की बात है। सुरेंद्र गांव से खेतों की ओर जा रहे थे। एक खेत के पास कुछ पक्षी मरे पड़े थे। पता चला कि खेत में कीटनाशक मिलाए जाने से पक्षियों की मौत हो गई थी। वहीं, से सुरेंद्र के दिमाग में सवाल कौंध उठा। उन्होंने सोचा कि जब कीटनाशक दवाओं से पक्षियों की मौत हो रही है तो उसी अनाज को मनुष्य खा रहा है, उसकी क्या हालात होगी? सुरेंद्र इसी सवाल में कई दिनों तक उलझे रहे, मगर उन्हें जवाब नहीं मिला। उन्हें कृषि गोष्ठी में जैविक खेती के बारे में जानकारी हुई। उसके बाद उन्होंने निर्णय लिया कि वह भी जैविक खेती करेंगे।
सभी ने किया विरोध
सुरेंद्र बताते हैं कि परिवार के लोगों को जब जैविक खेती के बारे में बताया तो उन्होंने मना कर दिया। कहा, खेत में बिना रासायनिक उर्वरक के अनाज कैसे पैदा होगा? इससे पैदावार भी कम होगी। मगर, सुरेंद्र ने निर्णय कर लिया था, उन्होंने कहा कि कुछ भी हो जाए, मगर वह जैविक खेती ही करेंगे।
पांच बीघे से की शुरुआत
सुरेंद्र के पास करीब 50 बीघा खेत है। 2015 में उन्होंने पांच बीघा में जैविक खेती की। गेहूं की बुआई की थी। निर्णय लिया कि इसमें रासायनिक उवर्रक और कीटनाशक दवाएं एकदम नहीं डालेंगे। फिर, खेती शुरू कर दी।
खाद के रुप में है जीवामृत
खेत में उन्होंने खाद की जगह जीवामृत का प्रयोग किया। दसपर्णी अर्क, जो 10 पत्तियों से बनाया जाता है। गोमूत्र, तंबाकू, लहसुन और लाल मिर्च का घोल तैयार करते हैं। उसे ही खाद और कीटनाशक के रुप में प्रयोग करते हैं। सुरेंद्र बताते हैं कि पहली साल फसल की पैदावार कुछ कम हुई, मगर धीरे-धीरे फसल बढ़ने लगी।
40 बीघा तक पहुंचे
पांच बीघे से खेती की शुरुआत की थी। धीरे-धीरे खेती का रकबा बढ़ता चला गया। इस साल उन्होंने 40 बीघे में गेहूं, आलू, मटर आदि फसलों की बुआई की है। सुरेंद्र का कहना है कि पहले हम लोगों ने रायायनिक उर्वरक का जमकर प्रयोग किया था, जिससे धीरे-धीरे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति खत्म होती जा रही थी। इसलिए जैविक खेती में शुरुआती साल में पैदावार कम होती है। उसके बाद धीरे-धीरे पैदावार बढ़ने लगती है।
15 कुंतल की है उम्मीद
सुरेंद्र बताते हैं कि पिछले साल एक एकड़ में 8.5 कुंतल गेहूं पैदा हुआ था। इस साल 15 कुंतल प्रति एकड़ का अनुमान है। जैविक खेती से अनाज का दाना अच्छा होता है। साथ ही विषमुक्त होता है।
खूब है डिमांड
जैविक खेती से पैदा हुए अनाज की खूब डिमांड है। सुरेंद्र बताते हैं कि उनके पास गाजियाबाद, नोएडा, दिल्ली और गुड़गांव आदि स्थानों तक से लोग अनाज खरीदने आते हैं। तमाम ऐसे लोग हैं जो खेतों तक पहुंच जाते हैं। सुरेंद्र कहते हैं कि पढ़े-लिखे लोगों को पता चलने लगा है कि जैविक खेती से पैदा अनाज सेहत के लिए फायदेमंद है। उसमें किसी तरह का केमिकल का प्रयोग नहीं किया गया है। इसलिए लोग अब खूब पसंद करने लगे हैं। इसकी पैदावार भले ही कम हो, मगर अन्य अनाजों की अपेक्षा डेढ़ गुने कीमत से यह बिकता है।