अलीगढ़ के लोगों के आंगन हैं गौरैया से गुलजार...Aligarh news
एक समय था जब नन्हीं गौरैया आंगन में फुदका करती थीं। उसके चहचहाट से लोगों की सुबह की नींद खुलती थी मगर अब गौरैया दिखना कम हो गई हैं। गौरैया के बिन घर- आंगन सूने नजर आते हैं।
अलीगढ़ [ जेएनएन ] एक समय था, जब नन्हीं गौरैया आंगन में फुदका करती थीं। उसके चहचहाट से लोगों की सुबह की नींद खुलती थी, मगर अब गौरैया दिखना कम हो गई हैं। गौरैया के बिन घर- आंगन सूने नजर आते हैं। बच्चों के लिए तो सिर्फ किताबों और वर्चुअल में ही गौरैया दिखाई देती हैं। हम आज भी गौरैया को वही प्यार और दुलार दें तो वे जरूर आएंगी। घर-आंगन और मुंडेर पर बैठेंगी। प्रीमियर नगर कॉलोनी के प्रेमकांत माहेश्वरी ने थोड़ा सा जतन किया और उनके घर आज गौरैया का बसेरा है। चिडिय़ों की चहचाहट से आंगन गुलजार है। आइए, गौरैया दिवस पर हम भी संकल्प लें कि फिर इन्हें वापस बुलाएंगे... प्रेमकांत माहेश्वरी की कंपनी बाग में ऑटो पाट््र्स की दुकान है।
चिडिय़ों से प्रेम बरकरार
60 वर्षीय प्रेमकांत का घर-आंगन गौरैया से भरा हुआ है। बचपन से ही उन्हें पक्षियों से प्रेम था। 28 साल पहले सिकंदराराऊ (हाथरस) के पुरदिलनगर से यहां प्रीमियर नगर में आ गए। यहां भी उनका चिडिय़ों से प्रेम बरकरार रहा। उन्होंने अपने घर को पेड़-पौधों से पाट दिया। बेला की टहनियों से घर आच्छादित कर दिया, जिससे चिडिय़ां बैठने का आश्रय बना सकें। टहनियों पर ही उन्होंने लकड़ी के घोंसले बना दिए। नारियल को भी तोड़कर घोंसला बनाया। प्रेमकांत बताते हैं कि धीरे-धीरे गौरैया उनके घर आने लगीं। अब रोज सुबह सैकड़ों गौरैया की चहचाहट सुनाई देती हैं।
चार घंटे देते हैं समय
प्रेमकांत बताते हैं कि वे प्रतिदिन चार घंटे समय देते हैं। सुबह छह से आठ बजे तक का समय गौरैया के नाम रहता है। उन्हें दाना-पानी रखते हैं। उन्हें देखते ही गौरैया पास आ जाती हैं और घेर लेती हैं।
बीमार होने पर चल जाता है पता
प्रेमकांत कहते हैं कि गौरैया से विशेष लगाव के चलते वह शादी-पार्टी आदि काम छोड़ देते हैं। सैकड़ों की झुंड में यदि एक-दो भी बीमार हो जाती हैं तो उन्हें पता चल जाता है। प्रेमकांत कहते हैं कि वह फुदक-फुदककर उनके पास आ जाती हैं। फिर उनका इलाज कराते हैं।
आज भी लौट आएंगी
प्रेमकांत कहते हैं कि यदि हम थोड़ी सी भी चिंता कर लें तो आज भी गौरैया लौट आएंगी। वो बताते हैं कि घर की छतों पर दाना-पानी रखें। पौधे लगाएं, उनके लिए घोंसला बनाएं। गौरैया फिर से लौट आएंगी।
प्यार और दुलार दें तो वे जरूर आएंगी
एक समय था, जब नन्हीं गौरैया आंगन में फुदका करती थीं। उसके चहचहाट से लोगों की सुबह की नींद खुलती थी, मगर अब गौरैया दिखना कम हो गई हैं। गौरैया के बिन घर- आंगन सूने नजर आते हैं। बच्चों के लिए तो सिर्फ किताबों और वर्चुअल में ही गौरैया दिखाई देती हैं। हम आज भी गौरैया को वही प्यार और दुलार दें तो वे जरूर आएंगी। घर-आंगन और मुंडेर पर बैठेंगी। प्रीमियर नगर कॉलोनी के प्रेमकांत माहेश्वरी ने थोड़ा सा जतन किया और उनके घर आज गौरैया का बसेरा है। चिडिय़ों की चहचाहट से आंगन गुलजार है। आइए, गौरैया दिवस पर हम भी संकल्प लें कि फिर इन्हें वापस बुलाएंगे.