अलीगढ़, जेएनएन। एक क्लिक ने श्याम सुंदर शर्मा की जिंदगी बदल दी। कैमरे से नाता ऐसा
जुड़ा
कि ताउम्र नहीं छूटा। 71 वर्ष की उम्र में भी श्याम सुंदर शानदार फोटो क्लिक करते हैं। ना हाथ हिलता है और ना ही पांव डगमगाते हैं। चाहे
बड़ी
रैली हो या फिर विशाल समागम वह आज भी युवा की तरह
दौड़
लगा देते हैं। बस मकसद एक ही होता है कि कैमरे में ऐसी तस्वीर कैद हो जो किसी के पास ना हो। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक के फोटो को उन्होंने क्लिक किया है। कैसे अपने जीवन को फोटो की कलाकारी के लिए समर्पित कर दिया, सुनते हैं उन्हीं की जुबानी।
बात 1950 की है। मेरे
बड़े
भाई पंडित राधेश्याम शर्मा जो मेरे गुरु भी हैं, उन्होंने मुझे हाथों में कैमरा
पकड़ा
दिया। मैं उस समय 21 वर्ष का था। सुकून से एक क्लिक किया। भाई साहब खुशी से झूम उठे। बोलें छोटे तुमने क्या फोटो क्लिक की है। सच मजा आ गया। बस इसके बाद तो श्याम सुंदर शर्मा का सबसे अच्छा दोस्त कैमरा बन गया। 1957 में अलीगढ़ में पहला फोटो स्टूडियो का शुभारंभ हुआ। उस दौर में कैमरे एक- दो लोगों के पास ही हुआ करते थे। एक पर
बड़े
भाई राधेश्याम शर्मा बैठने लगे। दूसरे स्टूडियो पर मुझे बिठा दिया। चूंकि 1956 में मैंने शिमला से फोटोग्राफी सीखी थी इसलिए स्टूडियो का नाम भी शिमला रख दिया। इसके बाद तो मानों मेरे अंदर बेहतरीन फोटो खींचने का जुनून सा सवार हो गया। अलीगढ़ में जितनी
बड़ी
जनसभाएं हुईं उन सबके फोटो मैंने खींचे।
नेहरू से लेकर मोदी तक
मैंने पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर पीएम नरेंद्र मोदी फोटो खींचे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, लाल कृष्ण आडवानी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, डायरेक्टर महेश भट्ट, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे तमाम दिग्गज हस्तियों के फोटो क्लिक कर चुका हूं। इसके अलावा शेखाझील, पक्षी विहार आदि प्रकृति से
जुड़े
तमाम फोटो हैं जो मेरी बेहतरीन यादें हैं।
108 साल पुराना कैमरा
कैमरों का काफी पुराना कलेक्शन भी है। मेरे पास 108 वर्ष पुराना
कोटेक
का कैमरा है। एक 88 वर्ष पुराना बॉक्स कैमरा भी शामिल है। पहले तो नेगेटिव शीशे पर केमिकल लगाकर प्लेट बनाई जाती थी। बाद में यह प्लास्टिक पर आई । आज के मुकाबले पहले फोटोग्राफी बेहद जटिल और कलात्मक हुआ करती थी। फ्लैश का बल्ब एक बार में फ्यूज हो जाया करता था। तब तकनीकी पर आर्ट हावी थी अब तकनीकी ने कलात्मकता को दबा दिया है। तकनीक ने फोटो खींचना बेहद आसान बना दिया है। लेकिन एक वक्त था जब फोटो शूट करने से पहले अपनी आंखों से पहले उसके
सौन्दर्य
बोध को समझना होता था क्योंकि फोटो के शूट हो जाने के बाद उसके मूल स्वरूप में बहुत कुछ किया जाना संभव नहीं होता था ।
पुरस्कार बढ़ाते हैं उत्साह
मुझे तमाम पुरस्कार मिल चुके हैं। अब बच्चे और परिवार के लोग मना करते हैं कि यह सब
छोड़
दीजिए। 71 वर्ष तक बहुत कुछ
कियाए
इसलिए घर पर आराम करिए मगर पुरस्कार और तालियां मेरे हाथों को क्लिक करने के लिए मजबूर कर देती हैं। लोगों का इतना प्यार मिलता है कि मैं अपने आपको रोक नहीं पाता और हर नई सुबह बेहतरीन करने के लिए कैमरा लिए निकल
पड़ता
हूं।
ऐसे हुई विश्व फोटोग्राफी की शुरुआत
जोसेफ ना
इसफोर
और
लूईस
डागेर
नाम के दो वैज्ञानिकों ने
डागोरो
टाइप प्रक्रिया आविष्कार किया था। इस आविष्कार की घोषणा 19 अगस्त 1839 को फ्रांस की सरकार ने की थी, तभी से 19 अगस्त को वर्ल्ड फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है। जो डेढ़ सदी के बाद भी कायम है।