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जन्मजात बीमारियों से ग्रस्त बच्चों को फिर शुरू होगा परीक्षण व उपचार, ये है योजना Aligarh news

कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत कक्षा नौवीं से 12 वीं तक के सरकारी व सहायता प्राप्त स्कूल खुल गए हैं। गंभीर व जन्मजात बीमारियों से ग्रस्त बच्चों का पता लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग की मोबाइल हेल्थ टीमों ने भागदौड़ शुरू कर दी है।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Sat, 28 Aug 2021 05:23 AM (IST)Updated: Sat, 28 Aug 2021 06:19 AM (IST)
जन्मजात बीमारियों से ग्रस्त बच्चों को फिर शुरू होगा परीक्षण व उपचार, ये है योजना Aligarh news
स्वास्थ्य विभाग की मोबाइल हेल्थ टीमों ने भागदौड़ शुरू कर दी है।

अलीगढ़, जेएनएन। कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत कक्षा नौवीं से 12 वीं तक के सरकारी व सहायता प्राप्त स्कूल खुल गए हैं। गंभीर व जन्मजात बीमारियों से ग्रस्त बच्चों का पता लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग की मोबाइल हेल्थ टीमों ने भागदौड़ शुरू कर दी है। इसके लिए गांव-गांव जाकर बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जा रहा है। यह कवायद केंद्र सरकार की राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत करीब डेढ़ साल बाद फिर शुरु हुई है। कोरोना काल में स्कूल-कालेज व आंगनबाड़ी केंद्र बंद हो जाने के कारण ऐसे बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण नहीं पाया था।

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ये है योजना

आरबीएसके के नोडल अधिकारी व अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डा. बीके राजपूत ने बताया ने बताया कि योजना के अंतर्गत जन्म से 18 वर्ष तक के सभी बच्चों का परीक्षण किया जाता है। जन्मजात बीमारियों से ग्रस्त बच्चों को चिह्नित कर जिला अस्पताल, मेडिकल कालेज या फिर जरूरत होने पर हायर सेंटर में भी भर्ती कराया जाता है। जन्मजात बीमारी से पीड़ित बच्चों की नियमित स्क्रीनिग, पहचान, फालोअप और हर संभव उपचार दिया जाता है। शासन ने आरबीएसके के चिकित्सकों व स्टाफ की संबद्धता खत्म करने के निर्देश भी दिए हैं। अति कुपोषित बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण उपरांत मेडिकल कालेज के एनआरसी में भेजने का निर्देश दिये गए है। ओपीडी के दौरान भी बच्चों की स्क्रीनिंग की जा रही है। चिह्नित बच्चों को अस्पताल में भर्ती कर उपचार दिया जा रहा है।

ऐसे की जाती है पहचान

स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात मोबाइल हेल्थ टीम जन्म के उपरांत शिशु का स्वास्थ्य परीक्षण कर देखतें हैं कि कोई जन्मजात विकार तो नहीं है। जन्म के छह सप्ताह का होने तक आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर जांच करती हैं। इसके बाद छह वर्ष तक के बच्चों का आंगनबाड़ी केंद्रों पर पहुंचकर जांच की जाती है। छह से 18 वर्ष तक के छात्र-छात्राओं के लिए यही टीम सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में जांच करती है।

समय से पता चलने पर स्‍थाई विकलांगता कम किया जा सकता है

अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. एसपी सिंह ने बताया कि समय से पता चलने पर स्थाई दिव्यांगता को कम किया जाता है। इसके दिव्यांग व्यक्ति के जीवन में सुधार होगा। समय पर पहचान से इस बीमारी में मौत की दर को काफी कम किया जा सकता है। दांत, ह्रदय और श्वसन संबंधी रोग की पहचान समय पर कर ली जाए तो इलाज संभव है। टीमों को जांच करते समय कोविड प्रोटोकाल का पालन करने के निर्देश दिए गए हैं।


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