हर दूसरे दिन एक जिंदगी निगल रही टीबी
जागरण संवाददाता, अलीगढ़: घर-घर जाकर टीबी रोगियों की खोज व दरवाजे पर ही दवाई (डॉट्स) पहुंचा
जागरण संवाददाता, अलीगढ़: घर-घर जाकर टीबी रोगियों की खोज व दरवाजे पर ही दवाई (डॉट्स) पहुंचाए जाने के दावों का यह भयावह सच है। तमाम कवायद व सरकारी खजाने का मुंह खोलने के बावजूद टीबी यानी क्षय रोगियों की संख्या घटने की बजाय बढ़ रही है। यही नहीं, यही टीबी सालभर में 180 से ज्यादा जिंदगियों को निगल गई, जो कुल मरीजों का 2.5 फीसद है। इस तरह हर दूसरे दिन टीबी से ग्रस्त एक मरीज की जान गई। दैनिक जागरण ने अपने अभियान के तहत मंगलवार को टीबी के खात्मे को लेकर चल रही कवायद के नतीजों को परखा। पेश हैं पांचवीं किस्त..।
हर साल बढ़ रहे टीबी के रोगी: पुनरीक्षित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत बलगम जांच केंद्र, टीबी यूनिट व घर-घर जाकर रोगियों की खोज व उपचार का दावा है। 2014 में 6550 मरीज चिह्नित किए गए। 2015 में थोड़ा सुधार हुआ और यह संख्या 5975 रह गई। 2016 में 5938 मरीज चिह्नित हुए। हैरत की बात ये है कि तमाम दावों के बावजूद 2017 में यह संख्या 7338 हो गई, यानी सालभर में ही 1400 मरीजों का इजाफा हुआ। प्राइवेट अस्पतालों में 2006 मरीज पंजीकृत हुए।
गंभीर टीबी के 130 मामले: सरकारी केंद्रों पर एमडीआर (मल्टी ड्रग रजिस्ट्रेंस) टीबी के 124 व एक्सडीआर (एक्सट्रीम ड्रग रजिस्ट्रेंस) के छह मामले सामने आए। यह टीबी रोगियों की वह श्रेणी है, जो छह माह व आठ माह का इलाज पूरा करने के बाद भी ठीक नहीं हुए। ऐसे मरीजों का इलाज मेडिकल कॉलेज स्थित डीआरटीबी (ड्रग रजिस्ट्रेंस ट्यूबरक्लोसिस) सेंटर में चल रहा है। ऐसे मरीजों का दो साल इलाज चलता है।
330 ने इलाज छोड़ा, 130 चल बसे: सरकारी केंद्रों पर जांच व घर के नजदीक दवा पहुंचाए जाने के बावजूद विभाग में 330 डिफाल्ट मरीज दर्ज हैं। यानी, ये मरीज बीच में ही इलाज छोड़कर चले गए, जो कुल मरीजों का 4.5 फीसद है। वहीं, 2.5 फीसद (करीब 183 मरीज) की मृत्यु हुई।
टीबी से निबटने के लिए सरकारी इंतजाम: जिले में पुनरीक्षित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत 20 टीबी यूनिट बनाई गई हैं। इनमें बलगम की जांच व उपचार की सुविधा है। 37 बलगम जांच केंद्र भी बनाए गए हैं। जिला क्षय रोग केंद्र में भी सीबी नाट मशीन से जांच व तत्काल उपचार की सुविधा है। तमाम इंतजामों के बावजूद यदि मरीजों की संख्या बढ़ी है,तो कहीं न कहीं कमी तो जरूर है। जबकि, जांच से लेकर दवाई तक बिल्कुल मुफ्त है।