Specially On Birth Anniversary: गीतकार शकील बदायूंनी ने अलीगढ़ में रहकर लिखे अशआर,AMU में लिया था दाखिला
अलीगढ़ से भी गहरा नाता रहा है। यही पर उनकी शायरी परवान चढ़ी तमाम अशआर (बहुत से शेर लिखे। वे न केवल यहां एएमयू के छात्र रहे बल्कि बाद में भी अलीगढ़ अलीगढ़ से भी नाता बरकरार रहा।
अलीगढ़ [विनोद भारती]: बहुत लोग नहीं जानते होंगे कि जब प्यार किया तो डरना क्या..., चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो..., लो आ गई उनकी याद..., जब चली ठंडी हवा... जैसे खूबसूरत अल्फाजों से सजेे इन सदाबहार नगमों को सुप्रसिद्ध शायर व गीतकार शकील बदायूंनी ने लिखा। शकील, जिनका जन्म तो बदायूं में हुआ, मगर अलीगढ़ से भी गहरा नाता रहा है। यही पर उनकी शायरी परवान चढ़ी, तमाम अशआर (बहुत से शेर) लिखे। वे न केवल यहां अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के छात्र रहे, बल्कि बाद में भी अलीगढ़ से भी नाता बरकरार रहा। तीन अगस्त को उनकी जयंती है। चाहने वाले उन्हें पूरी शिद्दत से याद कर रहे हैं। आइए, इस कालजयी गीतकार के बारे में जानें...।
यह है गीतकार की जिंदगी का सफर
अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं, सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं..., यह देशभक्ति गीत स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस, हर मौके पर सुनाई पड़ता है। यह गीत भी शकील बदायूंनी का ही लिखा हैैै। शकील की निजी ङ्क्षजदगी की बात करें तो उनका जन्म तीन अगस्त 1916 उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुआ था। बचपन से ही शेर-ओ-शायरी का शौक हो गया। 1935 में बीए की तालीम के लिए एएमयू में दाखिला लिया। यहीं पर उन्होंने अश पढऩे-गढऩे शुरू कर दिए। पढ़ाई के दौरान ही मुशायरों में शिरकत करने लगे। स्नातक के बाद दिल्ली में आपूर्ति अधिकारी के पद पर नौकरी करने लगे। आल इंडिया रेडियो से भी जूुड़े। इस बीच वे बदायूं व अलीगढ़ आते-जाते रहेेे। 1944 में मुंबई चले गए। यहां संगीतकार नौशाद की सोहबत में मुगल-ए-आजम, मदर इंडिया, चौदहवीं का चांद, साहब बीवी और गुलाम समेत कई फिल्मों के लिए सदाबहार गीत लिखे।
11 बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला
गीतकार को 11 बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला, जो रिकार्ड है। 20 अप्रैल 1970 को निधन हो गया।
प्रसिद्ध शायरा डॉ. रिहाना शाहीन कहती हैं कि स्कूल के दिनों में स्टेज पर मैं बदायंूनी साहब की गजल-मेरे हमनफस, मेरे हमनवां, पढ़ती थी। उनकी इश्कियां शायरी ऐसी थी, जिसमें कोई भी व्यक्ति खुद को सामने रख सकता है। आज के दौर में ऐसा कोई शायर दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता। उन्हें पढ़कर ऐसा लगता है, जैसे वे सचमुच महबूब के सामने बैठकर लिखते हों। अलीगढ़ से उनका नाता रहा, यह फख्र की बात है।