किसान आंदोलन में सपा के दखल ने बढ़ाई प्रशासनिक सतर्कता, जानिए विस्तार से Aligarh News
आंदोलन में तमाम किसान संगठन शामिल हैं। अलीगढ़ में यही संगठन धरना-प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे हैं। लेकिन किसी प्रदर्शन ने उग्र रूप नहीं लिया। प्रशासन की भूमिका मूक दर्शक ही रही। लेकिन जबसे सपा इस आंदोलन में कूदी है प्रशासनिक सतर्कता बढ़ गई है।
By Sandeep SaxenaEdited By: Published: Thu, 10 Dec 2020 09:09 AM (IST)Updated: Thu, 10 Dec 2020 09:09 AM (IST)
अलीगढ़, जेएनएन। कृषि विधेयकों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में तमाम किसान संगठन शामिल हैं। अलीगढ़ में यही संगठन धरना-प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे हैं। लेकिन, किसी प्रदर्शन ने उग्र रूप नहीं लिया। प्रशासन की भूमिका मूक दर्शक ही रही। लेकिन, जबसे सपा इस आंदोलन में कूदी है, प्रशासनिक सतर्कता बढ़ गई है। पिछले तीन दिन से चल रहे घटनाक्रम में प्रशासन का पूरा जोर सपाइयों पर ही रहा। कई बार तो टकराव तक की नौबत आ गई। सपा के पूर्व विधायक राकेश सिंह ने एक सिपाही का कॉलर तक पकड़ लिया। वहीं, पूर्व विधायक हाजी जमीरउल्लाह ने बैरिकेडिंग उखाड़ डाले। सड़कों पर जाम-प्रदर्शन हुए, पुलिस से धक्कामुक्की करने में भी सपाइयों ने संकोच नहीं किया। हालांकि, पुलिस ने भी कार्रवाई की। 100 से अधिक सपाइयों पर मुकदमे दर्ज हो चुके हैं। नियमों का उल्लंघन कर रहे सपाइयों पर अभी भी कार्रवाई चल रही है। बुधवार को अकराबाद में पूर्व विधायक राकेश सिंह समेत 15 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट हुई। वहीं दूसरी ओर देखें तो किसी किसान नेता पर अभी तक कोई मुकदमा नहीं हुआ है। जबकि, धरना-प्रदर्शन तो किसान नेताओं की अगुवाई में भी हुए थे। हां, किसानों का उग्र प्रदर्शन कहीं नहीं हुआ। क्या यही वजह है कि प्रशासन किसान नेताओं पर फिलहाल शिकंजा नहीं कस रहा? या फिर शिकंजा कस दिया है, इसीलिए किसान नेता उग्र नहीं हुए? वजह जो भी रही हो, किसान आंदोलन में स्थानीय स्तर पर प्रशासन की रणनीति काम कर रही है।
सभी को मुचलकों पर छोड़ा
भारत बंद के आह्वान के बाद मंगलवार को किसान संगठनों की अगुवाई में जिलेभर में जाम-प्रदर्शन हुए। लेकिन, बाजारों पर भारत बंद का कोई असर देखने को नहीं मिला। किसान संगठनों का कहना था कि वह शहर से देहात तक बाजार बंद कराने निकलेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। शहर में तो साप्ताहिक बंदी के बाद भी बाजार खुले रहे थे। जिन स्थानों पर धरना-प्रदर्शन हुए, वे सांकेतिक ही थे। उग्र प्रदर्शन कहीं नहीं हुआ। वाहनों के आवगमन के लिए किसान नेताओं द्वारा वैकल्पिक मार्ग छोड़े गए थे। प्रशासन ने भी कहीं जोर जबरदस्ती नहीं की। दोपहर तीन बजे तक ज्ञापन देकर धरना-प्रदर्शन का समापन हो गया। प्रशासनिक अधिकारी भी किसान संगठनों की ओर से निश्चिंत दिखाई दिए। लेकिन, सपा नेताओं की गतिविधियों पर निगरानी बढ़ा दी। सोमवार को पार्टी नेतृत्व द्वारा किसान यात्रा के आह्वान पर ही सपा नेता नजरबंद कर लिए गए थे। क्वार्सी बाईपास स्थित पार्टी कार्यालय से सपाइयों ने निकलने की कोशिश की तो गिरफ्तार कर लिया। इस दौरान पुलिस से धक्कामुक्की, तीखी नोकझोंक हुई थी। पुलिस लाइन में तीन-घंटे बैठाकर मुचलकों पर सभी छोड़ दिए। मंगलवार को भी पुलिस ने यही किया। भारत बंद को सफल बनाने के लिए सपा नेताओं ने बाजार बंद कराने की रणनीति बना ली थी। उधर, प्रशासन भी अपनी रणनीति पर काम कर रहा था। सपा में शामिल हुए पूर्व सांसद बिजेंद्र सिंह को पुलिस सुबह ही घर के बाहर से ले गई। बाकियों को पूर्व विधायक जफर आलम के घर से पकड़ कर पुलिस लाइन पहुंचाया गया। अधिकारी जानते थे कि सपाई बाजार में निकल गए टकराव के हालात बन जाएंगे। क्योंकि, बाजार में दूसरे राजनैतिक संगठन भी हैं।
सिपाही का कॉलर पकड़ने पर फंसे पूर्व विधायक
सोमवार को पार्टी कार्यालय से किसान यात्रा निकाल रहे सपाइयों को पुलिस ने उन्हें घेर लिया। तब सपाई वहीं धरने पर बैठ गए और सरकार के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। इसी बीच लखनऊ में पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के हिरासत में लिए जाने की जानकारी मिलने पर सपाई उग्र हो गए। कार्यकर्ताओं का हुजूम सड़क पर आ गया और क्वार्सी चौराहे की ओर बढ़ने लगा। पुलिस ने इन्हें रोकने की भरपूर कोशिश की, लेकिन सपाई चौराहे पर आकर बैठ गए। पुलिस सपाई को उठाने लगी, इसी बीच पूर्व विधायक को भी उठाया गया। क्वार्सी इंस्पेक्टर छोटेलाल के मुताबिक पूर्व विधायक राकेश सिंह ने सिपाही का कॉलर पकड़ लिया। गाली-गलौज भी गई। प्रकरण में पूर्व विधायक के अलावा आमिर आबिद, नजीबुर्ररहमान, अब्दुल हामिद, विशाल उर्फ सोनू, विशू कांत, देवेश, आशीष शर्मा व तीन अज्ञात के खिलाफ मुकदमा कराया गया।
Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें