अलीगढ़ में किसी ने आवासीय नक्शे पर शोरूम बना लिया तो किसी ने बिना नक्शे बना ली कोठी aligarh news
इससे अवैध निर्माण की बाढ़ सी आ गई। सरकार को भी लगने लगा कि अब इन पर कार्रवाई मुश्किल है। इसलिए इन्हें वैध कर खजाना भर लिया जाए।
सुरजीत पुंढीर, अलीगढ़। शहर में अवैध निर्माण व वसूली किसी से छिपी नहीं है। काम सही हो या गलत, जिम्मेदार फौज को अपना हिस्सा चाहिए। अगर हिस्सा नहीं दिया तो फिर आप ऑफिस के चक्कर काटते रहो। ऐसे में लोग भी सोचते हैं कि जब नेग देना ही है तो क्यों न गलत करके ही दिया जाए। इसी कारण अभियंताओं की फौज की मिलीभगत से तमाम लोगों ने अवैध निर्माण कर लिए हैैं। किसी ने आवासीय नक्शे पर शोरूम बना लिया तो किसी ने बिना नक्शे कोठी बनवा ली। इससे अवैध निर्माण की बाढ़ सी आ गई। सरकार को भी लगने लगा कि अब इन पर कार्रवाई मुश्किल है। इसलिए इन्हें वैध कर खजाना भर लिया जाए। इसलिए शमन नीति 2020 आई है। भले ही इसे मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा हो, लेकिन मुसीबत तो उनकी बढ़ी है, जो पहले ही अफसरों की जेब भर चुके हैं। अब उन्हें दोहरी मार झेलनी पड़ेगी।
डुबो दी नैया
सच्चा दोस्त वह होता है, जो मुसीबत में काम आए। अच्छे-बुरे हर काम में अपने मित्र का साथ दे, लेकिन शायद यही बात जलसे वाले भइया के लिए भारी पड़ गई है। अपने बचपन के दोस्तों की खातिर उन्हें अपने सबसे पसंदीदा पद से ही हाथ धोने पड़ गया। हुआ कुछ ऐसा कि पिछले काफी दिनों से बड़े साहब के पास आएदिन उनकी दोस्ती की शिकायतें आ रही थीं। कभी देर रात तक गेस्ट हाउस खुलने की बात होती तो कभी कामकाज में मिलीभगत के आरोप लगते। अब पेट्रोल पंप मामले में भी पंडितजी व यादवजी का नाम चर्चाओं में था। पहले भी इन दोनों पर मिलीभगत के आरोप लगते रहे हैं। बड़े प्रतिनिधि भी खुले मंच से इस पर अपना विरोध जता चुके हैं। ऐसे में बड़े साहब को यह फैसला लेना पड़ा। अब शहर में इस बात की चर्चा हैं कि दोस्ती ने भइया की नैया डुबो दी।
आशीर्वाद से बने सरदार
जलसे का सरदार बनना हर बाबू की इच्छा होती है। इसके लिए कर्मचारी अक्सर प्रयासरत भी करते रहते हैं, लेकिन अगर पिछले कुछ साल के रिकॉर्ड को खंगाले तो कुछ लोग ही इस पद को हासिल कर सके हैं। पिछले दिनों बड़े साहब ने विवादों में फंसे भइया को हटाया तो सभी का मन इस कुर्सी को थामने के लिए हिलोरें मारने लगा। साहब को जरूरत थी एक ऐसे मेहनती कर्मचारी की, जो शांति से इस अहम जिम्मेदारी को संभाल सके। कई नामों पर चर्चा हुई। अंत में कई साल से असलाह की जिम्मेदारी संभालते आ रहे बाबू को नया सरदार बना दिया गया है। हालांकि, इसके पीछे दो मामनीय की विशेष कृपा भी बताई जा रही है। उनकी सिफारिश के बाद ही अंतिम मुहर लगी है। अब यह इस जिम्मेदारी को कितने अच्छे ढंग से संभाल पाते हैं यह तो वक्त बताएगा, लेकिन इनके गुट में खुशी जरूर है।
पंप के नाम से सुलगी चिंगारी
पेट्रोल की चिंगारी जब सुलगती है तो उसकी लपटें दूर तक जाती हैं। इस बार तो शहर में पेट्रोल पंप के नाम से ही ऐसी ङ्क्षचगारी सुलगी है कि अब तक बुझने का नाम भी नहीं ले रही है। इसकी गूंज लखनऊ तक पहुंचने का दावा किया जा रहा है। इसमें सच्चाई कितनी है, ये तो पूरा शहर जानता है। एक बात जरूर है कि जिले की राजनीति इससे जरूर गरम हो गई है। बड़े साहब व बड़े प्रतिनिधि दोनों आमने-सामने हैैं। बड़े साहब ने जनहित में पेट्रोल पंप के प्रस्ताव को भी निरस्त कर दिया है, लेकिन अब कोई गरीबों के लिए मैरिज होम बनवाने का दावा कर रहा है तो कोई युवाओं के लिए इंडोर स्टेडियम की मांग कर रहा है। समर्थकों में भी सोशल मीडिया पर जमकर वाकयुद्ध चल रहा हैं। कभी बड़े प्रतिनिधि की जय-जयकार होती है तो कभी बड़े साहब के फैसले की तारीफ भी।