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कुर्सी पर बैठिए कप्‍तान नहीं तो काम पर सवाल उठना लाजिमी Aligarh news

अलीगढ़ जागरण संवाददाता। अफसरों की पहचान उसके काम से होती है। ऐसे लोग लंबे समय तक याद किए जाते हैं। अगर किसी अफसर ऐसी पहचान बन जाए वो तो अपनी सरकार द्वारा तय समय में आफिस में ही नहीं बैठते तो इसका असर काम पर भी पड़ता है।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Sun, 24 Oct 2021 11:46 AM (IST)Updated: Sun, 24 Oct 2021 11:46 AM (IST)
कुर्सी पर बैठिए कप्‍तान नहीं तो काम पर सवाल उठना लाजिमी Aligarh news
शहर में ऐसी कोई सड़क नहीं जो गड्ढा मुक्त हो।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। अफसरों की पहचान उसके काम से होती है। ऐसे लोग लंबे समय तक याद किए जाते हैं। अगर किसी अफसर ऐसी पहचान बन जाए वो तो अपनी सरकार द्वारा तय समय में आफिस में ही नहीं बैठते तो इसका असर काम पर भी पड़ता है। निगम और एडीए में ऐसा ही हो रहा है। यही कारण रहा कि इनके कप्तान के कुर्सी पर न बैठने की शिकायत जनता के बाद जरिए जिला व मंडल के मुखिया के तक पहुंच गई। जिले की मुखिया को तो यहां तक कहना पड़ा शहर में ऐसी कोई सड़क नहीं जो गड्ढा मुक्त हो। इसके अगले ही दिन मंडल के मुखिया ने भी सख्त नाराजगी जताई। यहां तक कह दिया कि खराब सड़कों की वजह से कानून व्यवस्था बिगड़ी तो जिम्मेदारी तय की जाएगी। कोई भी अफसर नहीं चाहेगा कि उसके काम पर सवाल उठाए। ऐसे में कप्तान को कुर्सी पर बैठने की आदत डालनी होगी।

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जांच में सुस्ती क्यों

इसमें कोई शंका नहीं कि स्वास्थ्य विभाग के मुखिया ने कार्यालय के एसी अपने आवास में लगवा लिए। ये एसी आज भी दीवार पर लटके हुए हैं और साहब को आराम दे रहे हैं। लेकिन जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई कि आखिर ये ऐसी आवास पर लग कैसे गए? लोग तो सुस्त चाल या मामले को ठंडे बस्ते में डालने की ही बात करेंगे। कह भी रहे हैं। लेकिन इस मामले को रफा-दफा करने से पहले इसकी जांच होनी ही चाहिए। अगर इसकी तह में नहीं जाया गया तो एक नया रास्ता खुला जाएगा। कोई भी मुखिया आएगा वो इसका अनुसरण ही करेगा। अगर उसे ये पता चलेगा कि पूर्व में मुखिया ने गलत तरीके से एसी आवास पर लगवा दिए थे उनके खिलाफ कार्रवाई हुई थी। फिर वो इस बारे में सोचेगा भी नहीं। ऐसे में जांच अधिकारी को रिपोर्ट सार्वजनिक कर जनता के सामने रखना ही चाहिए।

जिम्मेदारी से बच नहीं सकते

कोरोना महामारी ने जो जख्म दिए उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। इसमें बहुतों ने अपनों को खो दिया। अब डेंगू व बुखार के प्रकोप से लोग परेशान हैं। इस बीमारी ने भी कई लोगों की जान ले ली। खतरा अभी टला नहीं है। कोरोना की तरह अभी भी इस बीमारी से सावधान रहने की जरूरत है। डेंगू की जांच में काम आने वाली किट पर भी संकट गहराने लगा है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग को और सक्रिय रहने की जरूरत है। नगर निगम की टीम के साथ मच्छर मारने व साफ-सफाई पर तो जोर देना होगा। सरकारी अस्पतालों में गरीब मरीजों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। हर मरीज में ताकत नहीं कि वो निजी अस्पतालों में इलाज करा सके। स्वास्थ्य विभाग इन बीमारियाें से हो रहीं मौतों को भी नहीं नकार सकता। हकीकत को स्वीकार भी करना होगा, ताकि उसी गंभीरता से इस बीमारी से मुकाबला किया जा सके।

चौकन्ना तो रहना होगा

सर्दी आते ही चोर-लुटेरे भी सक्रिय हो जाते हैं। पिछले साल कोहरे की रातों में शटर कटने की कई घटनाएं हुईं। पुलिस बाद में इन घटनाओं का पर्दाफाश भले ही कर दे लेकिन पीड़ित की पीड़ा की भरपाई नहीं हो पाती। माल भी उसे पूरा नहीं मिलता। इसके लिए भी थाने से लेकर कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने होते हैं। ऐसी नौबत ही न आए इसके लिए भी मंथन और चिंतन होना जरूरी है। इसमें पुलिस की भूमिका ज्यादा बनती है। गुरुवार रात दैनिकज जागरण द्वारा चलाए अभियान का मकसद भी यही था। शहर से लेकर देहात तक सर्द रातों के लिए ऐसा सुरक्षा चक्र बनाया जाए जिसे चोर आसानी से न तोड़ पाएं। वो घटनाएं सुरक्षा पर सवाल अधिक खड़ी करती हैं जो चौकी और थानों के आसपास होती हैं। ऐसी घटनाएं भी सुनने को मिली जाती हैं कि पुलिस गश्त पर थी और चोर हाथ साफ कर गए।


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