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वो नासाज हैं : डॉक्टर चाहिए साहब, नोडल अधिकारी नहीं Aligarh News

बीमार होने पर मरीज सबसे पहले जिस चौखट पर जाता है उसे अस्पताल कहते हैं। महामारी काल में सरकारी तंत्र एक अस्पताल को भी ढंग से नहीं चला पा रहा है। कभी डॉक्टर वर्कलोड की शिकायत करते हैं तो कभी पैरामेडिकल स्टाफ।

By Sandeep SaxenaEdited By: Published: Mon, 28 Sep 2020 08:29 PM (IST)Updated: Mon, 28 Sep 2020 08:29 PM (IST)
वो नासाज हैं : डॉक्टर चाहिए साहब, नोडल अधिकारी नहीं Aligarh News
डॉक्टर व स्टाफ की नियुक्ति नहीं हो पा रही है।

अलीगढ़ [ विनोद भारती ]: बीमार होने पर मरीज सबसे पहले जिस चौखट पर जाता है, उसे अस्पताल कहते हैं। महामारी काल में सरकारी तंत्र एक अस्पताल को भी ढंग से नहीं चला पा रहा है। कभी डॉक्टर वर्कलोड की शिकायत करते हैं तो कभी पैरामेडिकल स्टाफ। उच्चाधिकारियों का जोर यहां निरंतर बेड संख्या बढ़ाने पर जोर रहता है, मगर उसके सापेक्ष डॉक्टर व स्टाफ की नियुक्ति नहीं हो पा रही है। इससे प्रबंधन को व्यवस्था बनाने में परेशानी हो रही है। इसका असर मरीजों की देखरेख पर पड़ रहा है। विशेषज्ञ व सुविधा के अभाव में तमाम मरीज 'काल के गाल' में समा गए हैं। हैरत की बात ये है कि अस्पताल को डॉक्टर चाहिए, मगर यहां व्यवस्था बनाने के नाम पर प्रशासनिक व स्वास्थ्य विभाग के अफसर नियुक्त कर दिए गए हैं। इससे स्टाफ बेहद खफा है। सभी का कहना है कि इलाज के लिए डॉक्टरों की जरूरत है, नोडल अधिकारी की नहीं।

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भाड़े को लेकर रार

कोरोना काल में सरकारी गाडिय़ां भी खूब तेल पी रही हैं। हर माह लाखों रुपये के बिलों का भुगतान हो रहा है। पिछले दिनों गाडिय़ों के किराये को लेकर विभाग के ही दो अधिकारियों के बीच विवाद हो गया। धन का लेखा-जोखा रखने वाले साहब के पास बाबुओं के हस्ताक्षर वाली पत्रावली भुगतान के लिए पेश कर दी गई। अधिकारी ने नोडल के हस्ताक्षर न होने पर आपत्ति जताई, फिर पत्रावली भी वापस कर दी। मामला बड़े साहब तक पहुंच गया। नोडल अधिकारी ने भुगतान रुकने के लिए हस्ताक्षर मांगने वाले साहब को जिम्मेदार ठहराया। लेखा-जोखा वाले साहब ने बड़े साहब को बताया कि जब नोडल पुष्टि नहीं कर रहे कि गाडिय़ां चली हैं तो कैसे भुगतान किया जाए। बड़े साहब की त्योरियां चढ़ीं तो नोडल अधिकारी बैकफुट पर आ गए। पता चला है कि इसके बाद नोडल अधिकारी ने पत्रावली पर हस्ताक्षर कर दिए और भुगतान भी हो गया।

 

दीनदयाल की कृपा ही बचेगी जिंदगी

'कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा।' कोरोना महामारी से निपटने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने ऐसा ही किया है। आनन-फानन कई कोविड केयर सेंटर बना दिए। कहीं से वेंटिलेटर तो कही से ऑक्सीजन लेकर सेंटरों को शुरू करा दिया। कुछ डॉक्टरों को इधर से उधर कर दिया। एक और कहावत है-'चल गई तो वाह-वाह, रह गई तो फकीरी'। यहां भी ऐसा ही हुआ। कुछ दिन तो यह व्यवस्था चल गई, मगर जल्द ही कलई खुल गई। संसाधनों के अभाव में व्यवस्था दम तोड़ गई। पहले लोधा और फिर अतरौली सेंटर बंद हो गया। वर्तमान में एक हजार मरीजों के इलाज की व्यवस्था तक नहीं है। एक ही सेंटर है, जिसमें दीनदयाल की कृपा हुई तो ङ्क्षजदगी बच गई, अन्यथा...। आखिर, मरीज 'जब तक सांस, तब तक आस' की स्थिति में कब तक इलाज कराते रहेंगे। अस्पताल में संसाधन कब बढ़ेंगे, और व्यवस्था में कब सुधार होगा।

फिर भी एकजुटता नहीं दिखा सके

पंजे वाली पार्टी के नेता इन दिनों कुछ ज्यादा ही जोश से लबरेज नजर आ रहे हैं। कोई ऐसा मुद्दा नहीं छूट रहा, जिस पर सरकार को घेरा नहीं जा रहा हो। सभी अलग-अलग मोर्चे पर डटे हुए हैं। एक पूर्व प्रतिनिधि सुबह होते ही मास्क व सैनिटाइजेशन के लिए निकल पड़ते हैं। समय मिलता है तो दूसरे आयोजनों में भी जरूर हिस्सा लेते हैं। दूसरे पूर्व प्रतिनिधि अपने बयानों से सरकार पर खूब हमलावर हैं। जिला व महानगर वालों को इन दिनों संगठन सृजन की ज्यादा चिंता लगी है। धरना-प्रदर्शन भी कर रहे हैं। युवाओं की कई टोलियां हैं, जो विभिन्न मुद्दों पर सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रही हैं। एक और नेताजी हैं, जो जनसमस्याओं को लेकर अकेले ही निकल पड़े हैं। एक वरिष्ठ कांग्रेस कार्यकर्ताओं की टीम है, वह भी सक्रिय है। हां, कमी एक ही है कि ये लोग आज भी एकजुट नहीं हो सके हैैं।


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