Aligarh Muslim University : सहिष्णुता, नैतिकता और स्वतंत्र सोच के पक्षधर थे सर सैयद Aligarh news
सात छात्रों से मदरसे के रूप में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की नींव रखने के वाले सर सैयद अहमद खां सहष्णुता नैतिकता और स्वतंत्र सोच के पक्षधर थे। उनका मानना था कि शिक्षा के बिना इंसान अधूरा है। शिक्षा से ही परिवार समाज व राष्ट्र प्रगति करता है।
संतोष शर्मा, अलीगढ़ । सात छात्रों से मदरसे के रूप में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की नींव रखने के वाले सर सैयद अहमद खां सहष्णुता, नैतिकता और स्वतंत्र सोच के पक्षधर थे। उनका मानना था कि शिक्षा के बिना इंसान अधूरा है। शिक्षा से ही परिवार, समाज व राष्ट्र प्रगति करता है। मुस्लिमों के वह एक हाथ में विज्ञान व दूसरे में कुरान देखना चाहते थे। सर सैयद ने उस दौर में नारी शिक्षा पर बल दिया, जब बेटियां घरों से नहीं निकल पाती थीं। पर्दें में पढ़ना पड़ता था। वह संस्थापक दिवस मनाने के भी पक्ष में नहीं थे। 17 अक्टूबर को सर सैयद का 204 वां जन्मदिवस पर है। जिसे एएमयू बिरादरी सर सैयद डे के रूप में मना रही है। कोरोना के चलते इस बार भी वर्चुअल आयोजन हो रहा है। इसके मुख्य अतिथि पूर्व मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर होंगे।
1817 में दिल्ली के दरियागंज में हुआ था सर सैयद का जन्म
सर सैयद अहमद खान का जन्म 1817 में दिल्ली के दरियागंज में हुआ था। अरबी, फारसी, उर्दू में दीनी तालीम के बाद वे न्यायिक सेवा में चले गए। 1864 में वह मुंसिफ के रूप में अलीगढ़ में तैनात रहे। आक्सफोर्ड व कैंब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी का सपना उन्होंने बनारस में नौकरी करने के दौरान 1873 में देखा था। इसके बाद ही उन्हाेंने 24 मई 1875 में सात छात्रों से मदरसा-तुल-उलूम के रूप में यूनिवर्सिटी की नींव रखी थी। एएमयू इतिहास के जानकार डा. राहत अबरार के अनुसार आठ जनवरी 1877 को 74 एकड़ फौजी छावनी में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल (एमएओ) कालेज स्थापित किया। एमएओ कालेज के स्थापना दिवस पर सर सैयद ने सफलता के तीन मूल मंत्र दिए थे। इनमें सहष्णुता, नैतकता और स्वतंत्र को अहम बताया। वो चाहते थे कि छात्र आपस में डिबेट करें। इसलिए उन्होंने एमएओ कालेज में डिबेटिंग क्लब खोला। यह अब यूनियन हाल है। यूनियन हाल से जुड़कर एएमयू ने कई बड़े छात्र नेताओं को जन्म दिया। जो मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल व राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे। नारी शिक्षा को भी बढ़ावा दिया। 1920 में एमएओ कालेज विश्वविद्यालय बना तो पहली चांसलर बेगम सुल्तान जहां को बनाया।
चंदा जुटाने के लिए नाचे भी
समाज को अशिक्षा अंधेरे से निकालने के लिए सर सैयद ने सबकुछ किया। हर किसी से उन्होंने मदद मांगी। अलीगढ़ की नुमाइश में चंदा जुटाने के लिए खुद घुंघरू पहनकर नाचे भी। मदरसा अब एएमयू के रूप में बट वृक्ष बन हुआ है। एएमयू से पढ़े छात्र-छात्राएं आज सौ से अधिक देशों में फैले हुए हैं। सर सैयद ने जिस वक्त शिक्षा का उजियारा फैलाने की ठानी, अधिकांश मुस्लिम लड़कियों को घर से निकलने की आजादी नहीं थी। एएमयू में पढ़ीं छात्राएं आज हर क्षेत्र में डंका बजा रही हैं।
1857 की क्रांति ने झकझोर
सर सैयद अहमद खां को 1857 की क्रांति ने झकझोर दिया था। इस क्रांति में उनके मामू व मामूजाद भाई अंग्रेजों के हाथों मारे गए। मां अजीजुल निशां को दिल्ली में आठ दिन तक घोड़ों के अस्तबल में छिपना पड़ा। घोड़े का दाना खाकर गुजारा किया। मुगल सल्तनत का यह आखिरी दौर था। तभी सर सैयद ने ईस्ट इंडिया कंपनी को नौकरी पाई थी।