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बेहतर पर्यावरण देखकर सर सैयद ने रखी थी भविष्य के एएमयू की नींव

पुरानी दिल्ली के सराय बेहराम बेग में पैदा हुए सर सैयद का अलीगढ़ में आगमन 1864 में हुआ था। ब्रिटिश काल में यहां वह न्यायालय में जज बनकर आए थे।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Sat, 23 May 2020 11:50 PM (IST)Updated: Sun, 24 May 2020 06:00 AM (IST)
बेहतर पर्यावरण देखकर सर सैयद ने रखी थी भविष्य के एएमयू की नींव
बेहतर पर्यावरण देखकर सर सैयद ने रखी थी भविष्य के एएमयू की नींव

संतोष शर्मा, अलीगढ़। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के लिए आज का दिन ऐतिहासिक है। महान शिक्षाविद सर सैयद अहमद खान ने 24 मई 1875 को मदरसा तुल उलूम के रूप में यूनिवर्सिटी की नींव रखी थी। सात छात्रों से शुरू हुआ मदरसा आज एएमयू के रूप में दुनिया में ज्ञान की रोशनी फैला रहा है। आज इसमें 35 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं हैं। पर्यावरण की दृष्टि से अलीगढ़ को बेहतर मानते हुए सर सैयद ने यहां नींव रखी थी। वो जानते थे कि यहां न तो बाढ़ का खतरा है, न अकाल के आसार हैैं, क्योंकि जमीन में पानी 20 फुट पर है। एक दिसंबर 1920 को मोहम्मडन एंग्लो कॉलेज को एएमयू का दर्जा मिला था, जिसे इस साल एक दिसंबर को 100 साल होने जा रहे हैैं, जिसे मनाने की तैयारियां चल रही हैैं।

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दिल्ली में जन्म हुआ था सर सैयद का 

पुरानी दिल्ली के सराय बेहराम बेग में पैदा हुए सर सैयद का अलीगढ़ में आगमन 1864 में हुआ था। ब्रिटिश काल में यहां वह न्यायालय में जज बनकर आए थे। 1869 तक यहां नौकरी की इसके बाद बनारस ट्रांसफर हो गया। अलीगढ़ में रहते हुए ही उन्होंने मुसलमानों की हालत को देखते हुए शिक्षण संस्था खोलने का मन बनाया। सर सैयद जानते थे कि अंग्रेजों से मुकाबले के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है। मुसलमानों में इसका घोर अभाव था। इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने 1869 से 1870 तक इंग्लैंड का दौरा कर वहां की कैंब्रिज व ऑक्सफोर्ड यूूनिवर्सिटी के बारे में जाना। इसके बाद उन्होंने अलीगढ़ में 24 मई 1875 को मदरसा तुल उलूम की नींव रखी। सात छात्रों से इसकी शुरूआत की। पहले छात्र हमीद उल्ला थे।

मदरसा के स्थान को लेकर अलग-अलग राय  

मदरसा तुल उलूम के स्थान को लेकर अलग-अलग राय है। एएमयू इतिहास के जानकार डॉ. राहत अबरार के अनुसार अधिकांश लोगों का मानना है कि सर सैयद ने जेल रोड स्थित समीम मंजिल में मदरसा की शुरुआ की थी। समीम मंजिल उनके दोस्त समी उल्ला की कोठी थी। हमीद उल्ला उनके ही बेटा थेे। यूनिवर्सिटी के प्रो. इफ्तिखार आलम का मानना है कि मदरसा की शुरुआत यूनिवर्सिटी केे गेस्ट हाउस नंबर दो की जमीन पर हुई थी। सुरैया हुसैन का मानना है कि मदरसा की शुरुआत सुलेमान हॉल के पास वाली जमीन हुई थी। वहीं डॉ. राहत अबरार का मानना है कि मदरसा यूनियन हॉल के पास की एक इमारत में शुरू हुआ था। जिसमें सात शिक्षक छात्रों को पढ़ाने के लिए रखे गए थे। 

बनारस के नरेश लाए थे टेंट 

मदरसा खुलने के दो साल बाद सर सैयद ने 8 जनवरी 1877 को 74 एकड़ फौजी की छावनी में मोहम्मद  एंग्लो कॉलेज की नींव रखी। जिसका उद्घाटन उस समय के वायसराय लार्ड लिटिन ने किया। बनारस के नरेश शंभू नारायण भी इसमें शामिल हुए। तब वह कार्यक्रम के लिए टेंट अपने साथ लेकर आए थे। 

पांच सदस्यीय टीम से कराया था सर्वे

डॉ. राहत अबरार के अनुसार सर सैयद वैज्ञानिक सोच के थे। मदरसा की नींव रखने से पहले उन्होंने पांच सदस्यीय टीम से सर्वे कराया था। टीम ने जब अपनी रिपोर्ट में बताया कि  अलीगढ़ का वातावरण शुद्ध है। पानी भी 20 फुट पर है। यहां  कोई नदी भी नहीं हैं इस लिए बाढ़ का खतरा भी नहीं हैं। पानी की कमी नहीं है इस लिए अकाल भी नहीं पड़ सकता। जो विदेशी यहां नौकरी करने आते हैं उनका स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। 


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