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बनारस में सर सैयद ने स्वामी दयानंद सरस्वती से अपने घर में सुने थे वेद मंत्र Aligarh News

शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुलाने के फैसले से बहुत से बुद्धजीवी शायद ही खुश हों। इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब तो नाराजगी जता ही चुके हैं। एएमयू संस्थापक सर सैयद अहमद का विचार ये नहीं था।

By Sandeep SaxenaEdited By: Published: Mon, 21 Dec 2020 10:35 AM (IST)Updated: Mon, 21 Dec 2020 10:35 AM (IST)
बनारस में सर सैयद ने स्वामी दयानंद सरस्वती से अपने घर में सुने थे वेद मंत्र Aligarh News
चिंता न तो सर सैयद ने की और दया नंद सरस्वती ने।
अलीगढ़, जेएनएन। अलीगढ़ मुस्लमि यूनिवर्सिटी (एएमयू)के शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुलाने के फैसले से बहुत से बुद्धजीवी शायद ही खुश हों। इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब तो नाराजगी जता ही चुके हैं। लेकिन, एएमयू संस्थापक सर सैयद अहमद का विचार ये नहीं था। उनका मानना था कि संवाद होते रहना चाहिए। बनारस में जब महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों से लोग खुश नहीं थे, तब सर सैयद ने उन्हें अपने घर वेद सुनने को बुलाया था। सैयद के घर पर सरस्वती जी ने मुसलमानों को वेद मंत्र सुनाए। इससे भी तब के लोग खुश नहीं थे। इसकी चिंता न तो सर सैयद ने की और दया नंद सरस्वती ने।
 
स्वामी जी ने सर सैयद व अन्य मुसलमानों को वेद मंत्र सुनाए
ये बात 19वीं सदी की है। हिंदू धर्म के मार्टिन लूथर कहे जाने वाले महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती ने धर्म के क्षेत्र में चारों तरफ फैले भ्रष्टाचार, पाखंड, अज्ञान, रुढि़वाद और विवेकहीनता को उखाड़ फेंकने का बीड़ा उठाया था। उन्होंने सैकड़ों संप्रदायों में बट चुके हिंदू धर्म को वैदिक आधार पर पुर्नगठित करने का आव्हान किया लेकिन बनारस और इलाहाबाद जैसे शहरों में इसका असर सबसे कम पड़ा। वहां सनातम धर्म की जड़ें मजबूत थीं। उसे हिंदू नरेशों की सरपरस्वती भी हासिल थी। धर्म की नगरी बनारस को फतेह करने के लिए स्वामी जी ने नौ बार वहां गए। एएमयू के इतिहास के जानकार डॉ. राहत अबरार बताते हैं कि जब स्वामी जी को सफलता नहीं मिली तो सर सैयद ने अपने घर पर उन्हें बुलाया। वहां स्वामी जी ने सर सैयद व अन्य मुसलमानों को वेद मंत्र सुनाए। इसका राजा शिव प्रसाद ने विरोध भी किया। सर सैयद का मानना था कि हमें एक-दूसरे के धर्म के बारे में जानना चाहिए। ये बातचीत से ही संभव है। संवाद के बिना एक-दूसरे को समझ पाना संभव नहीं हैं। दयानदंद सरस्वती के राजा जय किशनदास मित्र थे। जब भी स्वामी जी अलीगढ़ आते सर सैयद उनसे मिलने राजा के घर जरूर जाते थे।

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पीएम से कुछ बड़ा देने की उम्मीद
एएमयू के धर्मशास्त्र संकाय के सहायक प्राध्यापक डॉ. रेहात अख्तर ने कहा है कि शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुख्य अतिथि के रूप में दावत नामा कबूल करना एक ऐतिहासिक फैसला है।100 साल के सफर में यूनिवर्सिटी ने समाज सुधार के लिए एक बड़ा योगदान दिया है। यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाला विद्यार्थी और इससे जुड़े हुए लोग पीएम के कार्यक्रम को लेकर उत्साहित हैं। सभी को उममीद है कि पीएम यूनिवर्सिटी को कुछ ऐसा देंगे जिससे यूनिवर्सिटी को मजबूती मिलेगी। समाज सुधार के क्षेत्र में शिक्षक हमेशा आगे रहे हैं। कोरोना काल में भी शिक्षकों ने पीएम केयर्स फंड में वेतन काटकर जमा किया। कुलपति प्रो. तारिक मंसूर ने विश्वविद्यालय के लिए मजबूती से काम कर रहे हैं। उम्मीद है कुलपति का यह प्रयास यूनिवर्सिटी को नंबर एक बनाने में मदद करेगा।
शताब्दी समारोह मेें मोदी का संबोधन सराहनीय
प्रगतिशील सपा लोहिया के महानगर अध्यक्ष व पूर्व एएमयू छात्र बाबा फरीद आजाद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन को सराहनीय बताया। कहा, एएमयू से निकले विद्यार्थी देश-दुनियां में संस्था का नाम रोशन कर रहे हैं। यहां से निकले छात्र व शिक्षक भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। पीएम के संबोधन से विश्व में अलग संदेश जाएगा।
 
प्रधानमंत्री के लिए सौभाग्य की बात: जमीर
पूर्व विधायक हाजी जमीरउल्लाह खान ने कहा कि एएमयू शताब्दी समारोह में संबाेधन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सौभाग्य की बात है। 100 वर्ष बाद ये दिन आता है। ऐसा सुनहरा मौका नसीब वाले इंसान को ही मिलता है। इस सुनहरे मौके पर वह कोई चूक नहीं करेंगे। मोदी अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतना चाहते हैं, इसीलिए भाजपाइयों को एएमयू के प्रति अपनी भावनाएं सौहार्दपूर्ण बना लेनी चाहिए। पूर्व विधायक ने कहा कि प्रधानमंत्री से आशा है कि वह एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के साथ भारी बजट की घोषणा करेंगे।

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