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Amrit Festival of Freedom : आजादी की पताका फहराने में मशहूर रहा शेखुपुर अजीत गांव, खेत-खलिहान में बनती थी जंग की रणनीति

Amrit Festival of Freedom देशभर में आजादी का अमृत महोत्‍सव मनाया जा रहा है। हाथरस का एक गांव है शेखुपुर अजीत जहां आजादी के परवानों की फौज थी खेत खलिहानों में जंग की रणनीति तैयार होती थी। हाथरस के ठाकुर राम सिंह भी उन्‍हीं योद्धाओं में से एक थे।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Sun, 14 Aug 2022 06:04 PM (IST)Updated: Sun, 14 Aug 2022 06:13 PM (IST)
Amrit Festival of Freedom : आजादी की पताका फहराने में मशहूर रहा शेखुपुर अजीत गांव, खेत-खलिहान में बनती थी जंग की रणनीति
देश को आजादी दिलाने में हाथरस के विभिन्न गांव के योद्धाओं के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

योगेश शर्मा, हाथरस । Amrit Festival of Freedom : देश को आजादी दिलाने में हाथरस के विभिन्न गांव के योद्धाओं के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। हकीकत तो ये है कि हाथरस जनपद का शेखुपुर अजीत गांव the stronghold of freedom fighters रहा है। इसी गांव के राम सिंह देश सेवा के लिए समर्पित हो गए। इस गांव के योद्धाओं ने खेत-खलिहान में रहकर आजादी की लड़ाई का संचालन किया था। आजादी के योद्धाओं की बदौलत 1947 में देश को आजादी मिली थी। 

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हाथरस के रहने वाले थे ठाकुर राम सिंह : हमारे देश की आजादी को मिले 75 वर्ष हो चुके हैं और सारा राष्ट्र freedom struggle के योद्धाओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए इस वर्ष nectar festival of freedom मना रहा है। यह समय उत्सव के साथ, साथ उन लोगों की याद करने का भी है जिन्होंने आजादी के लड़ाई में अपना योगदान दिया। देश के प्रति समर्पित हो गए। उन्हीं में से एक नाम ठाकुर राम सिंह का भी है। जिनका जन्म सन 1912 में हाथरस जनपद के ग्राम शेखुपुर अजीत के एक किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम गुलाब सिंह था ।

स्‍वतंत्रता सेनानियों का गढ़ रहा है शेखुपुर अजीत : राम सिंह के जन्म के समय से पूर्व ग्राम शेखुपुर अजीत स्वतंत्रता सेनानियों का गढ़ रहा । मुंशी गजाधर सिंह और ठाकुर मलखान सिंह के संपर्क में आकर इस गांव के सबसे अधिक लोग स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े मुंशी गजाधर सिंह इसी गांव के विद्यालय में अध्यापन कार्य किया करते थे। युवाओं में अपनी आजादी की लड़ाई के लिए चेतना जागृत करते थे ।

उन्हीं के संपर्क में आकर राम सिंह आजादी के इस आंदोलन में भाग लेने का दृढ़ निश्चय किया। गांव के ऐसे युवा लोगों का संगठन तैयार किया जो आस-पास के गांव में जाकर भी सभाएं करते तथा आजादी के लिए जनचेतना जागृत करते । इसी क्रम में ग्राम बघराया, ग्राम कौमरी जैसे बड़े बड़े गांव में आजादी के दीवानों ने इतनी पकड़ बना ली थी कि पुलिस और उनके मुखबिर लाख कोशिश करने के बावजूद भी आसानी से इनका पता नहीं लगा पाते थे और यह गांव के ही खेत- खलिहान में रहकर वहां से अपनी आजादी की लड़ाई का संचालन करते थे।

समझौते के आधार पर हुए थे राम सिंह रिहा : राम सिंह को ग्राम शाहगढ़ में एक सभा करते हुए अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया तथा राष्ट्रीय स्तर पर गांधीजी और लॉर्ड इरविन के मध्य 1931 में हुए समझौते के आधार पर इन्हें जेल से रिहा किया गया। उसके बाद भी अंग्रेजी कपड़ों की होली जलाना, असहयोग आंदोलन तथा राष्ट्रीय स्तर पर चलाए जा रहे विभिन्न आंदोलनों में ठा. राम सिंह और उनके युवा साथी समय-समय पर अंग्रजी सरकार द्वारा गिरफ्तार किए गए और उन्हें अर्थदंड भी देना पड़ा। आजादी के योद्धाओं की बदौलत वर्ष 1947 में देश को आजादी मिली।

आजादी के बाद उस समय की ग्राम पंचायत जिसमें गांव शेखुपुर अजीत,ठूलई ,हीरापुर, चंदनपुर सहित चार गांव को मिलाकर एक प्रधान बनाया जाता था तब गांव की जनता ने मिलकर उन्हें निर्विरोध ग्राम प्रधान बनाया और 15 वर्षों तक वह निर्विरोध इस पद पर बने रहे।

1984 में हुआ निधन : सरकार द्वारा आजादी के 25 वर्ष पूरे होने पर तत्कालीन केंद्रीय मंत्री ने ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया और इन्हें पेंशन प्रदान की गई। परिवार में वह अपनी पत्नी तुलसा देवी पुत्र अमरपाल सिंह, बृजपाल सिंह और पुत्री इंद्रावती देवी को छोड़कर आप वर्ष 1984 में स्वर्गलोक को प्रस्थान कर गए और उनका परिवार आज भी गांव में रहकर कृषि कार्य में लगा हुआ है। इस गांव के 12 लोगों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पेंशन मिलती थी यह गांव स्वतंत्रता सेनानियों का गढ़ होने के कारण यहां के ग्रामवासियों की सरकार से मांग है कि यहां से स्वतंत्रता सेनानियों पार्क बनवा कर उनके नाम का एक शिलालेख लगवाया जाए।


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