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स्वयं में प्रफुल्लित होने का अवसर देती है निस्वार्थ सेवा Aligarh news

सदियों से एक कहावत प्रचलित है कि नेकी कर दरिया में डाल अर्थात भलाई करो और भूल जाओ। उसमें लेशमात्र लालच नहीं होना चाहिए। लालच के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। गंधार के राजा शिवि ने कबूतर की रक्षा के लिए शरीर से मांस काटकर दान कर दिया था।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Thu, 12 Nov 2020 04:43 PM (IST)Updated: Thu, 12 Nov 2020 04:43 PM (IST)
स्वयं में प्रफुल्लित होने का अवसर देती है निस्वार्थ सेवा Aligarh news
नन्दनी सिंह अग्रवाल, प्रधानाचार्य, कृष्णा इंटरनेशनल स्कूल

अलीगढ़, जेएनएन :  सदियों से एक कहावत प्रचलित है कि नेकी कर दरिया में डाल अर्थात भलाई करो और भूल जाओ। उसमें लेशमात्र भी लालच नहीं होना चाहिए। लालच के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। गंधार के राजा शिवि ने एक कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर से मांस काटकर दान कर दिया था। दानवीर कर्ण आदि की कथाओं से साहित्य भरे पड़े हैं। उन सभी ने निस्वार्थ भाव से भलाई की है। सब जानते हैं कि भलाई करने के बाद व्यक्ति का मन स्वयं प्रफुल्लित होता है। एक साहस मिलता है और एक सच्ची ताकत उसके अंदर हिलोरें पैदा करती है। चोर-लुटेरा दूसरे का हक छीनने वाला समाज से डरता है। इन भलाइयों से दूर रहता है। समाज की दृष्टि में वह बहुत छोटा होता है। देवयोग से यदि उसे किसी सज्जन पुरुष का सानिध्य मिल जाता है तो वह सुधार के मार्ग पर चलने लगता है और अजामिल जैसा दुष्ट होकर भी वह मोक्ष को प्राप्त करता है।

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खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है

कहा जाता है कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है और नीम के पेड़ पर चढऩे के बाद गिलोय और भी कड़वी हो जाती है। तब समाज के अच्छे लोगों को देखकर अच्छे ही बनने का प्रयास किया जाए। बुरे लोगों को देखोगे तो नि:संदेह उनका प्रभाव आप पर भी पड़ेगा। भलाई की ताकत के सामने यह सब क्षीण है। स्वामी विवेकानंद हों या दयानंद सरस्वती, राजा राममोहन राय हों या ईश्वरचंद विद्यासागर, सबने इस देश की भलाई की है। भूले भटके लोगों को सद्मार्ग दिखाया है। आडंबरों से दूर रहने की सीख दी। मनुष्य मात्र नहीं, प्राणी मात्र की भलाई करने को कहा। एंड्रोक्लीज जब एक बार जंगल से गुजर रहे थे तो उन्हें शेर मिला, जो कराह रहा था। उसके पंजे में एक कांटा चुभा हुआ था। शेर ने पैर उठाया और एंड्रोक्लीज ने कांटा निकाल दिया। दोनों अपने-अपने गंतव्य की ओर चले गए। कुछ समय बाद उसी शेर को दूसरे राजा ने पकड़ लिया और ङ्क्षपजरे में बंद कर दिया। दुर्भाग्य से एंड्रोक्लीज को भी उसी राजा ने बंदी बना लिया। बदले की भावना से राजा ने एंड्रोक्लीज को भूखे शेर के सामने डालने का आदेश दिया। सब लोग आश्चर्यचकित रह गए, जब शेर से एंड्रोक्लीज पर हमला करने की बजाय उसके सामने अपना शीश झुका दिया। भलाई करने का समय जीवन में बार-बार नहीं आता है। समय मिला है तो उसे प्रयोग किया जाए। शायद इससे अधिक इस संबंध में स्पष्टीकरण देने की जरूरत नहीं है। नफरत के साथ रहना व नकारात्मकता फैलाना आसान है, परंतु उचित नहीं। दया दिखाना और दया करना या दयालु होना बहुत कठिन है, लेकिन अच्छा है। महानता मजबूत होने में नहीं, शक्ति के सही उपयोग होने में निहित है। ताकत का सही प्रयोग किया जाए तो उसकी महिमा उसे ऊपर तक ले जाने का काम करती है। वह ताकत एक लंबे समय के लिए आकर्षण बनती है। कतिपय लोग दयालु की दयालुता की कदर न करते हुए उसे कमजोरी के रूप में देखते हैं। यह उनका भ्रम है। सच्चे अर्थों में भलाई ही सबसे बड़ी ताकत है और वह सभी के पास है। अंतर इतना है कि कुछ लोग उसका उपयोग करते हैं और कुछ नहीं। 


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