सारथी बनी सरकार, जीत ली नागरिकता की 'जंग', पाकिस्तान से आए परिवारों में खुशीAligarh News
आजादी के 72 साल बाद भी दोनों मुल्क के बाशिंदे बंटवारे का दंश झेल रहे हैं। सरहद ने इनका मुकद्दर तो तय कर दिया मगर नागरिकता पाने में तकदीर मात खा गई थी।
अलीगढ़ [लोकेश शर्मा]। आजादी के 72 साल बाद भी दोनों मुल्क के बाशिंदे बंटवारे का दंश झेल रहे हैं। सरहद ने इनका मुकद्दर तो तय कर दिया, मगर नागरिकता पाने में तकदीर मात खा गई थी। 1971 के युद्ध के बाद विस्थापित होकर पाकिस्तान से भारत आए चाय कारोबारी नरेश मोटवानी के परिवार को आज तक नागरिकता नहीं मिल सकी। रमेशलाल का भी यही दर्द है। ऐसे कई परिवार हैं, जो हाथ में लांग टर्म वीजा (एलटीवी) लेकर नागरिकता के लिए जंग लड़ रह रहे थे। वे कहते हैं कि मोदी सरकार ने सारथी बनकर हमें जीत दिला दी है। अब उन्हें भारतीय नागरिक के रूप में पहचान मिल जाएगी। खुशी से झूमे इन परिवारों ने एक-दूसरे का बधाई देकर मिठाई बांटी।
नागरिकता के लिए किया संघर्ष
सिंध प्रांत (पाकिस्तान) के जैकबबाग के मूल निवासी नरेश कुमार मोटवानी की यहां नई बस्ती बन्नादेवी में 'मोटवानी चाय' के नाम से फर्म है। बकौल नरेश, बंटवारे के बाद दोनों मुल्कों की सरकारों ने माइग्रेशन सर्टिफिकेट पर नागरिकों को इधर से उधर भेजा था। 1970 में उनके परिवार को भी माइग्रेशन सर्टिफिकेट मिला था। 1971 में युद्ध शुरू हो गया। इस कारण वो भारत नहीं आ सके। 1972 में सर्टिफिकेट खारिज हो गया। पासपोर्ट मिलने पर सात दिसबंर- 77 को मां सुशीला देवी तीन बेटे और दो बेटियों को लेकर भारत आईं, तभी से नागरिकता के प्रयास किए जा रहे हैं। हर साल एलटीवी के फार्म भरने पड़ते हैं। मोटवानी कहते हैं कि 42 साल से नागरिकता पाने के लिए लड़ रहे थे, अब उन्हें भारतीय नागरिक के रूप में पहचान मिल जाएगी।
बहनों की शादी, भाइयों ने बसाए घर
पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए ज्यादातर पाकिस्तानी परिवार नई बस्ती में रह रहे हैं। नरेश मोटवानी बताते हैं कि 2017 में उनकी मां सुशीला देवी का निधन हो गया था। बड़े भाई गुरमुख दास, रामचंद्र और भगवान दास ने शादी कर घर बसा लिए। तीन बहनों की शादी यहीं हुई है। मोटवानी कहते हैं कि जैसे कृष्ण ने सारथी बनकर पांडवों को जीत दिलाई थी, ऐसे ही प्रधानमंत्री ने हमें जिता दिया।यहां जगदीश नवलानी, रमेशलाल सचदेवा का परिवार भी यहीं रहता है। सभी परिवारों में खुशी की लहर है। फोन, वाट्सएप पर मैसेज कर बधाई दी, मिठाई भी बांटी।
विधेयक का महत्व
नई बस्ती में रहने वाले नरेश मोटवानी का कहना है कि नागरिक संशोधन विधेयक का जो लोग विरोध कर रहे हैं, अगर उन लोगों के परिवारों ने हमारी तरह यातनाएं झेली होतीं तो उन्हें विधेयक का महत्व पता चलता।