web बैंकों के निजीकरण के विरोध में कर्मचारियों का संसद पर धरना 29 को, ये है schedule
केंद्र सरकार सरकारी उपक्रमों को बेचने पर आमदा है। देश के बंदरगाह एयरपोर्ट व रेलवे का हिस्सा भी बेच चुके हैं। अब सरकार की अगुवाई करने वालों की बैंकों पर बुरी नजर है। संसद सत्र में सरकार बैंकों के सरकारी शेयरों को बेचने का बिल प्रस्तुत पेश करेगी।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। यूनाइटेड फोरम आफ बैंक यूनियंस ने बैंको के निजीकरण के विरोध में चरण बद्ध तरीका से आंदोलन छेड़ने का निर्णय लिया है। इसे लेकर गुरुवार को सिविल लाइंस स्थित पीएनबी की शाखा पर बैठक हुई। संगठन के जिला संयोजक वीके शर्मा ने कहा कि फेडरेशन बैंकों के निजीकरण के विरोध में देशव्यापी आंदोलन करने जा रही है। पहले चरण में 29 नवंबर से संसद सत्र के दौरान दिल्ली में धरना प्रदर्शन होगा। उन्हाेंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार देश के सभी सरकारी उपक्रमों को बेचने पर आमदा है। देश के बंदरगाह, एयरपोर्ट व रेलवे का हिस्सा भी बेच चुके हैं। अब सरकार की अगुवाई करने वालों की बैंकों पर बुरी नजर है। आगामी संसद सत्र में सरकार बैंकों के सरकारी शेयरों को बेचने के लिए बिल प्रस्तुत पेश करेगी। इस बिल के विरोध में फेडरेशन से जुड़े नौ यूनियन धरना प्रदर्शन करेंगे। सरकारी बैंकों को देश के बड़े औद्योगिक घरानें को नहीं बेचने दिया जाएगा।
कोरोना के चलते आंदोलन किया था स्थगित
फेडरेशन के प्रस्तावित धरना प्रदर्शन की रूप में रखा के बारे में शर्मा ने बताया है कि सरकार ने बजट सत्र में दो राष्ट्रीयकृत बैंकों का निजीकरण की घोषणा की है। इसके विरोध में फोरम की अगुवाई में 15 और 16 मार्च मार्च 2021 में संगठनाें ने विरोध किया था। दो दिनी बैंकों में हड़ताल रही। आंदोलन की अगुवाई करने वाले नेताओं के साथ समय समय पर आंदोलन को धार दी गई। जुलाई व अगस्त 2021 के दौरान आयोजित संसद के पिछले सत्र के दौरान भी आंदोलन का निर्णय लिया गया था, मगर कोरोना प्राटोकाल के चलते अधिकारियों व कर्मचारियों की यूनियनों ने आंदोलन को स्थिगित कर दिया।
ऐसे होगी ग्राहकों का शोषण
संयोजक शर्मा ने बताया कि बैंकों के निजीकरण करने की सरकार की एक सोची समझी रणनीति है।बैंकों के लंबित वकाया लोन वसूल करने के लिए कोई कारगर कानून जानबूझकर नहीं बनाया गया है। जानबूझकर लोन चुकता न करने वालों के विरुद्ध कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाती है, जबकि बैंक संगठन इसकी बार बार मांग करते रहे है। सरकार बढ़ते हुए एनपीए का हवाला देकर बैंकों को जानबूझकर घाटे में दिखाना चाहती है। फिर सरकार के इशारे पर वित्तमंत्रालय तर्क पेश करता है कि घाटे के चलते सरकारी बैंकों का एक मात्र उपाय निजीकरण है। यह सरकार की एक सोची समझी साजिश है। शर्मा ने दावा किया है कि 80 बैंकों का बकाया लोन बड़े बड़े औद्योगिक घरानों के पास हैं । यही औद्योगिक घरानें जिन्होंने बैंकों के लोन चुकता नहीं किए है, बैंकों के शेयरों को खरीद लेंगें। फिर बैंकों की जन कल्याणकारी नीतियों को समाप्त कर कर दिया जाएगा। ग्राहकों पर विभिन्न प्रकार के शुल्क लगाकर उनसे सेवा शुल्क वसूला जाएगा।