प्रणब के पहुचंने पर विपक्षियों का सवाल, भाजपा निहाल
जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के
जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय में पहुंचने पर नई बहस छिड़ गई है। हालांकि, प्रणब दा ने अपने भाषण में कोई ऐसी बात नहीं की जो विवादों को जन्म दे, मगर उनके आरएसएस के मुख्यालय पहुंचने के तमाम निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। भाजपा व ¨हदूवादी नेता इसे सहज बता रहे हैं, तो विपक्षी टिप्पणी करने से पीछे नहीं चूक रहे हैं। वह कह रहे हैं आरएसएस के चाल-चरित्र के बारे में सभी को पता है, इसलिए वह कब धोखा दे दे कोई पता नहीं।
नेताओं के बोल
आरएसएस राष्ट्रवादी विचारधारा का संगठन है। नागपुर स्थित मुख्यालय में देशभक्ति का पाठ पढ़ाया जाता है। फिर ऐसी जगह पर जाने में किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस के संस्थापक की तारीफ की है, जिससे विपक्षी सहम गए हैं।
डॉ. विवेक सारस्वत, महानगर अध्यक्ष भाजपा
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प्रणब मुखर्जी का आरएसएस मुख्यालय पहुंचना उनकी मानसिकता और योग्यता का स्वतंत्र निर्णय है। वह आज पार्टी और पद से मुक्त हैं। उन्होंने अपने भाषण में देशभक्ति और संस्कृति का संदेश दिया है। इससे कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं होने वाला है।
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आरएसएस की चाल व चरित्र को सभी जानते हैं। एक खास तबके के खिलाफ ये नफरत फैलाने का काम करती है, जिससे एक वर्ग में दहशत रहती है। मुझे समझ में नहीं आता है कि ये सब होने के बाद भी पूर्व राष्ट्रपति संघ के कार्यक्रम में कैसे पहुंच गए।
अशोक यादव, जिलाध्यक्ष सपा
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प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति रहे हैं, जो गरिमामयी पद है। वह विद्वान और जानकार भी हैं। कांग्रेस में लंबा वक्त बिताया है, उसके बाद भी वह नागपुर कार्यालय गए, ऐसी जगहों से उन्हें बचना चाहिए था।
तिलकराज यादव, जिलाध्यक्ष बसपा ===============
इंसेट====
दलगत राजनीति से अपने को रखा अलग
अलीगढ़: डॉ. वीवी पांडेय ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ. प्रणब मुखर्जी ने अत्यन्त सधे हुए ढंग से जैसा संतुलित बौद्धिक भाषण दिया उसने देशवासियों की उस आशका को निर्मूल कर दिया कि कांग्रेसी विचारधारा के अनुरूप प्रणब दा स्वयं सेवकों को धर्मनिरपेक्षता की नसीहत देने से नहीं चूकेंगे। कांग्रेस के नेता भी ऐसा ही मानकर चल रहे थे, मगर उन्होंने अपने बौद्धिक को राष्ट्र, राष्ट्रीयता और राष्ट्रभक्ति के इर्द-गिर्द रखते हुए उसे दलगत राजनीति से अलग रखा। उन्होंने भारत के इतिहास को आधार बनाकर भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद को व्याख्यायित किया। उन्होंने असहिष्णुता को देश के लिए घातक बताया।