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अलीगढ़ में मरणोपरांत नेत्रदान की इच्छाएं तोड़ रहीं दम, ये हैं मुख्‍य कारण

उत्‍तर प्रदेश के जनपद अलीगढ़ में मरणोपरांत नेत्रदान करने की इच्‍छाएं दम तोड़ रहीं हैं। इसके लिए सरकारी कार्य प्रणाली भी जिम्‍मेदार है। गूलर रोड के राजीव अग्रवाल ने कई साल पहले नेत्रदान का संकल्प लेकर सभी औपचारिकताएं पूरी कर दी थीं।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Mon, 28 Nov 2022 02:18 PM (IST)Updated: Mon, 28 Nov 2022 02:18 PM (IST)
अलीगढ़ में मरणोपरांत नेत्रदान की इच्छाएं तोड़ रहीं दम, ये हैं मुख्‍य कारण
अलीगढ़ में मरणोपरांत नेत्रदान करने की इच्‍छाएं दम तोड़ रहीं हैं।

अलीगढ़, केसी दरगड़। उत्‍तर प्रदेश के जनपद अलीगढ़ में मरणोपरांत नेत्रदान करने की इच्‍छाएं दम तोड़ रहीं हैं। इसके लिए सरकारी कार्य प्रणाली भी जिम्‍मेदार है। गूलर रोड के राजीव अग्रवाल ने कई साल पहले नेत्रदान का संकल्प लेकर सभी औपचारिकताएं पूरी कर दी थीं। 55 वर्ष की आयु में उनका 10 नवंबर को निधन हो गया था, लेकिन संकल्प अधूरा रह गया। उनके बेटे निखिल अग्रवाल और अभिषेक अग्रवाल के कहने पर देहदान संस्था के पदाधिकारियों ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के जवाहर लाल नेहरू (जेएन) मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल से संपर्क किया। जवाब मिला, इंस्टीट्यूट आफ आप्थल्मोलाजी में नेत्र बैंक के लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं हो सका है। यहां नेत्रदान नहीं किया जा सकता। जिले में यही एक ही स्थान है, जिसके लाइसेंस नवीनीकरण न होने से नेत्रदान मुहिम को ब्रेक लग गया है।

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दस साल से बंद है नेत्र बैंक

2006 से अगस्त 2022 तक अलीगढ़ के अलावा आसपास के जिले के अनेक लोगों के नेत्रदान किए जा चुके हैं। पिछले छह सालों में देहदान संस्था इस नेत्र बैंक में 29 लोगों के नेत्र दान करा चुकी है। संस्था के 222 सदस्य नेत्रदान का संकल्प ले चुके हैं। यह संख्या बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन नेत्रदान की प्रक्रिया रुकने से संस्था को झटका लगा है। संस्था के अध्यक्ष डा. एसके गौड़ के अनुसार केवल मेडिकल कालेज की नेत्र बैंक पर ही निर्भर हैं। आसपास के किसी जिले में नेत्र बैंक नहीं है। प्रदेश में खास पहचान रखने वाले गांधी आई हास्पिटल में भी नेत्र बैंक था, लेकिन यह पिछले 10 साल से बंद हैं। ऐसे में नेत्रदान को लेकर चिंता बढ़ गई है।

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2006 में खुला था नेत्र बैंक

जेएन मेडिकल कालेज में इंस्टीट्यूट आफ आप्थल्मालोजी वर्ष 1952 में स्थापित की गई थी। 2006 में नेत्र बैंक स्थापित किया गया। इसका लाइसेंस पांच साल के लिए वैध होता है। वर्ष 2017 में बने लाइसेंस की वैधता सितंबर 2022 तक थी। यह समय पूरा हो गया। नवीनीकरण की फाइल तीन महीने से लखनऊ स्थित महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा कार्यालय में लंबित है। इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर प्रो. योगेश गुप्ता ने बताया कि इस संबंध में 15 अक्टूबर को महानिदेशक को पत्र लिखा जा चुका है।

लाइसेंस के नवीनीकरण की प्रक्रिया की सभी औपचारिकताएं पूरी कर दस्तावेज लखनऊ स्थित महानिदेशक के कार्यालय भेजे जा चुके हैं। नवीनीकरण होने पर नेत्रदान की प्रक्रिया शुरू करा दी जाएगी।

प्रो. राकेश भार्गव, प्रिंसिपल, जेएन मेडिकल कालेज

गांधी आई हास्पिटल नेत्र बैंक की पुनर्स्थापना के लिए शासन को आवेदन किया जा चुका है। शासन स्तर पर निर्णय का इंतजार है।

डा. मधुप लहरी, अधीक्षक, गांधी आई हास्पिटल

लाइसेंस प्रक्रिया कहां पेंडिंग है, इसका पता लगाकर त्वरित कार्रवाई की जाएगी। लाइसेंस दिलाने की औपचारिकता जल्द पूरी की जाएगी।

श्रुति सिंह, महानिदेशक, चिकित्सक शिक्षा


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