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पोखर प्रकरण पर फिर गरमाई सियासत, भाजपा नेताओं की गुटबाजी आई सामने Aligarh news

पोखर प्रकरण से फिर भाजपा में सियासत गरमा गई है। दो गुट आमने सामने आ गए हैं। शहर में पोखर प्रकरण भाजपा नेताओं के लिए हमेशा विवाद बना रहा है। फिर चाहे गूलर रोड स्थित पोखर हो या फिर सुरेंद्र नगर पानी की टंकी स्थित पोखर ही क्यों न हो?

By Anil KushwahaEdited By: Published: Mon, 14 Jun 2021 02:13 PM (IST)Updated: Mon, 14 Jun 2021 02:13 PM (IST)
पोखर प्रकरण पर फिर गरमाई सियासत, भाजपा नेताओं की गुटबाजी आई सामने Aligarh news
पोखर प्रकरण से एक बार फिर भाजपा में सियासत गरमा गई है।

अलीगढ़, जेएनएन ।  पोखर प्रकरण से एक बार फिर भाजपा में सियासत गरमा गई है। दो गुट आमने सामने आ गए हैं। शहर में पोखर प्रकरण भाजपा नेताओं के लिए हमेशा विवाद बना रहा है। फिर चाहे गूलर रोड स्थित पोखर हो या फिर सुरेंद्र नगर पानी की टंकी स्थित पोखर ही क्यों न हो? जब भी महाबली इन पोखरों पर पहुंची है, भाजपा नेता आमने-सामने आ गए हैं। चुनाव के एनवक्त इस प्रकरण के गरमाने से भाजपा के अंदर ही अंर्तद्वंद्व शुरू हो गया है।

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2017 में सरकार बनने के बाद से हटाए जा रहे अवैध कब्‍जे 

2017 में भाजपा की सरकार बनने के बाद से शहर में पोखरों पर अवैध हटाए जाने का अभियान शुरू हुआ था। चूंकि सरकार का वह शुरुआती समय था इसलिए सख्त कदम उठाए गए। वर्षों पुरानी गूलर रोड स्थित पोखर हमेशा से सुर्खियों में रही है। सपा, बसपा का कार्यकाल बदलता रहा है, मगर पोखर से कब्जा नहीं हटाया जा सका। दोनों सरकारों में पोखर पर बुलडोजर नहीं गरजा। भाजपा की सरकार आने के बाद गूलर रोड स्थित पोखर पर बुलडोजर गरज गया। यहां दर्जनभर से अधिक मकान ढहा दिए गए, कब्जेदारों को हटा दिया गया। इसकी गूंज लखनऊ तक पहुंची थी। सत्तादल के कुछ जनप्रतिनिधियों ने इसपर नाराजगी भी जताई थी। उनका कहना था कि कार्रवाई करने से पहले एक बार जनप्रतिनिधियों के साथ बैठक होनी चाहिए थी। इसके बाद कोई निर्णय लिया जाता तो उन्हें कोई एतराज नहीं होता। एक बड़ा सवाल यह भी उठा था कि जब पोखर अवैध है तो अवैध स्थान पर कैसे सरकारी सुविधाएं पहुंचाई गईं? कैसे वहां पर नाली, खड़जा, सड़क, लाइट आदि की व्यवस्था की गई। जिन सरकारी विभागों ने सुविधाएं मुहैया कराई क्या उन्हें नहीं मालूम था कि यह अवैध है? यदि उन्हें ही नहीं मालूम और उन्होंने सुविधाएं दे दीं तो फिर जनता का इसमें क्या कसूर? जनता इसमें कहां से दोषी हो गई। बहरहाल, भाजपा के जनप्रतिनिधि अलीगढ़ से लेकर लखनऊ तक दौड़े थे, मगर निगम निगम का महाबली थमा नहीं था। अब चूंकि सरकार के चार साल पूरे हो गए, फिर चुनावी रंग में प्रदेश दिखाई देने लगा है, ऐसे में एक बार फिर सुरेंद्र नगर स्थित पोखर का जिन्न बाहर निकलकर आ गया है।

चार साल से कब्‍जा नहीं ले सकी नगर निगम

चार साल में दर्जनों बार इस पोखर से कब्जा हटाने के लिए नगर निगम की टीम पहुंची, मगर कब्जा ले नहीं सकी। कोर्ट में स्टे चलने के कारण नगर निगम को अपने पैर पीछे खींचने पड़े। मगर, रविवार को नगर निगम की टीम पोखर की सफाई कराने पहुंचे तो बता दिया गया कि उसपर कब्जा किया ज रहा है। नगर निगम अपने कब्जे में ले लेगी। इसपर एक गुट नाराज हो गया। वह मौके पर पहुंचकर जेसीबी के आगे लेट गया। उसका कहना था कि यह सब क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों की शह पर हो रहा है, अपनी ही सरकार को बदनाम किया जा रहा है। इन लोगों ने खूब हंगामा किया। वहीं, जनप्रतिनिधियों ने इस प्रकरण से अपने आपको किनारा कर लिया। उनका कहना था कि इस प्रकरण से उनका कोई लेनादेना नहीं है। पोखर पर सफाई का काम नगर निगम का है और वह कर रही है, ऐसे में हम कैसे रुकवा सकते हैं। इसको लेकर भी भाजपा में नाराजगी का दौर शुरू हो गया। एक गुट ने आरोप लगाया कि जनप्रतिनिधि इस मामले में कुछ नहीं बोल रहे है। यहां तक नगर निगम की कार्रवाई को रुकवाने का भी प्रयास नहीं किया। वहीं, दूसरी ओर जनप्रतिनिधियों ने कहा कि शहर साफ-सुथरा हो, जलभराव न हो इसकी चिंता करना जनप्रतिनिधियों का कर्तव्य है। उन्हें पोखर प्रकरण मामले से जोड़ा जाना गलत है। बहरहाल कुछ भी हो मगर भाजपा के अंदर की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है।


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