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सियासत का दुपट्टा आंसुओं से तर नहीं होता

लोकतांत्रिक व्यवस्था की प्रजातांत्रिक आस्था है कि हमारे देश में हर पांच साल बाद चुनावी पर्व गर्व के साथ प्रकट हो जाता है।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 10:33 AM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2019 10:33 AM (IST)
सियासत का दुपट्टा आंसुओं से तर नहीं होता
सियासत का दुपट्टा आंसुओं से तर नहीं होता

अलीगढ़ (डॉ. शंभुनाथ तिवारी)। लोकतांत्रिक व्यवस्था की प्रजातांत्रिक आस्था है कि हमारे देश में हर पांच साल बाद चुनावी पर्व गर्व के साथ प्रकट हो जाता है। चुनावी सैलाब में देश तो कांपता हुआ जागता है, पर चुनावी विसात पर विकास कहीं एक किनारे दुबक कर सो जाता है! नतीजतन, चुनावी मौसम में सियासी चौपाल सज जाती हैं। चुनाव की चक्की फिर चलने लग जाती है।  जिसमें पिसता और घिसता है आम आदमी का सपाट चेहरा, नेता जी ख्यालों में फिर सजाने लग जाते हैं अपने सिर जीत का सेहरा। नेता जी की नीयत और आस्था जनता की हर चौखट को चूमती रहती है, पिछले चुनाव में छली गई जनता फिर चुनावी चक्रव्यूह में चकरघिन्नी बनकर सिर्फ घूमती रहती है...।

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चुनाव जब भी आता है, नेता जी के दिल में बेचैनी, मन में खौफ और चेहरे पर तनाव लाता है! नेता जी चेहरे के तनाव को छुपाकर मूंछों पर ताव देकर भोलीभाली जनता के बीच शान से आते हैं, जनता के मासूम सवालों से बचते हुए अपनी नाकाम उपलब्धियों की सूची गिनवाते हैं! 

चुनावी दौरे में नेता जी का बिना विषय के भी लगातार बोलना कभी बंद नहीं होता, उनका दिल उन्हें यकीन दिला देता है कि भीड़तंत्र में वोटर इतना अक्लमंद नहीं होता। जनता फिर चुनावी वादों में खो जाती है, फिर किसी बड़बोले की खातिर बाईं उंगली पर वोट के अमिट निशान लगवाकर घर में चैन से सो जाती है! नेता जी पांच साल के लिए मस्त। जनता पंचवर्षीय योजना तक पस्त। जनता अपना दुखड़ा किससे रोए, किसके सामने अपनी आंखें खोए। काश, हम जान पाते कि चुनाव के बाद नेता जी को किसी बात का कोई डर नहीं होता। गरीब जनता के पास अपना कोई हुनर नहीं होता। नेता जी के पास गाड़ी बंगला, नौकर, चाकर हैं, मगर चुनाव के बाद आम आदमी ऐसा पङ्क्षरदा  बन जाता है, जिसके पास कोई शजर नहीं होता। हम भूल जाते हैं, सियासत का दुपट्टा आंसुओं से तर नहीं होता।

पूरा परिवार जानता है, एक-एक वोट है कीमती

चुनाव में एक-एक वोट का कितना महत्व होता है, यह बात चरन सिंह और उनका परिवार अ'छी तरह जानता है। इसलिए वे अपने बेटे और नाती सहित परिवार के सभी सातों मतदाताओं के साथ वोट डालने जाते हैं। साथ ही अन्य लोगों को भी प्रेरित करते हैं। क्षेत्र के गांव हुर्सेना निवासी चरन सिंह कस्बे मेंड्ड कपड़े की दुकान चलाते हैं। वे बताते हैं कि पहला वोट 1968 में दिया था। खुद भी गांव में  1995 में हुए ग्राम प्रधान के चुनाव में खड़े हुए। तब उनकी जीत के लिए पूरे परिवार ने संघर्ष किया। तब उनके ब'चों तक को समझ में आया हर एक वोट कितना कीमती होता है। तभी से हर बार पूरा परिवार एक साथ वोट देने जाता है। किसी भी चुनाव में कोई सदस्य वोट डालने से चूकता नहीं है। चरन सिंह के दो बेटे, दो बहुएं, इनकी धर्मपत्नी व नातिन मिलाकर कुल सात मतदाता घर में हैैं। उनके बेटे मुकेश कुमार कॉस्मेटिक की दुकान चलाते हैं। वह पिता की ही तरह हर एक वोट को महत्वपूर्ण मानते हैैं, इसलिए हमेशा वोट डालने जरूर जाते हैैं। इनकी बीए कर रही बेटी रूचि ने कहा कि वह निष्पक्ष ढ़ंग से काम करने वाले प्रत्याशी को चुनेगी।


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