अलीगढ़ की आबोहवा में घुल रहा जहर, जानिए विस्तार से
कहते हैं स्वस्थ शरीर निरोगी काया। लेकिन अलीगढ़ में यह बड़ा मुश्किल लग रहा है। महानगर की आबोहवा न्यूनतम से डेढ़ गुना से अधिक जहरीली हो गई है। बढ़ता प्रदूषण चिंतित कर रहा है। लाकडाउन के समय को छोड़ दें।
अलीगढ़, मनोज जादौन। कहते हैं स्वस्थ शरीर निरोगी काया। लेकिन, अलीगढ़ में यह बड़ा मुश्किल लग रहा है। महानगर की आबोहवा न्यूनतम से डेढ़ गुना से अधिक जहरीली हो गई है। बढ़ता प्रदूषण चिंतित कर रहा है। लाकडाउन के समय को छोड़ दें तो एक भी महीना ऐसा नहीं, जब प्रदूषण की रिपोर्ट सामान्य रही हो। पीएम -10 का स्तर 361 (माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब) तक पहुंच गया। जबकि, सौ होना चाहिए। पिछले छह माह में पीएम-10 सौ से अधिक ही है।
अलीगढ़ में बढ़ा प्रदूषण
ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं। प्रदेश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में अलीगढ़ भी शामिल है। इसके बाद भी प्रशासनिक अधिकारी भले बेफिक्र नजर आ रहे हैं, लेकिन जिले के स्वास्थ के लिए यह ठीक नहीं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से वर्ष 2019 में जारी की गई प्रदेश के सबसे प्रदूषित शहरों की मार्किंग में अलीगढ़ को 70 अंक दिए गए हैं। महानगर की बात की जाए तो गत 19 फरवरी को पीएम-10 163.33 (माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब) था।
सबसे अधिक प्रदूषित शहर में संशाधन का अभाव
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय संसाधानों के अभाव से जूझ रहा है। शहर की आबोहवा मापने के लिए रिसपायरेबल डस्ट सैंपलर (आरडीएस) पर मैन्युअल सैंपल लिए जाते हैं। लेकिन, अलीगढ़ में सप्ताह में एक दिन शुक्रवार को सैंपङ्क्षलग की जाती है। पीएम 2.5 का आरडीएस तो है, मगर इस मशीन से प्रदूषण का स्तर मात्र दीपावली पर ही मापा जाता है। मेट्रो शहरों में आनलाइन मानिटङ्क्षरग स्टेशन हैं, लेकिन अलीगढ़ में यह सुविधा भी नहीं है। नवंबर 2020 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एमएमयू) को दो वायु गुणवत्ता अनुसरण केंद्र स्थापित किए गए हैं। यहां भी आरडीएस की मैन्युअल सैंपङ्क्षलग होती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को भी मैन्युअल सैंपलर से आंकड़े भेजे जाते हैं।
प्रदूषण के क्या हैं कारण
-जिले की सीमेंट फैक्ट्रियों में प्रदूषण रोकने के इंतजाम नहीं है
-सड़कों के किनारे बालू-बदरपुर के ढेर लगे हुए हैं, जो कि बिक्री के लिए हैं
-जीटी रोड व मथुरा रोड पर सड़क निर्माण के समय पानी का छिड़काव नहीं कराया जा रहा
-शहर में सीवरेज लाइन डाली जा रही है, उसकी मिïट्टी सड़क पर है
-खटारा वाहनों से धुआं निकलता है
यह किए जा सकते हैं प्रयास
-निर्माण वाले स्थानों पर पानी का छिड़काव कराया जाए
-खटारा वाहनों के संचालन पर रोक लगे
-प्रदूषण नियंत्रण मापक केंद्र पर पारदर्शिता बरती जाए
2021 में पीएम-10
4 जनवरी, 112.00,
15 जनवरी, 116.20
22 जनवरी, 136.40
29 जनवरी, 128.28
16 फरवरी, 152.00
19 फरवरी, 163.33
28 फरवरी, 156.00
(माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब)
लाकडाउन में राहत
प्रदूषण पिछले साल की शुरूआत से ही अधिक था। 20 मार्च 2020 को पीएम -10 का स्तर 132.72 दर्ज किया गया था, लेकिन 24 मार्च से लागू हुए लाकडाउन में राहत मिली। सात अप्रैल 2020 को 66.50, 28 अप्रैल को 90.20 दर्ज किया गया। इसके बाद छूट मिलने का सिलसिला शुरू होते ही प्रदूषण का स्तर भी बढ़ता गया। 26 जून को 120.20, 27 जुलाई को 130.20, 23 सितंबर को 142.38, 31 अक्टूबर को 154 दर्ज किया गया। जनवरी 2021 से अब तक पीएम-10 की रिपोर्ट सामान्य नहीं रही।
दीपावली पर सर्वाधिक प्रदूषण
नवंबर में प्रदूषण के आंकड़े हैरान करने वाले थे। इस माह दीपावली भी थी। छह नवंबर को पीएम -10 412.45 (माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब) दर्ज किया गया। यह नौ नवंबर को 364.31, 10 नवंबर को 254.97 और 14 नवंबर को 270 दर्ज किया गया।
वायु प्रदूषण की रोक थाम के लिए समय -समय पर कार्रवाई की जाती है। नोटिस भी किए जाते हैं। एक दर्जन प्रदूषणकारी इकाई व मानक के विरूद्ध चल रहे ईंट भ_ों को बंदी की सिफारिश उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से की है। सजगता बरकरार है।
रामगोपाल, क्षेत्रीय अधिकारी, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
प्रदूषण बढऩे से सबसे अधिक तकलीफ अस्थमा रोगियों को होती है। स्वांस फूलने की शिकायतें बढ़ रही हैं। ऐसे मरीजों को प्रदूषण से बचने के उपाय करना चाहिए। घर से मास्क लगाकर निकलें। इससे कोरोना से भी बचाव होगा।
डा. नितिन गुप्ता, फिजीशियन