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Opposition Parties Helpless In Aligarh: मुद्दों की भरमार, मगर विपक्ष हैं लाचार

विपक्ष के लिए इस समय मुद्दों की भरमार है। सबसे बड़ा मुद्दा महंगाई का है। पेट्रोल डीजल और साग-सब्जी हर चीज महंगी होती जा रही है। मगर एकजुटता न होने के चलते विपक्ष हमलावर नहीं हो पा रहा है।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Fri, 22 Oct 2021 09:31 AM (IST)Updated: Fri, 22 Oct 2021 09:31 AM (IST)
Opposition Parties Helpless In Aligarh: मुद्दों की भरमार, मगर विपक्ष हैं लाचार
विपक्ष के लिए इस समय मुद्दों की भरमार है। विपक्ष मुद्दों को भुना नहीं पा रहा है।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। विपक्ष के लिए इस समय मुद्दों की भरमार है। सबसे बड़ा मुद्दा महंगाई का है। पेट्रोल, डीजल और साग-सब्जी हर चीज महंगी होती जा रही है। मगर, एकजुटता न होने के चलते विपक्ष हमलावर नहीं हो पा रहा है। चुनाव निकट होने के बाद भी विपक्ष इन मुद्दों को भुना नहीं पा रहा है।

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राजनीतिक दल सक्रिय 

चुनाव निकट आते ही सत्ता दल पर हमेशा विपक्ष हावी होना चाहता है, इसके लिए उसे मुद्दों की तलाश होती है। इस समय विपक्ष के पास मुद्दे तो तमाम हैं, मगर संगठन सशक्त न होने के चलते इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। सबसे बड़े दल के रुप में यदि देखा जाए तो कांग्रेस प्रमुख दल के रुप में है। कांग्रेस ने साढ़े चार वर्षों में संगठन को सशक्त और धारधार बनाने का काम नहीं किया। आपसी गुटबाजी के चलते जिले और महानगर की इकाईयां मजबूत नहीं हैं। जिले के कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। पूर्व सांसद चौधरी बिजेंद्र सिंह जो कभी खांटी कांग्रेसी हुआ करते थे। कांग्रेस से विधायक और सांसद बने मगर जिले स्तर की गुटबाजी को वह बर्दास्त नहीं कर सके, इसके चलते उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया, जबकि चौधरी बिजेंद्र सिंह हमेशा सत्ता दल को घेरने का काम किया करते थे। वह कांग्रेस में रहते तो भाजपा पर तीखे बाण छोड़ते थे। इससे कार्यकर्ताओं में भी ऊर्जा बनी रहती थी।

पार्टी में अंदरखाने पदाधिकारियों में मनमुटाव

चौधरी बिजेंद्र सिंह ने संगठन में अपनी हो रही उपेक्षा की शिकायत प्रियंका वाड्रा से भी की थी, मगर उनकी पीड़ा पर ध्यान नहीं दिया गया। इसी प्रकार से अश्वनी शर्मा ने भी पार्टी छोड़ दी। वह पार्टी में कई वर्षों से घुटन महसूस कर रहे थे। पार्टी में उन्होंने भी अपनी बात रखी थी, मगर कोई सुनवाई नहीं हुई। पार्टी के अभी और कई नेता भी अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे हैं, जिसका परिणाम है कि पार्टी मजबूत नहीं हो पा रही है। जिस समय महंगाई पर खुलकर बोलने की जरूरत है, उस समय कांग्रेसी आपसी गुटबाजी में फंसे हुए हैं। जिले और महानगर की कार्यकारिणी की समय से बैठक तक नहीं होती है। यदि सपा में देखा जाए तो कमोवेश यहां भी स्थिति वही है। यहां पर भी अंदरुनी गुटबाजी चरम पर है। धरने-प्रदर्शन में सपाई हंगामा खूब करते हैं, मगर एकजुटता यहां भी नहीं दिखाई देती है। तमाम मौके ऐसे रहे जहां सपा कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए, उन्होंने जमकर हो-हंगामा किया, मगर पूर्व जनप्रतिनिधि मैदान में सामने नहीं आए। वह एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन करते हुए नहीं दिखाई दिए।

पूर्व विधायक मंच पर नहीं आते

बड़े-बड़े कार्यक्रम भी हुए वहां भी पूर्व विधायक एक साथ मंच पर आते हुए नहीं दिखाई दिए। कई बार धरना-प्रदर्शन में भी कार्यकर्ताओं से अलग होकर पूर्व विधायक अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए नजर आए। ऐसे में वह अपनी पूरी ताकत नहीं दिखा सकें। इसी का लाभ भाजपा उठा रही है। भाजपा को यह पता है कि विपक्ष एकजुट नहीं है। अपने-अपने संगठन के तौर पर कार्यकर्ताओं में एकजुटता नहीं है। इसलिए वह सत्ता दल को घेरने में असमर्थ रहते हैं।


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