सांझी संस्कृति है गुलजार अपार्टमेंटः मेडिकल रोड स्थित अपार्टमेंट मेंं रह रहे कई प्रांतों के लोग, हिंदू-मुस्लिम प्रेम दूसरों के लिए नजीर aligarh news
दोनों धर्मों के अनुसार भोजन और नाश्ते की व्यवस्था होती है। आयशा से वंदना दिल खोलकर बात करती हैं और खूब हंसी-मजाक भी होती है। कहीं दूरियां नजर नहीं आती हैं। बच्चे भी एक-दूसरे से मिल
अलीगढ़ (जेएनएन)। साझा संस्कृति देखनी है तो आप मेडिकल रोड स्थित गुलजार अपार्टमेंट आ जाइए। यहां एक तरफ अजान होती है तो दूसरी तरफ आरती। कभी किसी में मतभेद नहीं हुआ। आपसी सौहाद्र्र व प्रेम का ऐसा उदाहरण अलीगढ़ के किसी और अपार्टमेंट में नहीं मिलेगा। यहां ङ्क्षहदू-मुस्लिम ताला और चाबी की तरह हैं। इनमें इतनी पक्की यारी है कि एक-दूसरे के बिना रह नहीं सकते हैं। इनमें से कोई कभी अपार्टमेंट से मजबूरी में अलग हुआ तो हर किसी की आंखें भर आईं। यहां हर दिल अजीज है। बच्चों में भी वही मेल-मिलाप है। खेलकूद, खाना-पीना सब एक साथ होता है। कोई रहमान है तो कोई राम। एक-दूसरे के दुख-दर्द को समझते हैं, भावनाओं की कद्र करते हैं। यहां कई प्रांतों के लोग रह रहे हैं। अधिकतर डॉक्टर हैं, कुछ इंजीनियर भी। व्यवसायी भी हैं। हर कोई यहां कह उठता है, 'सारे जहां से अच्छा गुलजार अपार्टमेंट हमारा। गुलजार अपार्टमेंट जाने के लिए मुख्य मार्ग दोदपुर से मेडिकल रोड जाना होगा। मेडिकल कॉलेज से बमुश्किल 300 मीटर की दूरी पर यह अपार्टमेंट है। विशाल परिसर में यहां की रौनक देखते ही बनती है। खुली हवा व आलीशान फ्लैट में जो भी एक बार यहां आता है, यहीं का होकर रह जाता है।
लोगों के लिए है नजीर
हिंदू-मुस्लिम के बीच में खाई खींचने वाले लोगों के लिए यह अपार्टमेंट नजीर है। अपार्टमेंट के नीचे कम्युनिटी हॉल है। यहां नमाज होती है। अपार्टमेंट के डायरेक्टर शहजाद अख्तर ने गेट के पास मंदिर बनवाया है। ङ्क्षहदू समाज के लोग सुबह यहां पर पूजा करते हैं तो शाम को आरती होती है।
एक साथ होती है पार्टी
कम्युनिटी हॉल में सभी मिलकर पार्टी करते हैं। बर्थ-डे हो या शादी की सालगिरह सभी कार्यक्रम कम्युनिटी हॉल में ही हैं। दोनों धर्मों के अनुसार भोजन और नाश्ते की व्यवस्था होती है। आयशा से वंदना दिल खोलकर बात करती हैं और खूब हंसी-मजाक भी होती है। कहीं दूरियां नजर नहीं आती हैं। बच्चे भी एक-दूसरे से मिले होते हैं।
एकता की मिसाल
मेडिकल कॉलेज के पास होने से अपार्टमेंट में डॉक्टरों की संख्या अधिक है। कभी किसी को दिक्कत होती है तो वे रात 12 बजे भी तैयार रहते हैं। बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा के भी लोग रहते हैं। बाहर से आने पर रेलवे स्टेशन पर उन्हें रिसीव करने के लिए हर समय गाड़ी तैयार रहती है।
नहीं रह सकते दोस्त के बिना
लोकांश कहते हैं कि उनका सबसे पक्का दोस्त राशिद है। उसके बिना मन नहीं लगता है। खेलते समय उसका नमाज का वक्त हो जाता है तो वो नमाज अदा करता है, मेरी आरती का समय होता है तो मैं पूजा करने लगता हूं। हमें कभी किसी ने टोका और रोका नहीं।
रिश्तेदारी में नहीं लगता मन
अलिजा कहती हैं कि उन्हें संगीत पसंद है। अरमान मलिक के गाने सुनती हूं। शाम के समय यहां बहुत अच्छा लगता है। सहेलियों के साथ हॉल में खेलती हूं। रिश्तेदारियों में जाती हूं तो वहां मन नहीं लगता और जल्दी चली आती हैैं।
माहौल इतना अच्छा कि बयां नहीं कर सकतीं
आयशा कहती हैं कि यहां का माहौल इतना अच्छा है कि बयां नहीं कर सकतीं। एक-दूसरे की मदद को हर कोई तैयार रहता है। जब भी उनके घर में कुछ अच्छी चीजें बनती हैं तो सहेलियों को बुला लेती हैं।
यहां आकर मिल गईं सारी खुशियां
निशात बनारस की हैं, मगर यहां आकर तो उन्हें सारी खुशियां मिल गईं। वह कहती हैं कि हम सभी त्योहार मिलकर मनाते हैं। ईद पर सिवइयां व पकवान देने वे घरों में जाती हैैं तो होली-दीवाली पर उनके यहां भी मिठाइयां और उपहार आते हैं।
वंदना के व्यंजनों के सभी मुरीद
वंदना शर्मा के लजीज व्यंजन का हर कोई मुरीद है। उनकी दाल फ्राई, आलू के पराठे व आलू दम मशहूर हैं। जब किसी को सादा भोजन की जरूरत पड़ती है तो वह वंदना के घर पहुंच जाता है।
मिलकर मनाते हैैं तीज-त्योहार
डॉ. दीपिका महाराष्ट्र की हैं। वो बताती हैं कि यहां जैसा माहौल कहीं नहीं मिलेगा। सब आपस में मिलजुल कर रहते हैं। तीज-त्योहार मिलकर मनाते हैं। शुरुआत में तो वे संकोच में थीं, अब तो उनका यहां से जाने का मन नहीं करता है।
छोटा हिंदुस्तान है हमारा परिसर
कश्मीर से आए डॉ. एमए मलिक कहते हैं कि यह अपार्टमेंट छोटा ङ्क्षहदुस्तान है। ईद, होली, दीवाली पर सांझी संस्कृति यहां देखने को मिलती है। लजीज व्यंजन के लिए यह मशहूर है। कुछ भी बनता है तो एक-दूसरे के साथ मिल बांटकर सभी खाते हैं।
ताला-चाबी की तरह हैैं सभी
अपार्टमेंट के मालिक शहजाद अख्तर कहते हैं कि उन्होंनें ङ्क्षहदू भाइयों के लिए मंदिर शुरुआत में ही बनवा दिया था, जिससे उन्हें पूजा करने में दिक्कत न हो। यहां ङ्क्षहदू-मुस्लिम ताला और चाबी की तरह हैं। यहां जैसा सौहार्द कहीं नहीं मिलेगा।
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